________________
आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
शिलक चैत्य था । श्रेणिक राजा था । स्वामी पधारे । परिषद् दर्शन करने निकली । उस काल और उस समय सौधर्मकल्प में पूर्णभद्र विमान की सुधर्मासभा में पूर्णभद्र सिंहासन पर आसीन होकर पूर्णभद्र देव सूर्याभदेव के समान विचर रहा था । उसने अवधिज्ञान से भगवान् को देखा । भगवान् की सेवा में उपस्थित हुआ, वन्दन नमस्कार करके यावत् बत्तीस प्रकार की नृत्यविधियों को प्रदर्शित कर वापिस लौट गया । तब गौतमस्वामी ने भगवान् से उस देव की दिव्य देव ऋद्धि आदि के विषय में पूछा । गौतम ! उस काल और उस समय इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में धन वैभव इत्यादि से समृद्धि - मणिपदिका नगरी थी । राजा चन्द्र था और ताराकीर्ण नाम का उद्यान था । उस नगरी में पूर्णभद्र नाम का एक सद्गृहस्थ रहता था, जो धन-धान्य इत्यादि से संपन्न था । उस काल और उस समय जाति एवं कुल से संपन्न यावत्, बहुश्रुत स्थविर भगवन्त बहुत बड़े अन्तेवासी परिवार के साथ समवसृत हुए। जनसमूह धर्मदेशना श्रवण करने निकला ।
पूर्णभद्र गाथापति उन स्थविरों के आगमन का वृत्तान्त जानकर यावत् भगवती-सूत्रोक्त गंगदत्त के समान गया यावत् उनके पास प्रव्रजित हुआ यावत् ईर्यासमिति आदि से युक्त गुप्तब्रह्मचारी अनगार हो गया । तत्पश्चात् पूर्णभद्र अनगार ने उन स्थविर भगवन्तों से सामायिक से प्रारंभ कर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और बहुत से चतुर्थ, षष्ठ, अष्टमभक्त आदि तपः कर्म से आत्मा को परिशोधित करके बहुत वर्षों तक श्रामण्यपर्याय का पालन किया । मासिक संलेखनापूर्वक साठ भोजनों का अनशन द्वारा छेदन कर आलोचनापूर्वक समाधि प्राप्त कर काल करके सौधर्मकल्प के पूर्णभद्र विमान में देव रूप से उत्पन्न हुआ । यावत् भाषामन पर्याप्ति से पर्याप्त भाव को प्राप्त किया । भदन्त ! पूर्णभद्र देव की कितने काल की स्थिति बताई है ? 'गौतम ! दो सागरोपम की ।' 'भगवन् ! वह पूर्णभद्र देव उस देवलोक से च्यवन करके कहाँ जाएगा 'गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्ध होगा यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेगा ।'
१६४
अध्ययन - ६ - माणिभद्र
[१०] भगवन् ! यदि श्रमण यावत् निर्वाणप्राप्त भगवान् ने पुष्पिका के पंचम अध्ययन का यह आशय कहा है तो के षष्ठ अध्ययन का क्या अर्थ बताया है ? आयुष्यमन् जम्बू ! उस काल और उस समय राजगृह नगर था । गुणशिलक चैत्य था । राजा श्रेणिक था । महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ । मणिभद्र देव सुधर्मासभा के मणिभद्र सिंहासन पर बैठकर यावत् रहा था । पूर्वभद्र देव के समान वह भी भगवान् के समवसरण में आया और वापिस लौट गया । गौतम स्वामी ने उसको देव ऋद्धि एवं पूर्वभव के विषय में पूछा । भगवान् ने कहा- उस काल और उस समय मणिपदिका नगरी थी । मणिभद्र गाथापति था । उसने स्थविरों के समीप प्रव्रज्या अंगीकार की । ग्यारह अंगों का अध्ययन किया । बहुत वर्षों तक श्रामण्यपर्याय का पालन किया और मासिक संलेखना की । पापस्थानों का आलोचन करके समाधिपूर्वक मरण करके मणिभद्र विमान में उत्पन्न हुआ । वहाँ उसकी दो सागरोपम की स्थिति है । अन्त में उस देवलोक से च्यवन करके महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा और सर्व दुःखों का अन्त करेगा ।