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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - ७/२५७
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२६/६१ योजन एवं परिधि ३१८२९७ योजन है । तृतीय बाह्य सूर्य - मण्डल की लम्बाईचौड़ाई १००६४८-५२/६१ योजन तथा परिधि ३१८२७९ योजन है । यों पूर्वोक्त क्रम के अनुसार प्रवेश करता हुआ सूर्य पूर्व मण्डल से उत्तर मण्डल पर जाता हुआ एक-एक मण्डल पर ५- ३५/६१ योजन की विस्तार वृद्धि कम करता हुआ, अठारह अठारह योजन की परिधि - वृद्धि कम करता हुआ सर्वाभ्यन्तर- मण्डल पर पहुँचता है ।
[२५८] भगवन् ! जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर- मण्डल का उपसंक्रमण कर गति कता है, तो वह एक-एक मुहूर्त में कितने क्षेत्र को गमन करता है ? गौतम ! वह एक-एक मुहूर्त में ५२५१-२९/६० योजन पार करता है । उस समय सूर्य यहाँ भरतक्षेत्र स्थित मनुष्यों को ४७२६३-२१/६० योजन की दूरी से दष्टिगोचर होता है । वहाँ से निकलता हुआ सूर्य नव संवत्सर का प्रथम अयन बनाता हुआ प्रथम अहोरात्र में सर्वाभ्यन्तर मण्डल से दूसरे मण्डल पर उपसंक्रान्त होकर गति करता है । दूसरे मण्डल पर उपसंक्रान्त होकर गति करता है, तब वह एक-एक मुहूर्त में ५२५१-४७ /६० योजन क्षेत्र पार करता है । तब यहाँ स्थित मनुष्यों को ४७१७९-५७/६० योजन तथा ६० भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग के ६१ भागों में से १९ भाग योजनांश की दूरी से सूर्य दष्टिगोचर होता है । इस क्रम से निष्क्रमण करता हुआ सूर्य पूर्व मण्डल से उत्तर मण्डल को संक्रान्त करता हुआ १८ /६० योजन मुहूर्त्त - गति बढ़ाता हुआ, ८४ योजन न्यून पुरुषछायापरिमित कम करता हुआ सर्वबाह्य मण्डल को उपसंक्रान्त
गत करता है ।
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भगवन् ! जब सूर्य सर्वबाह्य मण्डल को उपसंक्रान्त कर गति करता है, तब वह प्रति मुहूर्त कितना क्षेत्र गमन करता है ? गौतम ! वह प्रति मुहूर्त ५३०५ - १५ / ६० योजन गमन करता है । तब यहाँ स्थित मनुष्यों को वह ३१८३१-३०/६० योजन की दूरी से दष्टिगोचर होता है । ये प्रथम छह मास हैं । सूर्य दूसरे छह मास के प्रथम अहोरात्र में सर्वबाह्य मण्डल से दूसरे बाह्य मण्डल पर उपसंक्रान्त होकर गति करता है । जब सूर्य दूसरे बाह्य मण्डल पर उपसंक्रान्त होकर गति करता है तो वह ५३०४-३९ / ६० योजन प्रति मुहूर्त गमन करता है। तब यहाँ स्थित मनुष्यों को वह ३१९१६-३९/६० योजन तथा ६० भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग के ६१ भागों में से ६० भाग योजनांश की दूरी से दष्टिगोचर होता है । यों पूर्वोक्त क्रम से प्रवेश करता हुआ सूर्य पूर्व मण्डल से उत्तर मण्डल पर संक्रमण करता हुआ, प्रतिमण्डल पर निष्क्रमण क्रम से गति करता है । ये दूसरा छह मास है । यह आदित्यसंवत्सर है ।
[२५९] भगवन् ! जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल को उपसंक्रान्त कर गति करता है, तब- उस समय दिन कितना बड़ा होता है, रात कितनी बड़ी होती है ? गौतम ! उत्तमावस्थाप्राप्त, उत्कृष्ट - १८ मुहूर्त का दिन होता है, जघन्य १२ मुहूर्त की रात होती है । वहाँ से निष्क्रमण करता हुआ सूर्य नये संवत्सर में प्रथम अहोरात्र में दूसरे आभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है । जब सूर्य दूसरे आभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तब २/ ६१ मुहूर्तांश कम १८ मुहूर्त का दिन होता है, २/६१ मुहूर्तांश अधिक १२ मुहूर्त की रात होती है । इस क्रम से निष्क्रमण करता हुआ, पूर्व मण्डल से उत्तर मण्डल का संक्रमण करता हुआ सूर्य प्रत्येक मण्डल में दिवस - क्षेत्र - दिवस - परिमाण को २/६१ मुहूर्तांश कम करता हुआ
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