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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
से रोकने के लिए समझाए जाने पर भी सुभद्रा आर्या ने उन सुव्रता आर्या के कथन का आदर नहीं किया किन्तु उपेक्षा-पूर्वक अस्वीकार कर पूर्ववत् बाल-मनोरंजन करती रही ।
तब निर्ग्रन्थ श्रमणियाँ इस अयोग्य कार्य के लिए सुभद्रा आर्या की हीलना, निन्दा, खिंसा, गर्दा करतीं- और ऐसा करने से उसे बार-बार रोकतीं । उन सुव्रता आदि निर्ग्रन्थ श्रमणी आर्याओं द्वारा पूर्वोक्त प्रकार से हीलना आदि किए जाने और बार-बार रोकने पर उस सुभद्रा आर्या को इस प्रकार का यावत् मानसिक विचार उत्पन्न हुआ-'जब मैं अपने घर में थी, तब मैं स्वाधीन थी, लेकिन जब से मैं मुण्डित होकर गृह त्याग कर अनगारिक प्रव्रज्या से प्रव्रजित हुई हूँ, तब से मैं पराधीन हो गई हूँ । पहले जो निर्ग्रन्थ श्रमणियाँ मेरा आदर करती थी, मेरे साथ प्रेम-पूर्वक आलाप-संलाप करती थीं, वे आज न तो मेरा आदर करती हैं और न प्रेम से बोलती हैं । इसलिए मुझे कल प्रातःकाल यावत् सूर्य के प्रकाशित होने पर पृथक् उपाश्रय में जाकर रहना उचित हैं ।' यावत् सूर्योदय होने पर सुव्रताआर्या को छोड़कर वह निकल गई और अलग उपाश्रय में जाकर अकेली रहने लगी । तत्पश्चात् वह सुभद्रा आर्या, आर्याओं द्वारा नहीं रोके जाने से निरंकुश और स्वच्छन्दमति होकर गृहस्थों के बालकों में आसक्त-यावत्-उनकी तेल-मालिश आदि करती हुई पुत्र-पौत्रादि की लालसापूर्ति का अनुभव करती हुई समय बिताने लगी ।
तदनन्तर वह सुभद्रा पासत्था, पासत्थविहारी, अवसन्न, अवसन्नविहारी, कुशील कुशीलविहारी, संसक्त संसक्तविहारी और स्वच्छन्द तथा स्वच्छन्दविहारी हो गई । उसने बहुत वर्षों तक श्रमणी-पर्याय का पालन किया । अर्धमासिक संलेखना द्वारा आत्मा को परिशोधित कर, अनशन द्वारा तीस भोजनों को छोड़कर और अकरणीय पाप-स्थान की आलोचना-किए बिना ही मरण करके सौधर्मकल्प के बहुपुत्रिका विमान की उपपातसभा में देवदूष्य से आच्छादित देवशैया पर अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण अवगाहना से बहुपुत्रिका देवी के रूप में उत्पन्न हुई । उत्पन्न होते ही वह बहुपुत्रिका देवी पांच प्रकार की पर्याप्तियों से पर्याप्त होकर देवी रूप में रहने लगी । गौतम ! इस प्रकार बहपुत्रिका देवी ने वह दिव्य देव-ऋद्धि एवं देवधुति प्राप्त की है यावत् उसके सन्मुख आई है । गौतम स्वामी ने पुनः पूछा-'भदन्त ! किस कारण से बहुपुत्रिका देवी को बहुपुत्रिका कहते हैं ?' 'गौतम ! जब-जब वह बहुपुत्रिका देवी देवेन्द्र देवराज शक्र के पास जाती तब-तब वह बहुत से बालक-बालिकाओं, बच्चे-बच्चियों की विकुर्वणा करती । जाकर उन देवेन्द्र-देवराज शक्र के समक्ष अपनी दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवधुति एवं दिव्य देवानुभाव-प्रदर्शित करती । इसी कारण हे गौतम ! वह उसे 'बहुपुत्रिका देवी' कहते हैं। 'भदन्त ! बहुपुत्रिका देवी की स्थिति कितने काल की है ?' 'गौतम ! चार पल्योपम है ।' 'भगवन् ! आयुक्षय, भवक्षय और स्थितिक्षय होने के अनन्तर बहुपुत्रिका देवी उस देवलोक से च्यवन करके कहाँ जाएगी ?' 'गौतम ! आयुक्षय आदि के अनन्तर बहुपुत्रिका देवी इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में विन्ध्य-पर्वत की तलहटी में बसे बिभेल सन्निवेश में ब्राह्मणकुल में बालिका रूप में उत्पन्न होगी । उस बालिका के माता-पिता ग्यारह दिन बीतने पर यावत् बारहवें दिन वे अपनी बालिका का नाम सोमा रखेंगे ।