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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
रानी घोर पुत्र-शोक से अभिभूत, चम्पकलता के समान पछाड़ खाकर धड़ाम-से सर्वांगो से पृथ्वी पर गिर पड़ी । कुछ समय के पश्चात् जब काली देवी कुछ आश्वस्त हुई तब खड़ी हुई और भगवान् को वंदन-नमस्कार करके इस प्रकार कहा-'भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! ऐसा ही है, भगवन् ! यह अवितथ, है । असंदिग्ध है । यह सत्य है । यह बात ऐसी ही है, जैसी आपने बतलाई है । उसने श्रमण भगवान् को पुनः वंदन-नमस्कार किया। उसी धार्मिक यान पर आरूढ होकर, वापिस लौट गई।
[4] भगवान् गौतम, श्रमण भगवान् महावीर के समीप आए और वंदन-नमस्कार करके अपनी जिज्ञासा व्यक्त करते हुए कहा-भगवन् ! जो काल कुमार स्थमूसल संग्राम करते हुए चेटक राजा के एक ही आघात-से रक्तरंजित हो, जीवनरहित होकर मृत्यु को प्राप्त करके कहाँ गया है ? कहाँ उत्पन्न हुआ है ? भगवान् ने गौतमस्वामी से कहा-'गौतम ! युद्धप्रवृत्त वह कालकुमार जीवनरहित होकर कालमास में काल करके चौथी पंकप्रभा पृथ्वी के हेमाभ नरक में दस सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में नारक रूप में उत्पन्न हुआ है ।
[१] गौतम ने पुनः पूछा-भदन्त ! किस प्रकार के भोग-संभोगों को भोगने से, कैसेकैसे आरम्भों और आरम्भ-समारंभों से तथा कैसे आचारित अशुभ कर्मों के भार से मरण करके वह काल कुमार चौथी पंकप्रभापृथ्वी में यावत् नैरयिक रूप से उत्पन्न हुआ है ? भगवान् ने बताया-गौतम ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था । वह नगर वैभव से सम्पन्न, शत्रुओं के भय से रहित और धन-धान्यादि की समृद्धि से युक्त था । उस राजगृह नगर में हिमवान् शैल के सदृश महान् श्रेणिक राजा राज्य करता था । श्रेणिक राजा की अंग-प्रत्यंगों से सुकुमाल नन्दा रानी थी, जो मानवीय कामभोगों को भोगती हुई यावत् समय व्यतीत करती थी । उस श्रेणिक राजा का पुत्र और नन्दा रानी का आत्मज अभय कुमार था, जो सुकुमाल यावत् सुरूप था तथा साम, दाम, भेद और दण्ड की राजनीति में चित्त सारथि के समान निष्णात था यावत् राज्यधुरा-शासन का चिन्तक था । उस श्रेणिक राजा की चेलना रानी भी थी । वह सुकुमाल हाथ-पैर वाली थी यावत् सुखपूर्वक विचरण करती थी । किसी समय शयनगृह में चिन्ताओं आदि से मुक्त सुख-शय्या पर सोते हुए वह चेलना देवी प्रभावती देवी के समान स्वप्न में सिंह को देखकर जागृत हुई, यावत् स्वप्न-पाठकों को आमंत्रित करके राजा ने उसका फल पूछा । स्वप्नपाठकों ने स्वप्न का फल बतलाया । स्वप्न-पाठकों को विदा किया यावत् चेलना देवी उन स्वप्नपाठकों के वचनों को सहर्ष स्वीकार करके अपने वासभवन में चली गई।
[१०] तत्पश्चात् परिपूर्ण तीन मास बीतने पर चेलना देवी को इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ-वे माताएँ धन्य हैं यावत् वे पुण्यशालिनी हैं, उन्होंने पूर्व में पुण्य उपार्जित किया है, उनका वैभव सफल है, मानवजन्म और जीवन का, सुफल प्राप्त किया है जो श्रेणिक राजा की उदरावली के शूल पर सेके हुए, तले हुए, भूने हुए मांस का तथा सुरा यावत् मधु, मेरक, मद्य, सीधु और प्रसन्ना नामक मदिराओं का आस्वादन यावत् विस्वादन तथा उपभोग करती हुई और अपनी सहेलियों को आपस में वितरित करती हुई अपने दोहद को पूर्ण करती हैं