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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
और अनशन द्वारा साठ भक्तों का त्याग करके अनुक्रम से कालगत हुआ । भगवान् गौतम ने पद्ममुनि के भविष्य के विषय में प्रश्न किया । स्वामी ने उत्तर दिया कि यावत् अनशन द्वारा साठ भोजनों का छेदन कर, आलोचना-प्रतिक्रमण कर सुदूर चंद्र आदि ज्योतिष्क विमानों के ऊपर सौधर्मकल्प में देव रूप से उत्पन्न हुआ है । वहाँ दो सागरोपम की उसकी आयु है । भदन्त ! वह पद्मदेव आयुक्षय के अनन्तर उस देवलोक से च्यवन करके कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा । दृढप्रतिज्ञ के समान यावत् जन्म-मरण का अंत करेगा। इस प्रकार हे आयुष्यमन् जम्बू ! कल्पावतंसिका के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है ।
अध्ययन - १ - का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
अध्ययन- २ - महापद्म
[२] भदन्त ! यदि श्रमण यावत् निर्वाणप्राप्त भगवान् ने कल्पावतंसिका के प्रथम अध्ययन का उक्त भाव प्रतिपादित किया है तो उसके द्वितीय अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? आयुष्यमन् जम्बू ! उस काल और उस समय में चंपा नगरी थी । पूर्णभद्र चैत्य था । उस चंपानगरी में श्रेणिक राजा की भार्या कूणिक राजा की विमाता सुकाली रानी थी । उस सुकाली का पुत्र सुकाल राजकुमार था । उस राजकुमार सुकाल की सुकुमाल आदि विशेषता युक्त महापद्मा नाम की पत्नी थी । उस महापद्मा ने किसी एक रात्रि में सुखद शैया पर सोते हुए एक स्वप्न देखा, इत्यादि पूर्ववत् । बालक का जन्म हुआ और उसका महापद्म नामकरण किया गया यावत् वह प्रव्रज्या अंगीकार करके महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा । विशेष यह कि ईशान कल्प में उत्पन्न हुआ । वहाँ उसे उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक दो सागरोपम हुई । अध्ययन - ३ से १०
[३] इसी प्रकार शेष आठों ही अध्ययनों का वर्णन जान लेना । पुत्रों के समान ही माता के नाम हैं, पद्म और महापद्म अनगार की पाँच-पाँच वर्ष की, भद्र, सुभद्र और पद्मभद्र की चार-चार वर्ष की, पद्मसेन, पद्मगुल्म और नलिनीगुल्म की तीन-तीन वर्ष की तथा आनन्द और नन्दन की दीक्षापर्याय दो-दो वर्ष की थी । ये सभी श्रेणिक राजा के पौत्र थे । अनुक्रम से इनका जन्म हुआ । देहत्याग के पश्चात् प्रथम का सौधर्मकल्प में, द्वितीय का ईशानकल्प में, तृतीय का सनत्कुमारकल्प में, चतुर्थ का माहेन्द्रकल्प में, पंचम का ब्रह्मलोक में, षष्ठ का लान्तककल्प में, सप्तम का महाशुक्र में, अष्टम का सहस्रारकल्प में, नवम का प्राणतकल्प में और दशम का अच्युतकल्प में देव रूप में जन्म हुआ । सभी की स्थिति उत्कृष्ट कहना । ये सभी स्वर्ग से च्यवन करके महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होंगे ।
२० कल्पवतंसिका - उपांग- ९ का हिन्दी अनुवाद पूर्ण
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