Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 213
________________ २१२ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद गरुड़ की चोंच जैसा लम्बा, सीधा और उन्नत मुख विकसित कमल जैसा । आँख पद्म कमल जैसी विकसित धवल - कमलपत्र जैसी स्वच्छ भँवर थोड़े से झुके हुए धनुष जैसी, सुन्दर पंक्ति युक्त काले मेघ जैसी उचित मात्रा में लम्बी और सुन्दर- कान कुछ हद तक शरीर को चिपककर प्रमाण युक्त गोल और आसपास का हिस्सा माँसल युक्त और पुष्ट, ललाट अर्ध चन्द्रमा जैसा संस्थित मुख परिपूर्ण चन्द्रमा जैसा, सौम्य, मस्तक छत्र जैसा उभरता, सिर का अग्रभाग मुद्गर जैसा, सुदृढ नाडी से बद्ध- उन्नत लक्षण से युक्त और उन्नत शिखर युक्त, सिर की चमड़ी अग्नि में तपे हुए स्वच्छ सोने जैसी लाल, सिर के बाल शाल्मली पेड़ के फल जैसे घने, प्रमाणेपेत, बारीक, कोमल, सुन्दर, निर्मल, स्निग्ध, प्रशस्त लक्षणवाले, खुश्बुदार, भुज-भोजक रत्न, नीलमणी और काजल जैसे काले हर्षित भ्रमर के झुंड के समूह की तरह, घुंघराले दक्षिणावर्त्त होते है । वो उत्तम लक्षण, व्यंजन, गण से परिपूर्ण - प्रमाणोपेत मान- उन्मान, सर्वांग सुन्दर, चन्द्रमा समान सौम्य आकृतिवाले, प्रियदर्शी स्वाभाविक शृंगार से सुन्दरतायुक्त, देखने के लायक, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप होते है । जल-मल दाग, यह मानव का स्वर अक्षरित, मेघ समान, हंस समान, क्रोंच पंछी, नंदी - नंदीघोष, सह-सहघोष, दिशाकुमार देव का घंट- उदधि कुमार देव का घंट इन सबके समान स्वर होते है । शरीर में वायु के अनुकूल वेगवाले कबूतर जैसे स्वभाववाले, शकुनि पंछी जैसे निर्लेप मल द्वारवाले, पीठ और पेट के नीचे सुगठित दोनो पार्श्वभाग एवं परिणामोपेत जंघावाले पद्मकमल या नील कमल जैसे सुगंधित मुखवाले, तेजयुक्त, निरोगी, उत्तम प्रशस्त, अति श्वेत, अनुपम पसीना और रजरहित शरीरवाले अति स्वच्छ और उद्योतियुक्त शरीरवाले, व्रजऋषभनाराच-संघयणवाले, समचतुरस्र संस्थान से संस्थित और छ हजार धनुष ऊँचाईवाले बताए गए है । हे आयुष्मान् श्रमण ! वो मानव २५६ पृष्ठ हड्डियाँ वाले बताए है । यह मानव स्वभाव से सरल प्रकृत्ति से विनीत, विकार रहित, अल्प क्रोध-मान, माया - लोभवाले, मृदु और मार्दवता युक्त, तल्लीन, सरल, विनित, अल्प ईच्छावाले, अल्प संग्रही, शान्त स्वभावी । असिमसि - कृषि व्यापाररहित, गृहाकार पेड़ की शाखा पे निवास करनेवाले, इच्छित विषयाभिलासी, कल्पवृक्ष के पृथ्वी फल और पुष्प का आहार करते है । [६५] हे आयुष्मान् श्रमण ! पूर्वकाल में मानव के छह प्रकार के संहनन थे वो इस प्रकार - वज्रऋषभनाराच, ऋषभनाराच, अर्द्धनाराच, कीलिका और सेवार्त्त, वर्तमान काल में मानव को सेवार्त्त संहनन ही होता है । हे आयुष्मान् ! पूर्वकाल में मानव को छह प्रकार के संस्थान थे वो इस प्रकार - समचतुरस्र, न्यग्रोधपरिमंडल, सादिक, कुब्ज, वामन और हुंड़क । हे आयुष्मान् ! वर्तमानकाल में केवल हुंड़क संस्थान ही होता है । [ ६६ ] मानव के संहनन, संस्थान, ऊँचाई और आयु अवसर्पिणी काल के दोष की वजह से धीरे-धीरे क्षीण होते जाते है । [ ६७ ] क्रोध, मान, माया, लोभ और झूठे तोल-नाप की क्रिया आदि सब अवगुण बढ़ते है । [ ६८ ] तराजु और जनपद में नाप तोल विषम होते है । राजकुल और वर्ष विषम

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