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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
[९५] जो कोई बड़ा सुख, प्रभुता, जो कुछ भी स्वाभाविक तरीके से सुन्दर है, वो, निरोगीपन, सौभाग्यपन, वो सब अहिंसा का फल समजना चाहिए ।
[९६] सुंसुमार द्रह के लिए फेंका गया लेकिन चंडाल ने भी एक दिन में एक जीव बचाने से उत्पन्न होनेवाली अहिंसा व्रत के गुण से देवता का सानिध्य पाया ।
[९७] सभी भी चार प्रकार के असत्य वचन को कोशिश द्वारा त्याग कर, जिसके लिए संयमवंत पुरुष भी भाषा के दोष द्वारा (असत्य भाषण द्वारा कर्म से) लिप्त होते है । वे चार प्रकार के असत्य इस तरह है-असत् वस्तु को प्रकट करना, जिस तरह आत्मा सर्वगत है, दुसरा अर्थ कहना, जैसे गो शब्द से श्वान । सत् को असत् कहना- जैसे आत्मा नहीं है । निंदा करना । जैसे चोर न हो उसे चोर कहना ।
[९८] और फिर हास्य द्वारा, क्रोध द्वारा, लोभ द्वारा और भय द्वारा वह असत्य न बोलना । लेकिन जीव के हित में और सुन्दर सत्य वचन बोलना चाहिए ।
[९९] सत्यवादी पुरुष माता की तरह भरोसा रखने के लायक, गुरु की तरह लोगो को पूजने के लायक और रिश्तेदार की तरह सबको प्यारा लगता है ।।
[१००] जटावंत हो या शिखावंत हो, मुंड हो, वल्कल (पेड़ की छाल के कपड़े) पहननेवाला हो या नग्न हो तो भी असत्यवादी लोगों के लिए पाखंड़ी और चंडाल कहलाता है ।
[१०१] एक बार भी बोला हुआ झूठ कईं सत्य वचन को नष्ट करता है क्योंकि एक असत्य वचन द्वारा वसु राजा नरक में गया ।
[१०२] हे धीर ! अल्प या ज्यादा पराया धन (जैसे कि) दाँत खुतरने के लिए एक शलाका भी, अदत्त (दिए बिना) लेने के लिए मत सोचना ।
[१०३] और फिर जो पुरुष (पराया) द्रव्य हरण करता है वो उसका जीवित भी हर लेता है । क्योंकि वो पुरुष पैसे के लिए जीव का त्याग करता है लेकिन पैसे को नहीं छोड़ता।
[१०४] इसलिए जीवदया समान परम धर्म को ग्रहण करके अदत्त न ले, क्योकि जिनेश्वर भगवान और गणधरोने उसका निषेध किया है, और लोक के विरुद्ध भी है और अधर्म भी है ।
[१०५] चोर परलोक में भी नरक एवं तिर्यंच गति में बहुत दुःख पाता है; मनुष्यभव में भी दीन और दरिद्रता से पीड़ता है ।
[१०६] चोरी से निवर्तनेवाले श्रावक के लड़के ने जिस तरह से सुख पाया, कीढ़ी नाम की बुढ़िया के घर में चोर आए । उन चोर के पाँव का अंगूठा बुढ़िया ने मोर के पीछे से बनाया तो उस निशानी राजा ने पहचानकर श्रावक के पुत्र को छोड़कर बाकी सब चोर को मारा ।
[१०७] नव ब्रह्मचर्य की गुप्ति द्वारा शुद्ध ब्रह्मचर्य की तुम रक्षा करो और काम को बहुत दोष से युक्त मानकर हमेशा जीत लो ।
[१०८] वाकई में जितने भी दोष इस लोक और परलोक के लिए दुःखी करवानेवाले है, उन सभी दोष को मानव की मैथुनसंज्ञा लाती है ।
[१०९] रति और अरति समान चंचल दो जीवावाले, संकल्प रूप प्रचंड़ फणावाले,