Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 137
________________ १३६ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद सत्य एवं बिना किसी संकोच - संदेह के कहिए, जिससे मैं उसका हल करने का उपाय करूँ । अभयकुमार के कहने पर श्रेणिक राजा ने अभयकुमार से कहा- पुत्र ! है पुत्र ! तुम्हारी विमाता चेलना देवी को उस उदार यावत् महास्वप्न को देखे तीन मास बीतने पर यावत् ऐसा दोहद उत्पन्न हुआ है कि जो माताएँ मेरी उदरावलि के शूलित आदि मांस से अपने दोहद को पूर्ण करती है - आदि । लेकिन चेलना देवी उस दोहद के पूर्ण न हो सकने के कारण शुष्क यावत् चिन्तित हो रही है । इसलिए पुत्र ! उस दोहद की पूर्ति के निर्मित आयों यावत् स्थिति को समझ नहीं सकने के कारण मैं भग्नमनोरथ यावत् चिन्तित हो रहा हूँ । श्रेणिक राजा के इस मनोगत भाव को सुनने के बाद अभयकुमार ने श्रेणिक राजा से कहा - 'तात ! आप भग्नमनोरथ यावत् चिन्तित न हों, मैं ऐसा कोई जतन करूंगा कि जिससे मेरी छोटी माता चेलना देवी के उस दोहद की पूर्ति हो सकेगी । ' श्रेणिक राजा को आश्वस्त करने के पश्चात् अभयकुमार जहाँ अपना भवन था वहाँ आया । आकर गुप्त रहस्यों के जानकार आन्तरिक विश्वस्त पुरुषों को बुलाया और उनसे कहा- तुम जाओ और सूनागार में जाकर गीला मांस, रुधिर और वस्तिपुटक लाओ । वे रहस्यज्ञाता पुरुष अभयकुमार की इस बात को सुनकर हर्षित एवं संतुष्ट हुए यावत् अभयकुमार के पास से निकले । गीला मांस, रक्त एवं वस्तिपुटक को लिया । जहाँ अभयकुमार था, वहाँ आकर दोनों हाथ जोड़कर यावत् उस मांस, रक्त एवं वस्तिपुटक को रख दिया । तब अभयकुमार ने उस रक्त और मांस में से थोड़ा भाग कैंची से काटा । जहाँ श्रेणिक राजा था, वहाँ आया और श्रेणिक राजा को एकान्त में शैया पर चित लिटाया । श्रेणिक राजा की उदरावली पर उस आर्द्र रक्त-मांस को फैला दिया और फिर वस्तिपुटक को लपेट दिया । वह ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे रक्त धारा बह रही हो । और फिर ऊपर के माले में चेलना देवी को अवलोकन करने के आसन से बैठाया, बैठाकर चेलना देवी के ठीक नीचे सामने की ओर श्रेणिक राजा को शैया पर चित लिटा दिया । कतरनी से श्रेणिक राजा की उदरावली का मांस काटा, काटकर उसे एक बर्तन में रखा । तब श्रेणिक राजा ने झूठ-मूठ मूर्च्छित होने का दिखावा किया और उसके बाद कुछ समय के अनन्तर आपस में बातचीत करने में लीन हो गए । तत्पश्चात् अभयकुमार ने श्रेणिक राजा की उदरावली के मांस खण्डों को लिया, लेकर जहाँ चेलना देवी थी, वहाँ आया और आकर चेलना देवी के सामने रख दिया । तब चेलना देवी श्रेणिक राजा के उस उदरावली के मांस से यावत् अपना दोहद पूर्ण किया । दोहद पूर्ण होने पर चेलना देवी का दोहद संपन्न, सम्मानित और निवृत्त हो गया । तब वह उस गर्भ का सुखपूर्वक वहन करने लगी । I [११] कुछ समय व्यतीत होने के बाद एक बार चेलना देवी को मध्य रात्रि में जागते हुए इस प्रकार का यह यावत् विचार उत्पन्न हुआ - 'इस बालक ने गर्भ में रहते ही पिता की उदरावल का मांस खाया है, अतएव इस गर्भ को नष्ट कर देना, गिरा देना, गला देना एवं विध्वस्त कर देना ही मेरे लिए श्रेयस्कर होगा, उसने ऐसा निश्चय करके बहुत सी गर्भ को नष्ट करनेवाली यावत् विध्वस्त करनेवाली औषधियों से उस गर्भ को नष्ट यावत् विध्वस्त करना

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