Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 131
________________ १३० आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद विजया, वैजयन्ती, जयन्ती तथा अपराजिता नामक चार चार अग्रमहिषियाँ हैं । यों १७६ ग्रहों की इन्हीं नामों की अग्रमहिषियाँ हैं । [३५२-३५४] अङ्गारक, विकालक, लोहिताङ्क, शनैश्चरस आधुनिक, प्राधुनिक, कण, कणक, कणकणक, कणवितानक, कणसन्तानक. सोम, सहित, आश्वासन, कार्योपग, कुर्बुरक, अजकरक, दुन्दुभक, शंख, शंखनाभ, शंखवर्णाभ- । यों भावकेतु पर्यन्त ग्रहों का उच्चारण करना । उन सबकी अग्रमहिषियाँ उपर्युक्त नामों की हैं । [३५५ ] भगवन् ! चन्द्र -विमान में देवों की स्थिति कितने काल की होती है ? गौतम ! चन्द्र - विमान में देवों की स्थिति जघन्य - १/४ पल्योपम तथा उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम, देवियों की स्थिति जघन्य १/४ पल्योपम तथा उत्कृष्ट - पचास हजार वर्ष अधिक अर्ध पल्योपम होती है । सूर्य - विमान में देवों की स्थिति जघन्य १/४ पल्योपम तथा उत्कृष्ट एक हजार वर्ष अधिक एक पल्योपम, देवियों की स्थिति जघन्य १/४ पल्योपम तथा उत्कृष्ट पाँचसौ वर्ष अधिक अर्ध पल्योपम होती है । ग्रह विमान में देवों की स्थिति जघन्य १/४ पल्योपम तथा उत्कृष्ट एक पल्योपम । देवियों की स्थिति जघन्य १/४ पल्योपम तथा उत्कृष्ट कुछ अधिक १/४ पल्योपम होती है । [३५६] नक्षत्रों के अधिदेवता - इस प्रकार हैं- अभिजित् के ब्रह्मा, श्रवण के विष्णु, धनिष्ठा के वसु, शतभिषक् के वरुण, पूर्वभाद्रपदा के अज, उत्तरभाद्रपदा के वृद्धि, रेवती के पूषा, अश्विनी के अश्व, भरणी के यम, कृत्तिका के अग्नि, रोहिणी के प्रजापति, मृगशिर के सोम, आर्द्रा के रुद्र, पुनर्वसु के अदिति, पुष्य के बृहस्पति और अश्लेषा के अधिदेवता सर्प है । तथा [३५७] मघा के पिता, पूर्वफाल्गुनी के भग, उत्तरफाल्गुनी के अर्यमा, हस्त के सविता, चित्रा के त्वष्टा, स्वाति के वायु, विशाखा के इन्द्राग्नी, अनुराधा के मित्र, ज्येष्ठा के इन्द्र, मूल के निर्ऋति, पूर्वाषाढा के आप तथा उत्तराषाढा के अधिदेवता विश्वे है । [ ३५८] यह संग्रहणी गाथाएं है । [३५९] भगवन् ! चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र तथा ताराओं में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य तथा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! चन्द्र और सूर्य तुल्य हैं । वे सबसे कम हैं। उनसे नक्षत्र संख्येय गुणे हैं । नक्षत्रों से ग्रह संख्येय गुने हैं । गहों से तारे संख्येय गुने हैं । [३६०] भगवन् जम्बूद्वीप में जघन्य तथा उत्कृष्ट कितने तीर्थंकर हैं ? गौतम ! जघन्य चार तथा उत्कृष्ट चौतीस तीर्थंकर होते हैं । जम्बूद्वीप में चक्रवर्ती कम से कम चार तथा अधिक से अधिक तीस होते हैं । जितने चक्रवर्ती होते हैं, उतने ही बलदेव होते हैं, वासुदेव भी उतने ही होते हैं । जम्बूद्वीप में निधि - रत्न ३०६ होते हैं । उसमें कम से कम ३६ तथा अधिक से अधिक २७० निधि - रत्न यथाशीघ्र परिभोग-उपयोग में आते हैं । [३६१] भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने सौ पञ्चेन्द्रिय-रत्न होते हैं ? २१० हैं । उसमें कम से कम २८ और अधिक से अधिक २१० पञ्चेन्द्रिय- रत्न यथाशीघ्र परिभोग में आते हैं। [३६२ ] भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने सौ एकेन्द्रिय रत्न होते हैं ? २१० हैं । उसमें1 कम से कम २८ तथा अधिक से अधिक २१० एकेन्द्रिय-रत्न यथाशीघ्र परिभोग में आते हैं। भगवन् ! जम्बूद्वीप की लम्बाई-चौड़ाई, परिधि, भूमिगत गहराई, ऊँचाई कितनी है ?

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