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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
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हो उसे भी शुद्ध अणुव्रत मरण के समय आरोपण किये जाते है ।
[३०] नियाणा रहित और उदार चित्तवाला, हर्ष से जिनकी रोमराजी विकस्वर हुइ ऐसा वो गुरु की, संघ की और साधर्मिक की निष्कपट भक्ति द्वारा पूजा करे ।
[३१] प्रधान जिनेन्द्र प्रसाद, जिनबिम्ब और उत्तम प्रतिष्ठा के लिए तथा प्रशस्त ग्रन्थ लिखवाने में, सुतीर्थ में और तीर्थंकर की पूजा के लिए श्रावक अपने द्रव्य का उपयोग करे। [३२] यदि वो श्रावक सर्व विरति संयम के लिए प्रीतिवाला, विरुद्ध मन, (वचन) और कायावाला, स्वजन परिवार के अनुराग रहित, विषय पर खेदवाला और वैराग्यवाला हो[३३] वो श्रावक संथारा समान दीक्षा को अंगीकार करे और नियम द्वारा दोष रहित सर्व विरति रूप पाँच महाव्रत से प्रधान सामायिक चारित्र अंगीकार करे ।
[३४] जब वो सामायिक चारित्र धारण करनेवाला और महाव्रत को अंगीकार करनेवाला साधु और अंतिम पच्चक्खाण करूँ वैसे निश्चयवाला देशविरति श्रावक
[३५] विशिष्ट गुण द्वारा महान गुरु के चरण कमल में मस्तक द्वारा नमस्कार करके कहता है कि हे भगवन् ! तुम्हारी अनुमति से भक्त परिज्ञा अनशन मैं अंगीकार करता हूँ । [३६] आराधना द्वारा उसका ( अनसन लेनेवाले का) और खुद का कल्याण हो ऐसे दिव्य निमित्त जानकर, आचार्य अनसन दिलाए, नहीं तो ( निमित्त देखे बिना अनशन लिया जाए तो ) दोष लगता है ।
[३७] उसके बाद वो गुरु उत्कृष्ट सर्व द्रव्य अपने शिष्य को दिखाकर तीन प्रकार के आहार के जावज्जीव तक पच्चकखाण करवाए ।
[३८] (उत्कृष्ट द्रव्य को) देखकर भव सागर के तट पर पहुँचे हुए मुझे इसके द्वारा क्या काम है ऐसे कोइ जीव चिन्तवन करे; कोइ जीव द्रव्य की इच्छा हो वो भुगतकर संवेग पाने के बावजूद भी उस मुताबिक चिन्तवन करे । क्या मैंने भुगतकर त्याह नहीं किया;
[३९] जो पवित्र पदार्थ हो वो अन्त में तो अशुचि है ऐसे ज्ञान में तत्पर होकर शुभ ध्यान करे; जो विषाद पाए उसे ऐसी चोयणा (प्रेरणा) देनी चाहिए ।
[४०] उदरमल की शुद्धि के लिए समाधिपान (शर्करा आदि का पानी) उसे अच्छा हो तो वो मधुर पानी भी उसे पीलाना चाहिए और थोड़ा-थोड़ा विरेचन करवाना चाहिए । [४१] इलायची, दालचीनी, नागकेसर और तमालपात्र, शक्करवाला दूध ऊबालकर, ठंड़ा करके पिलाए उसे समाधि पानी कहते है । ( उसे पीने से ताप उपशमन होता है ।) [४२] उसके बाद फोफलादिक द्रव्य से मधुर औषध से विरेचन करवाना चाहिए । क्योंकि उससे उदर का अग्नि वूझने से यह ( अनशन को करनेवाला) सुख से समाधि प्राप्त करता है ।
[४३] अनशन करनेवला तपस्वी, जावज्जीव तक तीन तरीके का आहार (अशन, खादिम और स्वादिम) को यहाँ वोसिराता है, इस तरह से निर्यामणा करवानेवाले आचार्य संघ को निवेदन करे ।
[४४] (तपस्वी ) उसको आराधना सम्बन्धी सर्व बात निरुपसर्ग रूप से प्रवर्ते उसके लिए सर्व संघ को दो सौ छप्पन श्वासोश्वास का कायोत्सर्ग करना चाहिए
[४५] उसके बाद उस आचार्य संघ के समुदाय में चैत्यवन्दन विधि द्वारा उस क्षपक