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चतुःशरण-१२
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[१२] अब तीर्थंकर की भक्ति के समूह से उछलती रोमराजी समान बख्तर से शोभायमान वो आत्मा काफी हर्ष और स्नेह सहित मस्तक झुकाकर दो हाथ जुड़कर इस मुताबिक कहता
[१३] राग और द्वेष समान शत्रु का घात करनेवाले, आठ कर्म आदि शत्रु को हणनेवाले और विषय कषाय आदि वैरी को हणनेवाले अरिहंत भगवान मुझे शरण हो ।
[१४] राज्य लक्ष्मी का त्याग करके, दुष्कर तप और चारित्र का सेवन करके केवल ज्ञान रूपी लक्ष्मी के योग्य अरहंत मुझे शरण रूप हो ।
[१५] स्तुति और वंदन के योग्य, इन्द्र और चक्रवर्ती की पूजा के योग्य और शाश्वत सुख पाने के लिए योग्य अरहंत मुजे शरणरूप हो ।
[१६] दुसरो के मन के भाव को जाननेवाले, योगेश्वर और महेन्द्र को ध्यान करने योग्य और फिर धर्मकथी अरहंत भगवान मुजे शरणरूप हो ।
[१७] सर्व जीव की दया पालने योग्य, सत्य वचन के योग्य, ब्रह्मचर्य पालने के योग्य अरहंत मुजे शरणरूप हो ।
[१८] समवसरण में बैठकर चौतीस अतिशय का सेवन करते हुए धर्मकथा कहनेवाले अरिहंत मुजे शरणरूप हो ।
[१९] एक वचन द्वारा जीव के कई संदेह को एक ही काल में छेदनेवाले और तीनों जगत को उपदेश देनेवाले अरिहंत मुजे शरणरूप हो ।
[२०] वचनामृत द्वारा जगत को शान्ति देनेवाले, गुण में स्थापित करनेवाले, जीव लोक का उद्धार करनेवाले अरिहंत भगवान मुजे शरणरूप हो ।
[२१] अति अद्भूत गुणवाले, अपने यश समान चन्द्र द्वारा दिशाओ के अन्त को शोभायमान करनेवाले, शाश्वत अनादि अनन्त अरिहंत को शरणरूप से मैंने अंगीकार किया है ।
[२२] बुढ़ापा और मृत्यु का सर्वथा त्याग करनेवाले, दुःख से त्रस्त समस्त जीव को शरणभूत और तीन जगत के लोक को सुख देनेवाले अरिहंत को मेरा नमस्कार हो ।
[२३] अरिहंत के शरण से होनेवाली कर्म समान मेल की शुद्धि के द्वारा जिसे अति शुद्ध स्वरुप प्रकट हुआ है वैसे सिद्ध परमात्मा के लिए जिन्हें आदर है ऐसा आत्मा झुके हुए मस्तक से विकस्वर कमल की दांड़ी समान अंजलि जोड़कर हर्ष सहित (सिद्ध का शरण) कहते है ।
[२४] आठ कर्म के क्षय से सिद्ध होनेवाले, स्वाभाविक ज्ञान दर्शन की समृद्धिवाले और फिर जिन्हें सर्व अर्थ की लब्धि सिद्ध हुई है वैसे सिद्ध मुजे शरणरूप हो ।
[२५] तीन भुवन के मस्तक में रहे और परमपद यानि मोक्ष पानेवाले, अचिंत्य बलवाले, मंगलकारी सिद्ध पद में रहे और अनन्त सुख देनेवाले प्रशस्त सिद्ध मुजे शरण हो ।
[२६] राग-द्वेष समान शत्रु को जड़ से उखाड देनेवाले, अमूढ़ लक्ष्यवाले (सदा उपयोगवंत) सयोगी केवलीओ को प्रत्यक्ष दिखनेवाले, स्वाभाविक सुख का अनुभव करनेवाले उत्कृष्ट मोक्षवाले सिद्ध (मुजे) शरणरूप हो ।
[२७] रागादिक शत्रु का तिरस्कार करनेवाले, समग्र ध्यान समान अग्नि द्वारा भवरूपी