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आतुरप्रत्याख्यान-५३
१८३ करता हूँ।
५४] दीर्धकाल के अभ्यास बिना अकाल में (अनसन करनेवाले) वो पुरुष मरण के अवसर पर पहले किए हुए कर्म के योग से पीछे भ्रष्ट होते है । (दुर्गति में जाते है)।
[५५] उसके लिए राधावेध (को साधनेवाले पुरुष) की तरह लक्ष्यपूर्वक उद्यमवाले पुरुष मोक्षमार्ग की जिस तरह साधना करते है उसी तरह अपने आत्मा को ज्ञानादि गुण के सहित करना चाहिए ।
[५६] वह (मरण के) अवसर पर बाहरी (पौद्गलिक) व्यापार रहित, अभ्यन्तर (आत्म स्वरूप) ध्यान में मग्न, सावधान मनवाला होकर शरीर का त्याग करता है ।
[५७] राग-द्वेष का वध करके, आठ कर्म के समूह को नष्ट करके, जन्म और मरण समान अरहट्ट को भेदकर तुं संसार से अलग हो जाएगा ।
[५८] इस प्रकार से त्रस और स्थावर का कल्याण करनेवाला, मोक्ष मार्ग का पार दिलानेवाला, जिनेश्वरने बताया हुए सर्व उपदेश का मन, वचन, काया से मैं श्रद्धा करता हूँ।
[५९] उस (मरण के) अवसर पर अति समर्थ चित्तवाले से भी बारह अंग समान सर्व श्रुतस्कंध का चिंतवन करना मुमकीन नहीं है ।
[६०] (इसलिए) वीतराग के मार्ग में जो एक भी पद से मानव बार-बार वैराग पाए उस पद सहित (उसी पद का चितवन करते हुए) तुम्हे मृत्यु को प्राप्त करना उचित है ।
[६१] उसके लिए मरण के अवसर में आराधना के उपयोगवाला जो पुरुष एक श्लोक की भी चिंतवना करता रहे तो वह आराधक होता है ।
[६] आराधना के उपयोगवाला, सुविहित (अच्छे आचारखाला) आत्मा अच्छी तरह से (समाधि भाव से) काल करके उत्कृष्ट से तीन भव में मोक्ष पाता है ।
[६३] प्रथम तो मैं साधु हूँ । दुसरा सभी चीज में संयमवाला हूँ (इसलिए) सबको वोसिराता हूँ, यह संक्षेप में कहा है ।
[६४] जिनेश्वर भगवान के आगम में कहा गया अमृत समान और पहले नहीं पानेवाला (आत्मतत्त्व) मैंने पाया है । और शुभ गति का मार्ग ग्रहण किया है इसलिए मैं मरण से नहीं डरता ।
[६५] धीर पुरुष को भी मरना पड़ता है, कायर पुरुष को भी यकीनन मरना पड़ता है, दोनों को भी निश्चय से मरना है, तो धीरपन से मरना ही यकीनन सुन्दर है ।
[६६] शीलवान को भी मरना पड़ता है, शील रहित पुरुष को भी यकीनन मरना पड़ता है, दोनों को भी निश्चय करके मरना है, तो शील सहित मरना ही निश्चय से प्रशंसनीय
[६७] जो कोई भी चारित्रसहित ज्ञान में दर्शन में, और सम्यक्त्व में, सावधान होकर प्रयत्न करेगा तो विशेष करके संसार से मुक्त हो जाएगा ।
[६८] लम्बे समय तक ब्रह्मचर्य का सेवन करनेवाला, शेष कर्म का नाश करके और सर्व क्लेश का नाश करके क्रमिक शुद्ध होकर सिद्धि में जाता है ।।
[६९] कषाय रहित, दान्त (पाँच इन्द्रिय और मन का दमन करनेवाला) शूरवीर, उद्यमवंत और संसार से भय भ्रांत हुए आत्मा का पच्चक्खाण अच्छा होता है ।