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भक्तपरिज्ञा- १०९
विपय रूप बिल में बसनेवाले, मदरूप मुखवाले और गर्व से अनादर रूप रोषवाले[११०] लज्जा समान कांचलीवाले, अहंकार रूप दाढ़ वाले और दुःसह दुःख देनेवाले विषवाले, कामरूपी सर्प द्वारा डँसे गए मानव परवश दिखाई देते है ।
[999] रौद्र नरक के दर्द और घोर संसार सागर का वहन करना, उसको जीव पाता है, लेकिन कामित सुखका तुच्छपन नहीं देखता ।
[११२] जैसे काम के सेंकड़ों तीर द्वारा बींधे गए और गृद्ध हुए बनीयें को राजा की स्त्री ने पायखाने की खाल डाल दिया और वो कई दुर्गंध को सहन करते हुए वहाँ रहा । [११३] कामासक्त मानव वैश्यायन तापस की तरह गम्य और अगम्य नहीं जानता । जिस तरह कुबेरदत्त शेठ तुरन्त ही बच्चे को जन्म देनेवाली अपनी माता के सुरत सुख से
रक्त रहा ।
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[११४] कंदर्प से व्याप्त और दोष रूप विष की वेलड़ी समान स्त्रीयों के लिए जिसने काम कलह प्रेरित किया है ऐसे प्रतिबंध के स्वभाव से देखते हुए तुम उसे छोड़ दो । [११५] विषय में अंध होनेवाली स्त्री कुल, वंश, पति, पुत्र, माता एवं पिता को कद्र न करते हुए दुःख समान सागर में गिरती है ।
[११६] स्त्रीयों की नदियाँ के साथ तुलना करने से स्त्री नीचगामीनी, (नदी पक्ष में झुकाव रखनेवाली भूमि में जानेवाली) अच्छे स्तनवाली ( नदी के लिए - सुन्दर पानी धारण करनेवाली) देखने लायक, खूबसूरत और मंद गतिवाली नदियाँ की तरह मेरु पर्वत जैसे बोझ (पुरुष) को भी भेदती है ।
[११७] अति पहचानवाली, अति प्रिय और फिर अति प्रेमवंत ऐसी भी स्त्री के रूप नागिन पर वाकई में कौन भरोसा रखेगा ?
[११८] नष्ट हुई आशावाली (स्त्री) अति भरोसेमंद, अहेसान के लिए तत्पर और गहरे प्रेमवाले लेकिन एक बार अप्रिय करनेवाले पति को जल्द ही मरण की ओर ले जाती है ।
[११९] खूबसूरत दिखनेवाली, सुकुमार अंगवाली और गुण से (दोर से) बंधी हुई नई जाई की माला जैसी स्त्री पुरुष के दिल को चुराती है ।
[१२०] लेकिन दर्शन की सुन्दरता से मोह उत्पन्न करनेवाली उस स्त्रीीं के आलिंगन समान मदिरा, कणेर की वध्य (वध्य पुरुष के गले में पहनी गई ) माला की तरह पुरुष का विनाश करती है ।
[१२१] स्त्रीओं का दर्शन वाकईं में खूबसूरत होता है, इसलिए संगम के सुख से क्या लाभ ? माला की सुवास भी खुश्बुदार होती है, लेकिन मर्दन विनाश समान होता है । [१२२] साकेत नगर का देवरति नाम का राजा राज के सुख से भ्रष्ट हुआ क्योंकि रानी ने पांगले के राग की वजह से उसे नदी में फेंक दिया और वो नदी में डूब गया । [१२३] स्त्री शोक की नदी, दुरित की (पाप की ) गुफा, छल का घर, क्लेश करनेवाली, समान अग्नि को जलानेवाले अरणी के लकड़े जैसी, दुःख की खान और सुख की प्रतिपक्षी
है ।
[१२४] काम रूपी तीर के विस्तारवाले मृगाक्षी (स्त्रीं) के दृष्टि के कटाक्ष के लिए मन के निग्रह को न जाननेवाला कौन-सा पुरुष सम्यक् तरीके से भाग जाने में समर्थ होगा ?