Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 162
________________ पुष्पिका- ४/८ १६१ तत्पश्चात् वह सोमा बाल्यावस्था से मुक्त होकर, सज्ञानदशापन्न होकर युवावस्था आने पर रूप, यौवन एवं लावण्य से अत्यन्त उत्तम एवं उत्कृष्ट शरीखाली हो जाएगी । तब मातापिता उस सोमा बालिका को बाल्यावस्था को पार कर विषय-सुख से अभिज्ञ एवं यौवनावस्था में प्रविष्ट जानकर यथायोग्य गृहस्थोपयोगी उपकरणों, धन-आभूषणों और संपत्ति के साथ अपने भानजे राष्ट्रकूट को भार्या के रूप में देंगे । वह सोमा उस राष्ट्रकूट की इष्ट, कान्त, भार्या होगी यावत् वह सोमा की भाण्डकरण्डक के समान, तेलकेल्ला के समान, वस्त्रों के पिटारे के समान, रत्नकरण्डक के समान उसकी सुरक्षा का ध्यान रखेगा और उसको शीत, उष्ण, वात, पित्त, कफ एवं सन्निपातजन्य रोग और आतंक स्पर्श न कर सकें, इस प्रकार से सर्वदा चेष्टा करता रहेगा । तत्पश्चात् सोमा ब्राह्मणी राष्ट्रकूट के साथ विपुल भोगों को भोगती हुई प्रत्येक वर्ष एक युगल संतान को जन्म देकर सोलह वर्ष में बत्तीस बालकों का प्रसव करेगी । तब वह बहुत से दारक -दारिकाओं, कुमार- कुमारिकाओं और बच्चे-बच्चियों में से किसी के उत्तान शयन करने से, किसी के चीखने-चिल्लाने से, जन्म-घूंटी आदि दवाई पिलाने से, घुटने-घुटने चलने से, पैरों पर खड़े होने में प्रवृत्त होने से, चलते-चलते गिर जाने से, स्तन को टटोलने से, दूध मांगने से, खिलौना मांगने से, मिठाई मांगने से, कूर मांगने से, इसी प्रकार पानी मांगने से, हंसने से, रूठ जाने से, गुस्सा करने से, झगड़ने से, आपस में मारपीट करने से, उसका पीछा करने से, रोने से, आक्रंदन करने से, विलाप करने से, छीना- छपटी करने से, कराहने से, ऊंघने से, प्रलाप करने से, पेशाब आदि करने से, उलटी कर से, छेरने से, मूतने से, सदैव उन बच्चों के मल-मूत्र वमन से लिपटे शरीरवाली तथा मैले-कुचैले कपड़ों से कांतिहीन यावत् अशुचि से सनी हुई होने से देखने में बीभत्स और अत्यन्त दुर्गन्धित होने के कारण राष्ट्रकूट के साथ विपुल कामभोगों को भोगने में समर्थ नहीं हो सकेगी । ऐसी अवस्था में किसी समय रात को पिछले प्रहर में अपनी और अपने कुटुम्ब की स्थिति पर विचार करते हुए उस सोमा ब्राह्मणी को विचार उत्पन्न होगा- 'मैं इन बहुत से अभागे, दुःखदायी एक साथ थोड़े-थोड़े दिनों के बाद उत्पन्न हुए छोटे-बड़े और नवजात बहुत से दारकदारिकाओं यावत् बच्चे-बच्चियों में से यावत् उनके मल-मूत्र - वमन आदि से लिपटी रहने के कारण अत्यन्त दुर्गन्धमयी होने से राष्ट्रकूट के साथ भोगों का अनुभव नहीं कर पा रही हूँ । माताएँ धन्य हैं यावत् उन्होंने मनुष्यजन्म और जीवन का सुफल पाया है, जो वंध्या हैं, प्रजननशीला नहीं होने से जानु-कूर्पर की माता होकर सुरभि सुगंध से सुवासित होकर विपुल मनुष्य सम्बन्धी भोगोपभोगों को भोगती हुई समय बिताती हैं । सोमा ने जब ऐसा विचार किया कि उस काल और उसी समय ईर्या आदि समितिओं से युक्त यावत् बहुत-सी साध्वियों के साथ सुव्रता नाम की आर्याएँ उस बिभेल सन्निवेश में आएँगी और अनगारोचित अवग्रह लेकर स्थित होंगी । तदनन्तर उन सुव्रता आर्याओ का एक संघाड़ा बिभेल सन्निवेश के उच्च, सामान्य और मध्यम परिवारों में गृहसमुदानी भिक्षा के लिए घूमता हुआ राष्ट्रकूट के घर में प्रवेश करेगा । तब वह सोमा ब्राह्मणी उन आर्याओं को आते देखकर हर्षित और संतुष्ट होगी । शीघ्र ही अपने आसन से उठेगी, सात-आठ डग उनके सामने आएगी । वंदन नमस्कार करेगी 9 11

Loading...

Page Navigation
1 ... 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225