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पुष्पिका-२/४
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तरह संयम की विराधना करके मरण को प्राप्त होकर सूर्यविमान में देव रूप से उत्पन्न हुआ । आयुक्षय होने के अनन्तर वहाँ से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्धि प्राप्त करेगा यावत् सर्व दुखों का अन्त करेगा ।
अध्ययन-३ [५] भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीर ने पुष्पिका के द्वितीय अध्ययन का यह आशय प्ररूपित किया है तो तृतीय अध्ययन का क्या भाव बताया है-आयुष्मन् जम्बू ! राजगृह नगर था । गुणशिलक चैत्य था । राजा श्रेणिक था । स्वामी का पदार्पण हुआ । परिषद् निकली । उस काल और उस समय में शुक्र महाग्रह शुक्रावतंसक विमान में शुक्र सिंहासन पर बैठा था । ४००० सामानिक देवों आदि के साथ नृत्य गीत आदि दिव्य भोगों को भोगता हुआ विचरण कर रहा था आदि । वह चन्द्र के समान भगवान् के समवसरण में आया । नृत्यविधि दिखाकर वापिस लौट गया । गौतमस्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर से उसकी दैविक ऋद्धि आदि के अन्तर्लीन होने के सम्बन्ध में पूछा । भगवान् ने कूटाकार शाला के दृष्टान्त द्वारा गौतम का समाधान किया । गौतम स्वामी ने पुनः उसके पूर्वभव के सम्बन्ध में पूछा ।
गौतम ! उस काल और समय में वाराणसी नगरी थी । सोमिल नामक माहण था । वह धन-धान्य आदि से संपन्न-समृद्ध यावत् अपरिभूत था । ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद इन चार वेदों, पांचवें इतिहास, छठे निघण्टु नामक कोश का तथा सांगोपांग रहस्य सहित वेदों का सारक, वारक, धारक, पारक, वेदों के षट्-अंगों में, एवं षष्ठितंत्र में विशारद था । गणितशास्त्र, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्दशास्त्र, निरुक्तशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र तथा दूसरे बहुत से ब्राह्मण और पब्रिाजको सम्बन्धी नीति और दर्शनशास्त्र आदि में अत्यन्त निष्णात था। पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व प्रभु पधारे । परिषद् निकली और पर्युपासना करने लगी । सोमिल ब्राह्मण को यह संवाद सुनकर इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ-पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व प्रभु पूर्वानुपूर्वी के क्रम से गमन करते हुए यावत् आम्रशालवन में विराज रहे हैं । अतएव मैं जाऊं
और अर्हत् पार्श्वप्रभु के सामने उपस्थित होऊं एवं उनसे यह तथा इस प्रकार के अर्थ हेतु, प्रश्न, कारण और व्याख्या पूछू । तत्पश्चात् सोमिल घर से निकला और भगवान् की सेवा में पहुंचकर पूछा-भगवन् ! आपकी यात्रा चल रही है ? यापनीय है ? अव्याबाध है ? और आपका प्रासुक विहार हो रहा है ? आपके लिए सरिसव मास कुलत्थ भक्ष्य हैं या अभक्ष्य हैं ? आप एक हैं ? यावत् सोमिल संबुद्ध हुआ और श्रावक धर्म को अंगीकार करके वापिस लौट गया । तदनन्तर वह सोमिल ब्राह्मण किसी समय असाधु दर्शन के कारण एवं निर्ग्रन्थ श्रमणों की पर्युपासना नहीं करने से-मित्यात्व पर्यायों के प्रवर्धमान होने से तथा सम्यक्त्व पर्यायों के परिहीयमान होने से मिथ्यात्व भाव को प्राप्त हो गया ।
इसके बाद किसी एक समय मध्यरात्रि में अपनी कौटुम्बिक स्थिति पर विचार करते हुए उस सोमिल ब्राह्मण को यह और इस प्रकार का आन्तरिक यावत् मानसिक संकल्प उत्पन्न हुआ मैं वाराणसी नगरी का रहनेवाला और अत्यन्त शुद्ध ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुआ हूँ । मैंने