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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-७/३३१
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धनिष्ठा-का, फाल्गुनी अमावस्या के साथ शतभिषक् पूर्वभाद्रपदा एवं उत्तरभाद्रपदा-का, चैत्री अमावस्या के साथ रेवती और अश्विनी-का, वैशाखी अमावस्या के साथ भरणी तथा कृत्तिकाका, ज्येष्ठामूली अमावस्या के साथ रोहिणी एवं मृगशिर का और आषाढी अमावस्या के साथ आर्द्रा, पुनर्वसु तथा पुष्य नक्षत्रों का योग होता है ।
भगवन् ! श्रावणी अमावस्या के साथ क्या कुल का, उपकुल का या कुलोपकुल का योग होता है ? गौतम ! कुल और उपकुल का योग होता है, कुलयोग में मघा और उपकुलयोग में अश्लेषा नक्षत्र का योग होता है । भाद्रपदी अमावस्या के साथ कुलयोग में उत्तराफाल्गुनी और उपकुलयोग में पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का योग होता है । मार्गशीर्षी अमावस्या के साथ कुलयोग में मूल, उपकुलयोग में ज्येष्ठा तता कुलोपकुलयोग में अनुराधा नक्षत्र का योग होता है । माघी, फाल्गुनी तथा आषाढी अमावस्या के साथ कुल, उपकुल एवं कुलोपकुल का योग होता है, बाकी की अमावस्याओं के साथ कुल एवं उपकुल का योग होता है ।
भगवन् ! क्या जब श्रवण नक्षत्र से युक्त पूर्णिमा होती है, तब क्या तत्पूर्ववर्तिनी अमावस्या मघा नक्षत्रयुक्त होती है ? और जब पूर्णिमा मघा नक्षत्रयुक्त होती है तब क्या तत्पश्चाद् भाविनी अमावस्या श्रवण नक्षत्र युक्त होती है ? गौतम ! ऐसा ही होता है । जब पूर्णिमा उत्तरभाद्रपदा नक्षत्रयुक्त होती है, तब तत्पश्चात्भाविनी अमावस्या उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र युक्त होती है और जब पूर्णिमा उत्तरफाल्गुनी नक्षत्रयुक्त होती है, तब अमावस्या उत्तरभाद्रपदा नक्षत्र युक्त होती है । जब पूर्णिमा अश्विनी नक्षत्रयुक्त होती है, तब पश्चाद्वर्तिनी अमावस्या चित्रा नक्षत्रयुक्त होती है । जब पूर्णिमा चित्रा नक्षत्रयुक्त होती है, तो अमावस्या अश्विनी नक्षत्रयुक्त होती है । जब पूर्णिमा कृत्तिका नक्षत्रयुक्त होती है, तब अमावस्या विशाखा नक्षत्रयुक्त होती है । जब पूर्णिमा विशाखा नक्षत्रयुक्त होती है, तब अमावस्या कृत्तिका नक्षत्रयुक्त होती है । जब पूर्णिमा मृगशिर नक्षत्रयुक्त होती है, तब अमावस्या ज्येष्ठामूल नक्षत्रयुक्त होती है । जब पूर्णिमा ज्येष्ठामूल नक्षत्रयुक्त होती है, तो अमावस्या मृगशिर नक्षत्रयुक्त होती है । जब पूर्णिमा पुष्प नक्षत्रयुक्त होती है, तब अमावस्या पूर्वाषाढा नक्षत्रयुक्त होती है। जब पूर्णिमा पूर्वाषाढा नक्षत्रयुक्त होती है, तो अमावस्य पुष्य नक्षत्रयुक्त होती है ।
[३३२] भगवन् ! चातुर्मासिक वर्षाकाल के श्रावण मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ? गौतम ! चार, -उत्तराषाढा, अभिजित्, श्रवण तथा घनिष्ठा । उत्तराषाढा नक्षत्र श्रावण मास के १४ अहोरात्र, अभिजित् नक्षत्र ७ अहोरात्र, श्रवण नक्षत्र ८ अहोरात्र तथा धनिष्ठा नक्षत्र १ अहोरात्र परिसमाप्त करता है । उस मास में सूर्य चार अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण परिभ्रमण करता है । उस मास के अन्तिम दिन चार अंगुल अधिक दो पद पुरुषछायाप्रमाण पौरुषी होती है ।
भगवन् ! वर्षाकाल के भाद्रपद मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ? गौतम ! चार, धनिष्ठा, शतभिषक्, पूर्वभाद्रपदा तथा उत्तख़भाद्रपदा । धनिष्ठा नक्षत्र १४ अहोरात्र, शतभिषक् नक्षत्र ७ अहोरात्र, पूर्वभाद्रपदा नक्षत्र ८ अहोरात्र तथा उत्तरभाद्रपदा नक्षत्र १ अहोरात्र परिसमाप्त करता है । उस महीने में सूर्य आठ अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण अनुपर्यटन करता है । वर्षाकाल के आश्विन मास को तीन नक्षत्र परिसमाप्त करते हैंउत्तराभाद्रपदा, रेवती तथा अश्विनी । उत्तराभाद्रपदा १४ रातदिन, रेवती नक्षत्र १५ रातदिन