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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
नमो नमो निम्मलदंसणस्स
२२ पुष्पचूलिका
उपांगसूत्र- ११ - हिन्दी अनुवाद
अध्ययन - १ - से - १०
[१] हे भदन्त ! यदि मोक्षप्राप्त यावत् श्रमण भगवान् महावीर ने पुष्पिका नामक तृतीय उपांग का यह अर्थ प्रतिपादित किया है तो चतुर्थ उपांग का क्या अर्थ - कहा है ? है जम्बू ! चतुर्थ उपांग पुष्पचूलिका के दस अध्ययन प्रतिपादित किए हैं, वे इस प्रकार हैं[२] श्रीदेवी, ह्रीदेवी, धृतिदेवी, कीर्तिदेवी, बुद्धिदेवी, लक्ष्मीदेवी, इलादेवी, सुरादेवी, रसदेवी और गन्ध देवी |
[३] हे भदन्त ! श्रमण यावत् मोक्षप्राप्त भगवान् महावीर ने प्रथम अध्ययन का क्या आशय बताया है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था । गुणशिलक चैत्य था । श्रेणिक राजा था । श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे । परिषद् निकली। उस काल और उस समय श्रीदेवी सौधर्मकल्प में श्री अवतंसक विमान की सुधर्मासभा में बहुपुत्रिका देवी के समान श्रीसिंहासन पर बैठी हुई थी उसने अवधिज्ञान से भगवान् को देखा। यावत् नृत्य - विधि को प्रदर्शित कर वापिस लौट गई । यहाँ इतना विशेष है कि श्रीदेवी ने अपनी नृत्यविधि में बालिकाओं की विकुर्वणा नहीं की थी । गौतमस्वामी ने भगवान् पूर्वभव के विषय में पूछा । हे गौतम! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था । गुणशिलक चैत्य था, राजा जितशत्रु था । उस राजगृह नगर में धनाढ्य सुदर्शन नाम का गाथापति था । उसकी सुकोमल अंगोपांग, सुन्दर शरीर वाली आदि विशेषणों से विशिष्ट प्रिया नाम की भार्या थी । उस सुदर्शन गाथापति की पुत्री, प्रिया गाथापत्नी की आत्मजा भूता नाम की दारिका थी । जो वृद्धशरीर और वृद्धकुमारी, जीर्णशरीरखाली और जीर्णकुमारी, शिथिल नितम्ब और स्तनवाली तथा वरविहीन थी ।
उस काल और उस समय में पुरुषादानीय एवं नौ हाथ की अवगाहनावाले इत्यादि रूप से वर्णनीय अर्हत् पार्श्व प्रभु पधारे । परिषद् निकली । भूता दारिका इस संवाद को सुनकर हर्षित और संतुष्ट हुई और माता-पिता से आज्ञा मांगी - 'हे मात - तात ! पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् यावत् शिष्यगण से परिवृत होकर बिराजमान हैं । आपकी आज्ञा - अनुमति लेकर मैं वंदना के लिए जाना चाहती हूँ । 'देवानुप्रिये ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो, किन्तु विलम्ब मत करो ।' तत्पश्चात् भूता दारिका ने स्नान किया यावत् शरीर को अलंकृत करके दासियों के समूह के साथ अपने घर से निकली । उत्तम धार्मिक यान - पर आसीन हुई । इसके बाद वह भूता दारिका अपने स्वजन - परिवार को साथ लेकर राजगृह नगर के मध्य भाग में से निकली । पार्श्व प्रभु विराजमान थे, वहाँ आई । तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा करके वंदना की यावत् पर्युपासना करने लगी । तदनन्तर पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्वप्रभु ने उस भूता बालिका