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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
तत्पश्चात् कूणिक राजा ३००० हाथियों यावत् वाधघोषपूर्वक चंपा नगरी के मध्य भाग में से निकला, जहाँ काल आदि दस कुमार ठहरे थे वहाँ पहुँचा और काल आदि दस कुमारों से मिला । इसके बाद ३३००० हाथियों, ३३००० घोड़ों, ३३००० रथों और तेतीस कोटि मनुष्यों से घिर कर सर्व ऋद्धि यावत् कोलाहल पूर्वक सुविधाजनक पड़ाव डालता हुआ, अति विकट अन्तरावास न कर, विश्राम करते हुए अंग जनपद के मध्य भाग में से होते हुए जहाँ विदेह जनपद था, वैशाली नगरी थी, उस ओर चलने के लिए उद्यत हुआ । राजा कूणिक का युद्ध के लिए प्रस्थान का समाचार जानकर चेटक राजा ने काशी-कोशल देशों के नौ लिच्छवी और नौ मल्लकी इन अठारह गण-राजाओं को परामर्श करने हेतु आमंत्रित किया और कहा-देवानुप्रियो ! बात यह है कि कूणिक राजा को बिना जताए-वेहल्लकुमार सेचनक हाथी और अठारह लड़ों का हार लेकर यहाँ आ गया है । किन्तु कूणिक ने सेचनक हाथी और अठारह लड़ों के हार को वापिस लेने के लिए तीन दूत भेजे | किन्तु अपनी जीवित अवस्था में स्वयं श्रेणिक राजा ने उसे ये दोनों वस्तुएं प्रदान की हैं, फिर भी हार-हाथी चाहते हो तो उसे आधा राज्य दो, यह उत्तर देकर उन दूतों को वापिस लौटा दिया । तब कूणिक मेरी इस बात को न सुनकर और न स्वीकार कर चतुरंगिणी सेना के साथ युद्धसज्जित होकर यहाँ आ रहा है । तो क्या सेचनक हाथी और अठारह लड़ों का हार वापिस कूणिक राजा को लौटा दें ? वेहल्लकुमार को उसके हवाले कर दें ? अथवा युद्ध करें ?
तब उन काशी-कोशल के नौ मल्लकी और नौ लिच्छवी-अठारह गणराजाओं ने चेटक राजा से कहा-स्वामिन् ! यह न तो उचित है-न अवसरोचित है और न राजा के अनुरूप ही है कि सेचनक और अठारह लड़ों का हार कूणिक राजा को लौटा दिया जाए और शरणागत वेहल्लकुमार को भेज दिया जाए । इसलिए जब कूणिक राजा चतुरंगिणी सेना को लेकर युद्धसज्जित होकर यहाँ आ रहा है तब हम कूणिक राजा के साथ युद्ध करें । इस पर चेटक राजा ने कहा यदि आप देवानुप्रिय कूणिक राजा से युद्ध करने के लिए तैयार हैं तो देवानुप्रियो ! अपने अपने राज्यों में जाइए और स्नान आदि कर कालादि कुमारों के समान यावत् चतुरंगिणी सेना के साथ यहाँ चम्पा में आइए । यह सुनकर अठारहों राजा अपने-अपने राज्यों में गए
और युद्ध के लिए सुसज्जित होकर उन्होंने चेटक राजा को जय-विजय शब्दों से बधाया । उसके बाद चेटक राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर यह आज्ञा दी-आभिषेक्य हस्तिरत्न को सजाओ आदि कूणिक राजा की तरह यावत् चेटक राजा हाथी पर आरूढ हुआ ।
अठारहों गण-राजाओं के आ जाने के पश्चात् चेटक राजा कूणिक राजा की तरह तीन हजार हाथियों आदि के साथ वैशाली नगरी के बीचोंबीच होकर निकला । जहाँ वे नौ मल्ली, नौ लिच्छवी काशी-कोशल के अठारह गणराजा थे, वहाँ आया । तदनन्तर चेटक राजा ५७००० हाथियों, ५७००० घोड़ों, ५७००० रथों और सत्तावन कोटि मनुष्यों को साथ लेकर सर्व ऋद्धि यावत् वाधघोष पूर्वक सुखद वास, निकट-निकट विश्राम करते हुए विदेह जनपद के बीचोंबीच से चलते जहाँ सीमान्त-प्रदेश था, वहाँ आकर स्कन्धावार का निवेश किया- तथा कूणिक राजा की प्रतीक्षा करते हुए युद्ध को तत्पर हो ठहर गया । इसके बाद