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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
करता है । उस जीव की फल के बिंट जैसी कमल की नाल जैसी नाभि होती है । वो रस ग्राहक नाड़ माता की नाभि के साथ जुड़ी होती है । वो नाड़ से गर्भस्थ जीव ओजाहार करता है । और वृद्धि प्राप्त करके उत्पन्न होता है ।
[२३] हे भगवन् ! गर्भ के मातृ अंग कितने है ? और पितृ अंग कितने है ? हे गौतम ! माता के तीन अंग बताए गए है । माँस, लहू और मस्तक, पिता के तीन अंग हैहड्डीयाँ, मज्जा और दाढ़ी-मूंछ, रोम एवं नाखून ।
[२४] हे भगवन् ! क्या गर्भ में रहा जीव (गर्भ में ही मरके) नरक में उत्पन्न होगा? हे गौतम ! कोइ गर्भ में रहा संज्ञी पंचेन्द्रिय और सभी पर्याप्तिवाला जीव वीर्य-विभंगज्ञानवैक्रिय लब्धि द्वारा शत्रुसेना को आई हुई सुनकर सोचे कि मैं आत्म प्रदेश बाहर नीकालता हूँ। फिर वैक्रिय समुद्घात करके चतुरंगिणी सेना की संरचना करता हूँ । शत्रुसेना के साथ युद्ध करता हूँ । वो अर्थ-राज्य-भोग और काम का आकांक्षी, अर्थ आदि का प्यासी, उसी चित्तमन-लेश्या और अध्यवसायवाला, अर्थादि के लिए बेचैन, उसके लिए ही क्रिया करनेवाला, उसी भावना से भावित, उसी काल में मर जाए तो नरक में उत्पन्न होगा । इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि गर्भस्थ कोइ जीव नरक में उत्पन्न होता है । कोइ जीव नहीं होता।
[२५] हे भगवन् ! क्या गर्भस्थ जीव देवलोक में उत्पन्न होता है ? हे गौतम ! कोई जीव उत्पन्न होता है और कोइ जीव नहीं होता । हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हो ? हे गौतम ! गर्भ में स्थित संज्ञी पंचेन्द्रिय और सभी पर्याप्तिवाला जीव वैक्रिय-वीर्य और अवधिज्ञान लब्धि द्वारा वैसे श्रमण या ब्राह्मण के पास एक भी आर्य और धार्मिक वचन सुनकर धारण करके शीघ्रतया संवेग से उत्पन्न हुए तीव्र-धर्मानुराग से अनुरक्त हो । वो धर्म पुण्य-स्वर्ग-मोक्ष का कामी, धर्मादि की आकांक्षावाला, पीपासावाला, उसमें ही चित्त-मन, लेश्या और अध्यवसायवाला, धर्मादि के लिए कोशिश करनेवाला, उसमें ही तत्पर, उसके प्रति समर्पित होकर क्रिया करनेवाला, उसी भावना से भावित होकर उसी समय में मर जाए तो देवलोक में उत्पन्न होता है । इसलिए कोइ जीव देवलोक में उत्पन्न होता है, कोइ जीव नहीं होता ।
[२६] हे भगवन् ! गर्भ में रहा जीव उल्टा सोता है, बगल में सोता है या वक्राकार ? खड़ा होता है या बैठा ? सोता है या जागता है ? माता सोए तब सोता है और जगे तब जगता है ? माता के सुख से सुखी और दुःख से दुःखी रहता है ? हे गौतम ! गर्भस्थ जीव उल्टा सोता है-यावत् माता के दुःख से दुःखी होता है ।
[२७] स्थिर रहनेवाले गर्भ की माँ रक्षा करती है, सम्यक् तरीके से परिपालन करती है, वहन करती है । उसे सीधा रखके और उस प्रकार से गर्भ की और अपनी रक्षा करती है।
[२८] माता के सोने पर सोए, जगने पर जगे, माता के सुखी हो तब सुखी, दुःखी होने पर दुःखी होता है ।
[२९] उसे विष्ठा, मूत्र, कफ, नाक का मैल नहीं होते । और आहार अस्थि, मज्जा, नाखून, केश, दाढ़ी-मूंछ के रोम के रूप में परिणमित होते है ।।
[३०] आहार परिणमन और श्वासोच्छ्वास सब कुछ शरीर प्रदेश से होता है । और