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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-७/२९९
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होता है । बास्स को दिन में बवकरण होता है, रात में बालवकरण होता है । तेरस को दिन में कौलवकरण होता है, रात में स्त्रीविलोचन करण होता है । चौदस को दिन में गरादिकरण होता है, रात में वणिजकरण होता है । पूनम को दिन में विष्टिकरण होता है, रात में बवकरण होता है ।
कृष्ण पक्ष की एकम को दिन में बालवकरण होता है, रात में कौलवकरण होता है। दूज को दिन में स्त्रीविलोचनकरण होता है, रात में गरादिकरण होता है । तीज को दिन में वाणिजयकरण होता है । रात में विष्टिकरण होता है । चौथ को दिन में बवकरण होता है, रात में बालवकरण होता है । पाँचम को दिन में कौलवकरण होता है, रात में स्त्रीविलोचनकरण होता है । छठ को दिन में गरादिकरण होता है, रात में वणिजकरण होता है । सातम को दिन में विष्टिकरण होता है । रात को बवकरण होता है | आठम को दिन में बालवकरण होता है, रात में कौलवकरण होता है । नवम को दिन में स्त्रीविलोचनकरण होता है, रात में गरादिकरण होता है । दसम को दिन में वणिजकरण होता है, रात में विष्टिकरण होता है । ग्यारस को दिन में बवकरण होता है, रात में बालवकरण होता है । बारस को दिन में कौलवकरण होता है, रात में स्त्रीविलोचनकरण होता है, तेरस को दिन में गरादिकरण होता है, रात में वणिजकरण होता है | चौदस को दिन में विष्टिकरण होता है, रात में शकुनिकरण होता है । अमावस को दिन में चतुष्पदकरण होता है, रात में नागकरण होता है । शुक्ल पक्ष की एकम को दिन में किंस्तुघ्नकरण होता है ।
[३००] भगवन् ! संवत्सरों में आदि-संवत्सर कौनसा है ? अयनों में प्रथम अयन कौनसा है ? यावत् नक्षत्रों में प्रथम नक्षत्र कौनसा है ? गौतम ! संवत्सरों में आदि-चन्द्रसंवत्सर है । अयनों में प्रथम दक्षिणायन है । ऋतुओं में प्रथम प्रावृट्-ऋतु है । महीनों में प्रथम श्रावण है । पक्षों में प्रथम कृष्ण पक्ष है । अहोरात्र में प्रथम दिवस है । मुहूर्तों में प्रथम रुद्र है । करणों में प्रथम बालव है । नक्षत्रों में प्रथम अभिजित् है । भगवन् ! पञ्च संवत्सरिक युग में अयन, ऋतु, मास, पक्ष, अहोरात्र तथा मुहूर्त कितने कितने हैं ? गौतम ! अयन १०, ऋतुएँ ३०, मास ६०, पक्ष १२०, अहोरात्र १८३० तथा मुहूर्त ५४९०० हैं ।
[३०१] योग, देवता, ताराग्र, गोत्र, संस्थान, चन्द्र-रवि-योग, कुल, पूर्णिमा-अमावस्या, सन्निपात तथा नेता-यहाँ विवक्षित हैं । .
[३०२] भगवन् ! नक्षत्र कितने हैं ? गौतम ! अठाईस, –अभिजित्, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषक्, पूर्वभाद्रपदा, उत्तरभाद्रपदा, रेवती, अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढा तथा उत्तराषाढा ।
[३०३] भगवन् ! इन अट्ठाईस नक्षत्रों में कितने नक्षत्र ऐसे हैं, जो सदा चन्द्र के दक्षिण में योग करते हैं-कितने नक्षत्र चन्द्रमा के उत्तर में, कितने दक्षिण में भी, उत्तर में भी, कितने चन्द्रमा के दक्षिण में भी नक्षत्र-विमानों को चीरकर भी और कितने नक्षत्र सदा नक्षत्रविमानों को चीरकर चन्द्रमा से योग करते हैं ? गौतम ! जो नक्षत्र सदा चन्द्र के दक्षिण में अवस्थित होते हुए योग करते हैं, वे छह हैं
[३०४] मृगशिर, आर्द्रा, पुष्य, अश्लेषा, हस्त तथा मूल । ये छहों नक्षत्र चन्द्रसम्बन्धी