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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद पन्द्रह मण्डलों के बाहर से ही योग करते हैं ।
३०५] जो नक्षत्र सदा चन्द्रमा के उत्तर में अवस्थित होते हुए योग करते हैं, वे बारह हैं-अभिजित्, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषक्, पूर्वभाद्रपदा, उत्तरभाद्रपदा, खती, अश्विनी, भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी तथा स्वाति । जो नक्षत्र सदा चन्द्रमा के दक्षिण में भी, उत्तर में भी, नक्षत्र-विमानों को चीरकर भी योग करते हैं, वे सात हैं-कृत्तिका, रोहिणी, पुनर्वसु, मघा, चित्रा, विशाखा तथा अनुराधा । जो नक्षत्र सदा चन्द्रमा के दक्षिण में भी, नक्षत्र-विमानों को चीरकर भी योग करते हैं, वे दो हैं-पूर्वाषाढा तथा उत्तराषाढा । ये दोनों नक्षत्र सदा सर्वबाह्य मण्डल में अवस्थित होते हुए चन्द्रमा के साथ योग करते हैं । जो सदा नक्षत्र-विमानों को चीरकर चन्द्रमा के साथ योग करता है, ऐसा एक ज्येष्ठा नक्षत्र है ।
[३०६] भगवन् ! अभिजित् आदि नक्षत्रों के कौन-कौन देवता हैं ? पहले नक्षत्र से अठावीसवें नक्षत्र तक के देवता यथाक्रम इस प्रकार हैं-ब्रह्मा, विष्णु, वसु, वरुण, अज, अभिवृद्धि, पूषा, अश्व, यम, अग्नि, प्रजापति, सोम, रुद्र, अदिति, बृहस्पति, सर्प, पितृ, भंग, अर्यमा, सविता, त्वष्टा, वायु, इन्द्राग्री, मित्र, इन्द्र, नैर्ऋत, आप तथा विश्वेदेव ।
[३०७] भगवन् ! इन अठाईस नक्षत्रों में अभिजित् नक्षत्र के कितने तारे हैं ? गौतम! तीन तारे हैं । जिन नक्षत्रों के जितने जितने तारे हैं, वे प्रथम से अन्तिम तक इस प्रकार हैं
[३०८] अभिजित् नक्षत्र के तीन तारे, श्रवण के तीन, धनिष्ठा के पांच, शतभिषा के सौ, पूर्वभाद्रपदा के दो, उत्तरभाद्रपदा के दो, रेवती के बत्तीस, अश्विनी के तीन, भरणी के तीन, कृत्तिका के छः, रोहिणी के पांच, मृगशिर के तीन, आर्द्रा का एक, पुनर्वसु के पांच, पुष्य के तीन और अश्लेषा नक्षत्र के छः तारे होते है ।
[३०९] मघा नक्षत्र के सात तारे, पूर्वफाल्गुनी के दो, उत्तरफाल्गुनी के दो, हस्त के पांच, चित्रा का एक, स्वाति का एक, विशाखा के पांच, अनुराधा के पांच, ज्येष्ठा के तीन, मूल के ग्यारह, पूर्वाषाढा के चार तथा उत्तराषाढा नक्षत्र के चार तारे हैं ।
[३१०] भगवन् ! इन अट्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित् नक्षत्र का क्या गोत्र है ? गौतम! मौद्गलायन गोत्र है ।
[३११] प्रथम से अन्तिम नक्षत्र तक सब नक्षत्रों के गोत्र इस प्रकार हैं-अभिजित् नक्षत्र का मौद्गलायन, श्रवण का सांख्यायन, धनिष्ठा का अग्रभाग, शतभिषक् का कण्णिलायन, पूर्वभाद्रपदा का जातुकर्ण, उत्तरभाद्रपदा का धनञ्जय । तथा
[३१२] रेवती का पुष्यायन, अश्विनी का अश्वायन, भरणी का भार्गवेश, कृत्तिका का अग्निवेश्य, रोहिणी का गौतम, मृगशिर का भारद्वाज, आर्द्रा का लोहित्यायन, पुनर्वसु का वासिष्ठ । तथा
[३१३] पुष्य का अवमज्जायन, अश्लेषा का माण्डव्यायन, मघा का पिङ्गायन, पूर्वफाल्गुनी का गोवल्लायन, उत्तरफाल्गुनी का काश्यप, हस्त का कौशिक चित्रा का दार्भायन, स्वाति का चामरच्छायन, विशाखा का शुङ्गायन । तथा
[३१४] अनुराधा का गोलव्यायन, ज्येष्ठा का चिकित्सायन, मूल का कात्यायन, पूर्वाषाढा का बाभ्रव्यायन तथा उत्तराषाढा नक्षत्र का व्याघ्रपत्य गोत्र है ।
[३१५] भगवन् ! इन अठाईस नक्षत्रों में अभिजित् नक्षत्र का कैसा संस्थान है ?