Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 221
________________ २२० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद उल्टे हाथवाली, नरक समान भयानक, गर्दभ की तरह दुःशीला, दुष्ट घोड़े की तरह दुर्दमनीय, बच्चे की तरह पल में खुश और पल में रोषायमान होनेवाली, अंधेरे की तरह दुष्प्रवेश विष लता की तरह आश्रय को अनुचित, कुए में आक्रोश से अवगाहन करनेवाले दुष्ट मगरमच्छ जैसी, स्थानभ्रष्ट, ऐश्वर्यवान् की तरह प्रशंसा के लिए अनुचित किंपाक फल की तरह पहले अच्छी लगनेवाली लेकिन बाद में कटु फल देनेवाली, बच्चे को लुभानेवाली खाली मुट्ठी जैसी सार के बिना, माँसपिंड को ग्रहण करने की तरह उपद्रव उत्पन्न करनेवाली, जले हुए घास के पूले की तरह न छूटनेवाले मान और जले हुए शीलवाली, अरिष्ट की तरह बदबूवाली, खोटे सिक्के की तरह शील को ठगनेवाली, क्रोधी की तरह कष्ट से रक्षित, अति विषादवाली, निदित, दुरुपचारा, अगम्भीर, अविश्वसनीय, अनवस्थित, दुःख से रक्षित, अरतिकर, कर्कश, दंड बैरवाली, रूप और सौभाग्य से उन्मत्त, साँप की गति की तरह कुटील हृदया, अटवी में यात्रा की तरह भय उत्पन्न करनेवाली, कुल-परिवार और मित्र में फूट उत्पन्न करनेवाली, दुसरों के दोष प्रकाशित करनेवाली । कृतघ्न, वीर्यनाश करनेवाली, कोल की तरह एकान्त में हरण करनेवाली, चंचल, अग्नि से लाल होनेवाले घड़े की तरह लाल होठ से राग उत्पन्न करनेवाली, अंतरंग में भग्नशत हृदया, रस्सी बिना का बँधन, बिना पेड का जंगल, अग्निनिलय, अदृश्य वैतरणी, असाध्य विमारी, बिना वियोग से प्रलाप करनेवाली, अनभिव्यक्त उपसर्ग, रतिक्रीड़ा में चित्त विभ्रम करनेवाली, सर्वांग जलानेवाली बिना मेघ के वज्रपात करनेवाली, जलशून्य प्रवाह और सागर समान निरन्तर गर्जन करनेवाली, यह स्त्री होती है । इस तरह स्त्रीयां की कई नाम नियुक्ति की जाती है । लाख उपाय से और अलग-अलग तरह से मर्द की कामासक्ति बढ़ाती है और उसको वध बन्धन का भाजन बनानेवाली नारी समान मर्द का दुसरा कोई शत्रु नहीं है, इसलिए 'नारी' तरह-तरह के कर्म और शिल्प से मर्दो को मोहित करके मोह 'महिला', मर्दो को मत्त करते है इसलिए 'प्रमदा', महान् कलह को उत्पन्न करती है इसलिए ‘महिलिका', मर्द को हावभाव से रमण करवाती है इसलिए 'रमा', मर्दो को अपने अंग में राग करवाती है इसलिए 'अंगना', कई तरह के युद्ध-कलह-संग्राम-अटवी में भ्रमण, बिना प्रयोजन कर्ज लेना, शर्दी, गर्मी का दुःख और क्लेश खड़े करने के आदि कार्य में वो मर्द को प्रवृत्त करती है इसलिए 'ललना', योग-नियोग द्वारा पुरुष को बस में करती है इसलिए योषित्' एवं विविध भाव द्वारा पुरुष की वासना उद्दीप्त करती है इसलिए वनिता कहलाती है । किसी स्त्री प्रमत्तभाव को, किसी प्रणय विभ्रम को और किसी श्वास के रोगी की तरह शब्द-व्यवहार करते है । कोई शत्रु जैसी होती है और कोई रो-रो-कर पाँव पर प्रणाम करती है । कोई स्तुति करती है । कोई आश्चर्य, हास्य और कटाक्ष से देखती है । कोई विलासयुक्त मधुर वचन से, कोई हास्य चेष्टा से, कोई आलिंगन से, कोई सीत्कार के शब्द से, कोई गृहयोग के प्रदर्शन से, कोई भूमि पर लिखकर या चिह्न करके, कोई वांस पर चड़कर नृत्य द्वारा कोई बच्चे के आलिंगन द्वारा, कोई अंगुली के टचाके, स्तन मर्दन और कटितट पीड़न आदि से पुरुष को आकृष्ट करती है । यह स्त्री विघ्न करने में जाल की तरह, फाँसने में कीचड़ की तरह, मारने

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