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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-७/३१५
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गौतम ! गोशीर्षावलि-प्रथम से अन्तिम तक सब नक्षत्रों के संस्थान इस प्रकार हैं
[३१६] अभिजित् का गोशीर्षावलि, श्रवण का कासार, धनिछा का पक्षी के कलेवर सदृश, शतभिषक् का पुष्प-राशि, पूर्वभाद्रपदा का अर्धवापी, उत्तरभाद्रपदा का भी अर्धवापी, रेवती का नौका, अश्विनी का अश्व, भरणी का भग, कृत्तिका का क्षुरगृह, रोहिणी का गाड़ी की धुरी के समान । तथा
[३१७] मृगशिर का मृग, आर्द्रा का रुधिर की बूँद, पुनर्वसु का तराजू, पुष्य का सुप्रतिष्ठित वर्द्धमानक, अश्लेषा का ध्वजा, मघा का प्राकार, पूर्वफाल्गुनी का आधे पलंग, उत्तरफाल्गुनी का भी आधे पलंग, हस्त का हाथ, चित्रा का मुख पर सुशोभित पीली जूही के पुष्य के सदृश । तथा
[३१८] स्वाति का कीलक, विशाखा का दामनि, अनुराधा का एकावली, ज्येष्ठा का हाथी-दाँत, मूल का बिच्छू की पूँछ, पूर्वाषाढा का हाथी के पैर तथा उत्तराषाढा नक्षत्र का बैठे हुए सिंह के सदृश संस्थान है ।
[३१९] भगवन् ! अठाईस नक्षत्रों में अभिजित् नक्षत्र कितने मुहर्त पर्यन्त चन्द्रमा के साथ योगयुक्त रहता है ? गौतम ! ९-२७/६७ मुहूर्त रहता है । इन नक्षत्रों का चन्द्र के साथ योग इस प्रकार है ।
३२०] अभिजित् नक्षत्र का चन्द्रमा के साथ एक अहोरात्र में उनके २६/६७ भाग परिमित योग होता है । इससे अभिजित् चन्द्रयोग काल ९-२७/६७ मुहूर्त तय होता है ।
[३२१] शतभिषक्, भरणी, आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाति एवं ज्येष्ठा-इन छह नक्षत्रों का चन्द्रमा के साथ ४५ मुहूर्त योग रहता है ।
३२२] तीनों उत्तरा, पुनर्वसु, रोहिणी तथा विशाखा-इन छह नक्षत्रों का चन्द्रमा के साथ ४५ मुहूर्त योग रहता है।
[३२] बाकी पन्द्रह नक्षत्रों का चन्द्रमा के साथ ३० मुहूर्त पर्यन्त योग रहता है ।
[३२४] भगवन् ! इन अट्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित् नक्षत्र सूर्य के साथ कितने अहोरात्र पर्यन्त योगयुक्त रहता है ? गौतम ! ४ अहोरात्र एवं ६ मुहूर्त पर्यन्त । इन गाथाओं द्वारा नक्षत्र-सूर्ययोग जानना ।
[३२५] अभिजित् नक्षत्र का सूर्य के साथ ४ अहोरात्र तथा ६ मुहूर्त पर्यन्त योग रहता है ।
[३२६] शतभिषक् भरणी, आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाति तथा ज्येष्ठा-इन नक्षत्रों का सूर्य के साथ ६ अहोरात्र तथा २१ मुहूर्त पर्यन्त योग रहता है ।
[३२७] तीनों उत्तरा, पुनर्वसु, रोहिणी एवं विशाखा-इन नक्षत्रों का सूर्य के साथ २० अहोरात्र और ३ मुहूर्त पर्यन्त योग रहता है ।
[३२८] बाकी के पन्द्रह नक्षत्रों का सूर्य के साथ १३ अहोरात्र तथा १२ मुहूर्त पर्यन्त योग रहता है ।
[३२९] भगवन् ! कुल, उपकुल तथा कुलोपकुल कितने हैं ? गौतम ! कुल बारह, उपकुल बारह तथा कुलोपकुल चार हैं । बारह कुल-धनिष्ठा, उत्तरभाद्रपदा, अश्विनी, कृत्तिका, मृगशिर, पुष्य, मघा, उत्तराफाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, मूल तथा उत्तराषाढाकुल ।