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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
उपाध्याय का जो में उपाध्यायपन । तथा
[ ५७ ] साधु का जो उत्तम चरित्र, श्रावक लोग का देशविरतिपन और समकितदृष्टि का समकित, उन सबका मैं अनुमोदन करता हूँ ।
[ ५८ ] या फिर वीतराग के वचन के अनुसार जो सर्व सुकृत तीन काल में किया हो वो तीन प्रकार से ( मन, वचन और काया से) हम अनुमोदन करते है |
[ ५९ ] हंमेशा शुभ परीणामवाले जीव चार शरण की प्राप्ति आदि का आचरण करता हुआ पुन्य प्रकृति को बाँधता है और (अशुभ) बाँधी हुई प्रकृति को शुभ अनुबंधवाली करते आ
[६०] और फिर वो शुभ परिणामवाला जीव जो (शुभ) प्रकृति मंद रसवाली बाँधी हो उसे ही तीव्र रसवाली करता है, और अशुभ (मंद रसवाली) प्रकृत्ति को अनुबंध रहित करते है, और तीव्र रसवाली को मंद रसवाली करते है ।
[६१] उसके लिए पंड़ित पुरुषो को संक्लेश में (रोग आदि वजह में) यह आराधन हमेशा करना चाहिए, असंक्लेशपन में भी तीनों काल में अच्छी तरह से करना चाहिए, यह आराधन सुकृत के उपार्जन समान फल का निमित्त है ।
[६२] जो (दान, शियल, तप और भाव समान) चार अंगवाला जिनधर्म न किया, जिसने (अरिहंत आदि) चार तरीके का शरण भी न किया, और फिर जिसने चार गति समान संसार का छेद न किया हो, तो वाकई में मानव जन्म हार गया है ।
[ ६३ ] हे जीव ! इस तरह प्रमादसमान बड़े शत्रु को जीतनेवाला, कल्याणरूप और मोक्ष के सुख का अवंध्य कारणरूप इस अध्ययन का तीन संध्या में ध्यान करो ।
२४ | चतुःशरण- प्रकीर्णक - १ - हिन्दी अनुवाद पूर्ण