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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
[८२] तो किस लिए साधु को सहाय देनेवाले ऐसे अन्योअन्य संग्रह के बल द्वारा यानि वैयावच करने के द्वारा परलोक के अर्थ से अपने अर्थ की साधना नहीं कर शकते क्या ? (साधना कर शकते है ।)
[८३] अल्प, मधुर और कान को अच्छा लगनेवाला, इस वीतराग का वचन सुनते हुए जीव साधु के बीच अपना अर्थ साधने के लिए वाकई समर्थ हो शकते है ।
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[८४] धीर पुरुषने प्ररुपित किया हुआ, सत्पुरुष ने सेवन किया हुआ और अति मुश्किल ऐसे अपने अर्थ को जो शिलातल उपर रहा हुआ जो पुरुष साधना करता है वह धन्य है ।
[८५] पहले जिसने अपने आत्माका निग्रह नहीं किया हो, उसको इन्द्रियां पीडा देती है, परीषह न सहने के कारण मृत्युकाल में सुख का त्याग करते हुए भयभीत होते है । [८६] पहले जिसने संयम जोग का पालन न किया हो, मरणकाल के लिए समाधि की ईच्छा रखता हो और विषय में लीन रहा हुआ आत्मा परिसह सहन करने को समर्थ नहीं हो शकता ।
[८७] पहले जिसने संयम योग का पालन किया हो, मरण के काल में समाधि की इच्छा रखता हो और विषय सुख से आत्मा को विरमीत किया हो वो पुरुष परिसह को सहन करने को समर्थ हो शकता है ।
[८] पहले संयम योग की आराधना की हो, उसे नियाणा रहित बुद्धि से सोचकर, कषाय त्याग करके, सज्ज होकर मरण को अंगीकार करता है ।
[८९] जिन जीव ने सम्यक् प्रकार से तप किया हो वह जीव अपने क्लिष्ट पाप कर्मो को जलाने को समर्थ हो शकते है ।
[१०] एक पंड़ित मरण का आदर करके वो असंभ्रांत सुपुरुष जल्द से अनन्त मरण का अन्त करेंगे ।
[११] एक पंडित मरण ! और उसके कैसे आलम्बन कहे है ? उन सबको जानकर आचार्य दुसरे किसकी प्रशंसा करेगा ?
[१२] पादपोपगम अणशण, ध्यान और भावनाएँ आलम्बन है, वह जानकर (आचार्य) पंड़ित मरण की प्रशंसा करते है ।
[१३] इन्द्रिय की सुखशाता में आकुल, विषम परिसह को सहने के लिए परवश हुआ हो और जिसने संयम का पालन नहीं किया ऐसा क्लिब (कायर) मानव आराधना के समय घबरा जाता है ।
[९४] लज्जा द्वारा, गारव द्वारा और बहु श्रुत के मद द्वारा जो लोग अपना पाप गुरु को नहीं कहते वो आराधक नहीं बनते ।
[१५] दुष्कर क्रिया करनेवाला हो, मार्ग को पहचाने, कीर्ति पाए और अपने पाप छिपाए बिना उसकी निन्दा करे इसके लिए आराधना श्रेय - कल्याणकारक कही है ।
[९६] तृण का संथारा या प्राशुक भूमि उसकी (विशुद्धि की ) वजह नहीं है लेकिन जो मनुष्य की आत्मा विशुद्ध हो वही सच्चा संथारा कहा जाता है |
[१७] जिन वचन का अनुसरण करनेवाली शुभध्यान और शुभयोग में लीन ऐसी मेरी