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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-७/२७८
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भगवन् ! युग-संवत्सर कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का, चन्द्र-संवत्सर, चन्द्र-संवत्सर, अभिवर्द्धित-संवत्सर, चन्द्र-संवत्सर तथा अभिवर्द्धित-संवत्सर । प्रथम चन्द्र-संवत्सर के चौबीस पर्व, द्वितीय चन्द्र-संवत्सर के चौबीस पर्व, तृतीय अभिवृद्धित-संवत्सर के छब्बीस पर्व, चौथी चन्द्र-संवत्सर के चौबीस तथा पांचवें अभिवर्द्धित-संवत्सर के छब्बीस पर्व हैं । पांच भेदों में विभक्त युग-संवत्सर के, पर्व १२४ होते हैं ।
भगवन् ! प्रमाण-संवत्सर कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का, नक्षत्रसंवत्सर, चन्द्र-संवत्सर, ऋतु-संवत्सर, आदित्य-संवत्सर तथा अभिवर्द्धित-संवत्सर । लक्षणसंवत्सर कितने प्रकार का है ? पांच प्रकार का
[२७९] जिसमें कृत्तिका आदि नक्षत्र समरूप में मासान्तिक तिथियों से योग करते हैं, जिसमें ऋतुएँ समरूप में परिणत होती हैं, जो प्रचुर जलयुक्त है, वह समक-संवत्सर है ।
[२८०] जब चन्द्र के साथ पूर्णमासी में विषम-नक्षत्र का योग होता है, जो कटुक, कष्टकर, विपुल वर्षायुक्त होता है, वह चन्द्र-संवत्सर है ।
[२८१] जिसमें विषम काल में वनस्पति अंकुरित होती है, अन्-ऋतु में-पुष्प एवं फल आते हैं, जिसमें सम्यक्-वर्षा नहीं होती, वह कर्म-संवत्सर है ।
२८२] जिसमें सूर्य पृथ्वी, चल, पुष्प एवं फल-रस प्रदान करता है, जिसमें थोड़ी वर्षा से ही धान्य सम्यक् रूप में निष्पन्न होता है-अच्छी फसल होती है, वह आदित्यसंवत्सर है ।
[२८३] जिसमें क्षण, लव, दिन, ऋतु, सूर्य के तेज से तप्त रहते हैं, जिसमें निम्न स्थल जल-पूरित रहते हैं, वह अभिवर्द्धित संवत्सर है ।
[२८४] भगवन् ! शनैश्चर संवत्सर कितने प्रकार का है ? अट्ठाईस प्रकार का है
२८५] १. अभिजित, २. श्रवण, ३. धनिष्ठा, ४. शतभिषक, ५. पूर्वा भाद्रपद, ६. उत्तरा भाद्रपद, ७. रेवती, ८. अश्विनी, ९. भरिणी, १०. कृत्तिका, ११. रोहिणी यावत् तथा २८. उत्तराषाढा । अथवा शनैश्चर महाग्रह तीस संवत्सरों में समस्त नक्षत्र-मण्डल का समापन करता है-वह काल शनैश्चर-संवत्सर है ।।
[२८६] भगवन् ! प्रत्येक संवत्सर के कितने महीने हैं ? गौतम ! बारह महीने, उनके लौकिक एवं लोकोत्तर दो प्रकार के नाम हैं । लौकिक नाम-श्रावण, भाद्रपद यावत् आषाढ । लोकोत्तर नाम इस प्रकार हैं
[२८७-२८८] अभिनन्दित, २. प्रतिष्ठित, ३. विजय, ४. प्रीतिवर्द्धन, ५. श्रेयान्, ६. शिव, ७. शिशिर, ८. हिमवान्, ९. वसन्तमास, १०. कुसुमसम्भव, ११. निदाघ तथा १२. वनविरोह ।
२८९] भगवन् ! प्रत्येक महीने के कितने पक्ष हैं ? गौतम ! दो, कृष्ण तथा शुक्ल। प्रत्येक पक्ष के पन्द्रह दिन हैं, -१. प्रतिपदा-दिवस, २. द्वितीया-दिवस, ३. तृतीया-दिवस यावत् १५. पंचदशी-दिवस-अमावस्या या पूर्णमासी का दिन । इन पन्द्रह दिनों के पन्द्रह नाम हैं, जैसे
[२९०] १. पूर्वाङ्ग, २. सिद्धमनोरम, ३. मनोहर, ४. यशोभद्र, ५. यशोधर, ६. सर्वकाम-समृद्ध । तथा