Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 181
________________ १८० आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद चिंतवना किये हुए ... झूठे आचार का चिंतवन किये हुए, बौद्धादिक कुदर्शन अच्छा ऐसा चितवन किये हुए, क्रोध, मान, माया और लोभ, राग, द्वेष और मोह के लिए चिंतन किये हुए, (पुद्गल पदार्थ और यश आदि की) इच्छा के लिए चिंतन हुए, मिथ्यादृष्टिपन का चितवन किये हुए, मूर्च्छा के लिए चिंतवे हुए, संशय से, या अन्यमत की वांछा से चिंतवन किये हुए, घर के लिए चिंतवे हुए, दुसरों की चीजे पाने की वांछा से चिंतवे वन किये हुए, भूख और प्यास से चिंत हुए, सामान्य मार्ग में या विषम मार्ग में चलने के बाद भी चिंतवे हुए, निंद्रा में चिंतवे हुए, नियाणा चिंतवे हुए, स्नेहवश से, विकार के या चित्त को डहोणाण से चिंतवे हुए, क्लेश, मामूली युद्ध के लिए चिंतवे हुए या महायुद्ध के लिए चिंतवन किये हुए, संग चिंत हुए, संग्रह चिंतवे हुए, राजसभा में न्याय के लिए चिंतवे हुए, खरीद करने के लिए और बेचने के लिए चिंत हुए, अनर्थ दंड चिंतवे हुए, उपयोग या अनुपयोग से चिंतवे हुए, खुद पर कर्जा हो उसके लिए चिंतवे हुए, वैर-तर्क, वितर्क, हिंसा, हास्य के लिए, अतिहास्य के लिए, अति रोष करके या कठोर पाप कर्म चिंतवन किये हुए, भय चिंतवे हुए, रुप चिंतवे हुए, अपनी प्रशंसा दुसरो की निंदा, या दुसरो की गर्हां चिंतवे हुए, धनादिक परिग्रह पाने को चिंतवे हुए, आरम्भ चिंतवे हुए, विषय के तीव्र अभिलाष से संरभ चिंतवे हुए, पाप कार्य अनुमोदन समान चिंतवे हुए, जीवहिंसा के साधन को पाने को चिंतवे हुए, असमाधि में मरना चिंतवे हुए, गहरे कर्म के उदय द्वारा चिंतवे हुए, ऋषि के अभिमान से या सुख के अभिमान से चिंत हुए, अविरति अच्छी ऐसा चिंतवे हुए, संसार सुख के अभिलाष सहित मरण चितवन किये हुए ... दिवस सम्बन्धी या रात सम्बन्धी सोते या जागते किसी भी अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार या अनाचार लगा हो उसका मुजे मिच्छामि दुक्कड़म् हो । [१२] जिनो में वृषभ समान वर्द्धमान स्वामी को और फिर गणधर सहित बाकी के सभी तीर्थंकर को मैं नमस्कार करता हूँ । [१३] इस प्रकार से मैं सभी प्राणीओ के आरम्भ, अलिक (असत्य) वचन, सर्व अदत्तादान (चोरी), मैथुन और परिग्रह का पच्चखाण करता हूँ । [१४] मुझे सभी जीव के साथ मैत्रीभाव है । किसी के साथ मुझे वैर नहीं है, वांच्छा का त्याग करके मै समाधि रखता हूँ । [१५] सभी प्रकार की आहार विधि का, संज्ञाओ का, गावो का, कषायो का और सभी ममता का त्याग करता हूँ; सब को खमाता हूँ । [१६] यदि मेरे जीवित का उपक्रम (आयु का नाश ) इस अवसर में हो, तो यह पञ्चकखाण और विस्तारवाली आराधना मुझे हो । [१७] सभी दुःख क्षय हुए है जिनके ऐसे सिद्ध को और अरिहंत को नमस्कार हो, जिनेश्वरोने कहे हुए तत्त्व मैं सद्दहता हूँ, पापकर्म को पच्चक्खाण करता हूँ । [१८] जिनके पाप क्षय हुए है, ऐसे सिद्ध को और महा ऋषि को नमस्कार हो, जिस तरह से केवलीओ ने बताया है वैसा संथारा मैं अंगीकार करता हूँ । [१९] जो कुछ भी झूठ का आचरण किया हो उन सबको मन, वचन काया से वसिता हूँ । सर्व आगार रहित (ज्ञान, श्रद्धा और क्रिया रूप) तीन प्रकार की सामायिक मैं हूँ ।

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