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निरयावलिका-१/१५
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मवाद चूसते । तब तुम चुप-शांत हो जाते, इत्यादि सब वृत्तान्त चेलना ने कूणिक को सुनाया। इसी कारण हे पुत्र ! मैंने कहा कि श्रेणिक राजा तुम्हारे प्रति अत्यन्त स्नेहानुराग से युक्त हैं । कूणिक राजा ने चेलना रानी से इस पूर्ववृत्तान्त को सुनकर और ध्यान में लेकर चेलना देवी से कहा- माता ! मैंने बुरा किया जो देवतास्वरूप, गुरुजन जैसे अत्यन्त स्नेहानुराग से अनुरक्त अपने पिता श्रेणिक राजा को बेड़ियों से बाँधा । अब मैं जाता हूँ और स्वयं ही श्रेणिक राजा की बेड़ियों को काटता हूँ, ऐसा कहकर कुल्हाड़ी हाथ में ले जहाँ कारागृह था, उस ओर चलने के लिए उद्यत हुआ । श्रेणिक राजा ने हाथ में कुल्हाड़ी लिए कूणिककुमार को अपनी ओर आते देखा । मन ही मन विचार किया - यह मेरा बुरा चाहने वाला, यावत् कुलक्षण, अभागा कृष्णाचतुर्दशी को उत्पन्न, लोक-लाज से रहित, निर्लज्ज कूणिक कुमार हाथ में कुल्हाड़ी लेकर इधर आ रहा है । न मालूम मुझे यह किस कुमौत से मारे ! इस विचार से उसने भीत, त्रस्त भयग्रस्त, उद्विग्र और भयाक्रान्त होकर तालपुट विष को मुख में डाल दिया । तदनन्तर तालपुट विष को मुख में डालने और मुहूर्तान्तर के बाद कुछ क्षणों में उस विष के व्याप्त होने पर श्रेणिक राजा निष्प्राण, निश्चेष्ट, निर्जीव हो गया । इसके बाद वह कूणिक कुमार जहां कारावास था, वहाँ पहुँचा । उसने श्रेणिक राजा को निष्प्राण, निश्चेष्ट, निर्जीव देखा । तब वह दुस्सह, दुर्द्धर्ष पितृशोक से विलविलाता हुआ कुल्हाड़ी से काटे चम्पक वृक्ष की तरह धड़ाम से पछाड़ खाकर पृथ्वी पर गिर पड़ा । कुछ क्षणों पश्चात् कूणिककुमार आश्वस्त-सा हुआ और रोते हुए, आक्रंदन, शोक एवं विलाप करते हुए कहने लगा- अहो ! मुझ अधन्य, पुण्यहीन, पापी, अभागे ने बुरा किया जो देवतारूप, अत्यन्त स्नेहानुराग-युक्त अपने पिता श्रेणिक राजा को कारागार में डाला । मेरे कारण ही श्रेणिक राजा कालगत हुए हैं । तदनन्तर ऐश्वर्यशाली पुरुषों, तलवर राज्यमान्य पुरुषों, मांडलिक, जागीरदारों, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापतियों, मंत्री, गणक, द्वारपाल, अमात्य, चेट, पीठमर्दक, नागरिक, व्यवसायी, दूत, संधिपाल - से संपरिवृत होकर रुदन, आक्रन्दन, शोक और विलाप करते हुए महान् ऋद्धि, सत्कार एवं अभ्युदय के साथ श्रेणिक राजा का अग्निसंस्कार किया । तत्पश्चात् वह कूणिक कुमार इस महान् मनोगत मानसिक दुःख से अतीव दुःखी होकर किसी समय अन्तःपुर परिवार को लेकर धन-संपत्ति आदि गार्हस्थिक उपकरणों के साथ राजगृह से निकला और जहां चंपानगरी थी, वहां आया । वहां परम्परागत भोगों को भोगते हुए कुछ समय के बाद शोकसंताप से रहित हो गया ।
[१६] तत्पश्चात् उस कूणिक राजा ने किसी दिन काल आदि दस राजकुमारों को बुलाया - आमंत्रित किया और राज्य, राष्ट्र बल-सेना, वाहन रथ आदि, कोश, धन-संपत्ति, धान्य- भंडार, अंतःपुर और जनपद- देश के ग्यारह भाग किये । भाग करके वे सभी स्वयं अपनी-अपनी राजश्री का भोग करते हुए प्रजा का पालन करते हुए समय व्यतीत करने लगे । [१७] उस चम्पानगरी में श्रेणिक राजा का पुत्र, चेलना देवी का अंगज कूणिक राजा का कनिष्ठ सहोदर भ्राता वेहल्ल राजकुमार था । वह सुकुमार यावत् रूप-सौन्दर्यशाली था । अपने जीवित रहते श्रेणिक राजा ने पहले ही वेहल्लकुमार को सेचनक नामक गंधहस्ती और