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कल्पवतंसिका-१/१
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नमो नमो निम्मलदंसणस्स
२० कल्पवतंसिका
उपांगसूत्र-९-हिन्दी अनुवाद ।
(अध्ययन-१-पर) [१] भदन्त ! यदि श्रमण यावत् निर्वाण-संप्राप्त भगवान महावीर ने निरयावलिका नामक उपांग के प्रथम वर्ग का यह अर्थ कहा तो हे भदन्त ! दूसरे वर्ग कल्पावतंसिका का क्या अर्थ कहा है ? आयुष्मन् जम्बू ! कल्पावतंसिका के दस अध्ययन कहे हैं । -पद्म, महापद्म, भद्र, सुभद्र, पद्मभद्र, पद्मसेन, पद्मगुल्म, नलिनगुल्म, आनन्द और नन्दन | भगवन् ! यदि कल्पावतंसिका के दस अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ बताया है ? उस काल और उस समय में चम्पा नगरी थी । पूर्णभद्र चैत्य था । कूणिक राजा था । पद्मावती पटरानी थी । उस चम्पा नगरी में श्रेणिक राजा की भार्यां, कूणिक राजा की विमाता काली रानी थी, जो अतीव सुकुमार एवं स्त्री-उचित यावत् गुणों से सम्पन्न थी । उस काली देवी का पुत्र कालकुमार था । उस कालकुमार की पद्मावती पत्नी थी, जो सुकोमल थी यावत् मानवीय भोगों को भोगती हुई समय व्यतीत कर रही थी।
किसी एक रात्रि में भीतरी भाग में चित्र-विचित्र चित्रामों से चित्रित वासगृह में शैया पर शयन करती हुई स्वप्न में सिंह को देखकर वह पद्मावती देवी जागृत हुई । पुत्र का जन्म हुआ, महाबल की तरह उसका जन्मोत्सव मनाया गया, यावत् नामकरण किया हमारे इस बालक का नाम पद्म हो । शेष समस्त वर्णन महाबल के समान समझना, यावत् आठ कन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण हआ । यावत् पद्मकुमार ऊपरी श्रेष्ठ प्रासाद में रहकर भोग भोगते, विचरने लगा । भगवान् महावीर स्वामी समवसृत हुए । परिषद् धर्म-देशना श्रवण करने निकली। कूणिक भी वंदनार्थ निकला । महाबल के समान पद्म भी दर्शन-वंदना करने के लिए निकला | माता-पिता से अनुमति प्राप्त करके प्रवजित हुआ, यावत् गुप्त ब्रह्मचारी अनगार हो गया । पद्म अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर के तथारूप स्थविरों से सामायिक से लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया यावत् चतुर्थभक्त, षष्टभक्त, अष्टमभक्त, इत्यादि विविध प्रकार की तप-साधना से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगा । इसके बाद वह पद्म अनगार मेधकुमार के समान उस प्रभावक विपुल, सश्रीक, गुरु द्वारा प्रदत्त, कल्याणकारी, शिव, धन्य, प्रशंसनीय, मांगलिक, उदय, उदार, उत्तम, महाप्रभावशाली तप-आराधना से शुष्क, रूक्ष, अस्थिमात्रावशेष शरीर वाला एवं कृश हो गया ।
किसी समय मध्य रात्रि में धर्म-जागरण करते हुए पद्म अनगार को चिन्तन उत्पन्न हुआ। मेघकुमार के समान श्रमण भगवान् से पूछकर विपुल पर्वत जा कर यावत् पादोपगमन संस्थारा स्वीकार करके तथारूप स्थविरों से सामायिक आदि से लेकर ग्यारह अंगों का श्रवण कर परिपूर्ण पांच वर्ष की श्रमण पर्याय का पालन करके मासिक संलेखना को अंगीकार कर