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पुष्पिका-४/८
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विहीन होने के कारण उसका हृदय स्फटिक के समान निर्मल होगा, निर्ग्रन्थ श्रमण भिक्षा के लिए सुगमता से प्रवेश कर सकें, अतः उसके घर का द्वार सर्वदा खुला होगा । सभी के घरों, में उसका प्रवेश प्रीतिजनक होगा । चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णमासी को परिपूर्ण पौषधव्रत का सम्यक् प्रकार से परिपालन करते हुए श्रमण-निर्ग्रन्थों को प्रासुक एषणीय-निर्दोष आहार, पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक-आसन, वस्त्र, पात्र, कंबल, रजोहरण, औषध, भेषज से प्रतिलाभित करती हुई एवं यथाविधि ग्रहण किए हुए विविध प्रकार के शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान, पौषधोपवासों से आत्मा को भावित करती हुई रहेगी ।
सुव्रता आर्या किसी समय ग्रामानुग्राम में विचरण करती हुई यावत् पुनः बिभेल संनिवेश में आएंगी । तब वह सोमा ब्राह्मणी हर्षित एवं संतुष्ट हो, स्नान कर तथा अलंकारों से विभूषित हो पूर्व की तरह दर्शनार्थ निकलेगी यावत् वंदन-नमस्कार करके धर्म श्रवण कर यावत् सुव्रता आर्या से कहेगी-मैं राष्ट्रकट से पूछकर आपके पास मुंडित होकर प्रव्रज्या ग्रहण करना चाहती हूँ । तब सुव्रता आर्या कहेंगी-देवानुप्रिये ! तुम्हें जिसमें सुख हो वैसा करो, किन्तु शुभ कार्य में विलम्ब मत करो । इसके बाद सोमा ब्राह्मणी उन सुव्रता आर्याओं को वंदन-नमस्कार करके जहाँ राष्ट्रकूट होगा, वहाँ आएगी । दोनों हाथ जोड़कर पूर्व के समान पूछेगी कि आपकी आज्ञा लेकर आनगारिक प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहती हूँ । इस बात को सुनकर राष्ट्रकूट कहेगादेवानुप्रिये ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो, इसके पश्चात् राष्ट्रकूट विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम चार प्रकार के भोजन बनवाकर अपने मित्र जाति-बांधव, स्वजन, संबन्धियों को आमंत्रित करेगा । इत्यादि, पूर्वभव में सुभद्रा के समान यहाँ भी वह प्रव्रजित होगी और आर्या होकर ईर्यासमिति आदि समितियों एवं गुप्तियों से युक्त होकर यावत् गुप्त ब्रह्मचारिणी होगी ।
तदनन्तर वह सोमाआर्या सुव्रताआर्या से सामायिक आदि से लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन करेगी । विविध प्रकार के बहुत से चतुर्थ, षष्ठ, अष्टम, दशम, द्वादशभक्त आदि विचित्र तपःकर्म से आत्मा को भावित करती हुई बहुत वर्षों तक श्रमण-पर्याय का पालन करेगी । मासिक संलेखना से आत्मा शुद्ध कर, अनशन द्वारा साठ भोजनों को छोड़कर, आलोचना प्रतिक्रमणपूर्वक समाधिस्थ हो, मरण करके देवेन्द्र देवराज शक्र के सामानिक देव के रूप में उत्पन्न होगी । उस सोमदेव की दो सागरोपम की स्थिति होगी । तब गौतमस्वामी ने पूछा-'भदन्त ! वह सोम देव आयुक्षय, भवक्षय और स्थितिक्षय होने के अनन्तर देवलोक से चयकर कहाँ जाएगा ? 'हे गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्ध होगा यावत् सर्व दुःखों का अंत करेगा ।' 'आयुष्मन् जम्बू ! इस प्रकार से भगवान् महावीर ने पुष्पिका के चतुर्थ अध्ययन का यह भाव निरूपण किया है । ऐसा मैं कहता हूँ।' अध्ययन-४-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(अध्ययन-५-पूर्णभद्र) [९] भगवन् ! यदि श्रमण यावत् निर्वाणप्राप्त भगवान् महावीर ने पुष्पिका नामक उपांग के चतुर्थ अध्ययन का यह भाव प्रतिपादन किया है तो भगवन् ! पंचम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? आयुष्मन् जम्बू ! उस काल और उस समय राजगृह नगर था ।