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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-७/३६२
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गौतम ! जम्बूद्वीप की लम्बाई-चौड़ाई १,००,००० योजन तथा परिधि ३,१६,२२७ योजन ३ कोश १२८ धनुष कुछ अधिक १३ ।। अंगुल है । इसकी भूमिगत गहराई १००० योजन, ऊँचाई कुछ अधिक ९९,००० योजन तथा भूमिगत गहराई और ऊँचाई दोनों मिलाकर कुछ अधिक १,००,००० योजन है ।
३६३] भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप पृथ्वी-परिणाम है, अप-परिणाम है, जीव-परिणाम है, पुद्गलपरिणाम है ? गौतम ! पृथ्वी, जल, जीव तथा पुद्गलपिण्डमय भी है । भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप में सर्वप्राण, सर्वजीव, सर्वभूत, सर्वसत्त्व-ये सब पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक तथा वनस्पतिकायिक के रूप में पूर्वकाल में उत्पन्न हुए हैं ? हाँ, गौतम ! वे अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं ।
३६४) भगवन् ! जम्बूद्वीप 'जम्बूद्वीप' क्यों कहलाता है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में स्थान-स्थान पर बहुत से जम्बू वृक्ष हैं, जम्बू वृक्षों से आपूर्ण वन हैं, वन-खण्ड हैंवे अपनी सुन्दर लुम्बियों तथा मञ्जरियों के रूप में मानो शिरोभूषण धारण किये रहते हैं । वे अपनी श्री द्वारा अत्यन्त सोभित होते हुए स्थित हैं । जम्बू सुदर्शना पर परम ऋद्धिशाली, पल्योपम-आयुष्ययुक्त अनाहत नामक देव निवास करता है । गौतम ! इसी कारण वह जम्बूद्वीप कहा जाता है।
३६५] आर्य जम्बू ! मिथिला नगरी में मणिभद्र चैत्य में बहुत-से श्रमणों, श्रमणियों, श्रावकों, श्राविकाओं, देवों, देवियों की परिषद् के बीच श्रमण भगवान् महावीर ने शस्त्रपरिज्ञादि को ज्यों श्रुतस्कन्धादि में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का आख्यान किया भाषण किया निरूपण किया, प्ररूपण किया । विस्मरणशील श्रोतृवृन्द पर अनुग्रह कर अर्थ, तात्पर्य, हेतु, प्रश्न, पृष्ट अर्थ के प्रतिपादन, कारण तथा व्याकरण स्पष्टीकरण द्वारा प्रस्तुत शास्त्र का बार बार उपदेश किया।
| १८ | जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-उपांगसूत्र-७-हिन्दी अनुवाद पूर्ण |