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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
अठारह लड़ों का हार दिया था । वह वेहल्लकुमार अन्तःपुर परिवार के साथ सेचनक गंधहस्ती पर आरूढ होकर चम्पानगरी के बीचोंबीच होकर निकलता और स्नान करने के लिए वारंवार गंगा महानदी में उतरता । उस समय वह सेचनक गंधहस्ती रानियों को सूंढ से पकड़ता, पकड़ कर किसी को पीठ पर बिठलाता, किसी को कंधे पर बैठाता, किसी को गंडस्थल पर रखता, किसी को मस्तक पर बैठाता, दंत-मूसलों पर बैठाता, किसी को सूंढ में लेकर झुलाता, किसी को दाँतों के बीच लेता, किसी को फुहारों से नहलाता और किसी-किसी को अनेक प्रकार की क्रीडाओं से क्रीडित करता था । तब चम्पानगरी के श्रृंगाटकों, त्रिकों, चतुष्कों, चत्वरों, महापथों और पथों में बहुत से लोग आपस में एक-दूसरे से इस प्रकार कहते, बोलते, बतलाते
और प्ररूपित करते कि देवानुप्रियो ! अन्तःपुर परिवार को साथ लेकर वेहल्ल कुमार सेचनक गंधहस्ती के द्वारा अनेक प्रकार की क्रीडाएँ करता है । वास्तव में वेहल्लकुमार ही राजलक्ष्मी का सुन्दर फल अनुभव कर रहा है । कूणिक राजा राजश्री का उपभोग नहीं करता ।
तब पद्मावती देवी को प्रजाजनों के कथन को सुनकर यह संकल्प यावत् विचार समुत्पन्न हुआ-निश्चय ही वेहल्लकुमार सेचनक गंधहस्ती के द्वारा यावत् अनेक प्रकार की क्रीडाएँ करता है । अतएव सचमुच में राजश्री का फल भोग रहा है, कूणिक राजा नहीं । हमारा यह राज्य यावत् जनपद किस काम का यदि हमारे पास सेचनक गंधहस्ती न हो ! पद्मावती ने इस प्रकार का विचार किया और कूणिक राजा के पास आकर दोनों हाथ जोड़, मस्तक पर अंजलि करके जय-विजय शब्दों से उसे बधाया और निवेदन किया-'स्वामिन् ! वेहल्लकुमार सेचनक गंधहस्ती से यावत् भांति-भांति की क्रीडाएँ करता है, तो हमारा राज्य यावत् जनपद किस काम का यदि हमारे पास सेचनक गंधहस्ती नहीं है । कूणिक राजा ने पद्मावती के इस कथन का आदर नहीं किया, उसे सुना नहीं-उस पर ध्यान नहीं दिया और चुपचाप ही रहा । पद्मावती द्वारा बार-बार इसी बात को दुहराने पर कूणिक राजा ने एक दिन वेहल्लकुमार को बुलाया और सेचनक गंधहस्ती तथा अठारह लड़ का हार मांगा ।
तब वेहल्ल कुमार ने कूणिक राजा को उत्तर दिया-'स्वामिन् ! श्रेणिक राजा ने अपने जीवनकाल में ही मुझे यह सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार दिया था । यदि स्वामिन् ! आप राज्य यावत् जनपद का आधा भाग मुझे दें तो मैं सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार दूंगा । कूणिक राजा ने वेहल्लकुमार के इस उत्तर को स्वीकार नहीं किया। उस पर ध्यान नहीं दिया और बार-बार सेचनक गंधहस्ती एवं अठारह लड़ों के हार को देने का आग्रह किया । तब कूणिक राजा के वारंवार सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों के हार को मांगने पर वेहल्लकुमार के मन में विचार आया कि वह उनको झपटना चाहता है, लेना चाहता है, छीनना चाहता है । इसलिए सेचनक गंधहस्ती और हार को लेकर अन्तःपुर परिवार और गृहस्थी की साधन-सामग्री के साथ चंपानगरी से निकलकर-वैशाली नगरी में आर्यक चेटक का आश्रय लेकर रहूँ । उसने ऐसा विचार करके कूणिक राजा की असावधानी, मौका, अन्तरंग बातों-रहस्यों की जानकारी की प्रतीक्षा करते हुए समय यापन करने लगा । किसी दिन वेहल्लकुमार ने कूणिक राजा की अनुपस्थिति को जाना और सेचनक गंधहस्ती, अठारह लड़ों