________________
११८
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
३६७४/१३७२५ योजन क्षेत्र पार करता है । इस क्रम से निष्क्रमण करता हुआ चन्द्र प्रत्येक मण्डल पर ३-९६५५/१३७२५ मुहूर्त-गति बढ़ाता हुआ सर्वबाह्य मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है । भगवन् ! जब चन्द्र सर्वबाह्य मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तब वह प्रतिमुहूर्त कितना क्षेत्र पार करता है ? गौतम ! ५१२५-६६६०/१३७२५ योजन । तब यहाँ स्थित मनुष्यों को वह ३१८३१ योजन की दूरी से दष्टिगोचर होता है । जब चन्द्र दूसरे बाह्य मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तब वह प्रतिमुहूर्त ५१२१-११६०/१३७२५ योजन क्षेत्र पार करता है । इस क्रम से निष्क्रमण करता हुए सूर्य का गणित पूर्ववत् जानना।
[२७६] भगवन् ! नक्षत्रमण्डल कितने बतलाये गये हैं ? गौतम ! नक्षत्रमण्डल आठ। जम्बूद्वीप में १८० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर दो नक्षत्रमण्डल हैं । लवणसमुद्र में ३३० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर छह नक्षत्रमण्डल हैं । सर्वाभ्यन्तर नक्षत्रमण्डल से सर्वबाह्य नक्षत्रमण्डल ५१० योजन की अव्यवहित दूरी पर है । एक नक्षत्रमण्डल से दूसरे नक्षत्रमण्डल की दूरी अव्यवहित रूप में दो योजन है । नक्षत्रमण्डल की लम्बाई-चौड़ाई दो कोस, उसकी परिधि लम्बाई-चौड़ाई से कुछ अधिक तीन गुनी तथा ऊँचाई एक कोस है । जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत से सर्वाभ्यन्तर नक्षत्रमण्डल अव्यवहित रूप में ४४८२० योजन की दूरी पर है । और सर्वबाह्य नक्षत्रमण्डल अव्यवहित रूप में ४५३३० योजन की दूरी पर है ।
भगवन् ! सर्वाभ्यन्तर नक्षत्रमण्डल की लम्बाई-चौड़ाई तथा परिधि कितनी है ? गौतम ! सर्वाभ्यन्तर नक्षत्रमण्डल की लम्बाई-चौड़ाई ९९६४० योजन तथा परिधि कुछ अधिक ३१५०८९ योजन है । सर्वबाह्य नक्षत्रमण्डल की लम्बाई-चौड़ाई १००६६० योजन तथा ३१८३१५ योजन है । जब नक्षत्र सर्वाभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करते हैं तो एक मुहूर्त में ५२६५-१८२६३/२१९६० योजन क्षेत्र पार करते हैं । जब नक्षत्र सर्वबाह्य मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करते हैं तो वे प्रतिमुहूर्त ५३१९-१६३६५/२१९६० योजन क्षेत्र पार करते हैं । आठ नक्षत्रमण्डल पहले, तीसरे, छठे, सातवें, आठवें, दसवें, ग्यारहवें तथा पन्द्रहवें चन्द्र-मण्डल में समवसृत होते हैं । चन्द्रमा एक मुहूर्त में मण्डल-परिधि का १७६८/ १०९८०० भाग अतिक्रान्त करता है । सूर्य उस मण्डल की परिधि १८३०/१०९८०० भाग अतिक्रान्त करता है । नक्षत्र प्रतिमुहूर्त मण्डल-परिधि का १८३५/१०९८०० भाग अतिक्रान्त करते हैं।
[२७७] भगवन् ! जम्बूद्वीप में दो सूर्य-ईशान कोण में उदित होकर क्या आग्नेय कोण में अस्त होते हैं, आग्नेय कोण में उदित होकर नैर्ऋत्य कोण में अस्त होते हैं, नैर्ऋत्य कोण में उदित होकर वायव्य कोण में, अस्त होते हैं, वायव्य कोण में उदित होकर ईशान कोण में अस्त होते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है । भगवन् ! जम्बूद्वीप में दो चन्द्रमा ईशान कोण में उदित होकर दक्षिण-आग्नेय कोण में अस्त होते हैं-इत्यादि वर्णन पूर्ववत् जान लेना ।
[२७८] भगवन् ! संवत्सर कितने हैं ? गौतम ! संवत्सर पाँच है- नक्षत्र-संवत्सर, युगसंवत्सर, प्रमाण-संवत्सर, लक्षण-संवत्सर तथा शनैश्चर-संवत्सर । नक्षत्र-संवत्सर कितने प्रकार का है ? बारह प्रकार का, श्रावण, भाद्रपद, आसोज यावत् आषाढ । अथवा बृहस्पति महाग्रह बारह वर्षों की अवधि में जो सर्व नक्षत्रमण्डल का परिसमापन करता हैं-वह भी नक्षत्रसंवत्सर है ।