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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-७/२६२
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योजन-प्रमाण है । जो पर्वत की परिधि है, उसे दो से गुणित किया जाए, गुणनफल को दस से विभक्त किया जाए, उसका भागफल इस परिधि का परिमाण है । उसकी सर्वबाह्य बाहा की परिधि लवणसमुद्र के अन्त में ६३२४५-६/१० योजन-परिमित है । गौतम ! जो जम्बूद्वीप की परिधि है, उसे दो से गुणित किया जाए, गुणनफल को दस से विभक्त किया जाए, उसका भागफल इस परिधि का परिमाण है । तब अन्धकार क्षेत्र का आयाम, ७८३३३१/३ योजन है । जब सूर्य सर्वबाह्य मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है तो ताप-क्षेत्र का संस्थान ऊर्ध्वमुखी कदम्ब-पुष्प संस्थान जैसा है । अन्य वर्णन पूर्वानुरूप है । इतना अन्तर है-पूर्वानुपूर्वी के अनुसार जो अन्धकार-संस्थिति का प्रमाण है, वह इस पश्चानुपूर्वी के अनुसार ताप-संस्थिति का जानना । सर्वाभ्यन्तर मण्डल के सन्दर्भ में जो ताप-क्षेत्र-संस्थिति का प्रमाण है, वह अन्धकार-संस्थिति में समझ लेना ।
[२६३] भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप में सूर्य (दो) उद्गमन-मुहर्त में स्थानापेक्षया दूर होते हुए भी द्रष्टा की प्रतीति की अपेक्षा से समीप दिखाई देते हैं ? मध्याह्न-काल में समीप होते हुए भी क्या वे दूर दिखाई देते हैं ? अस्तमन-वेला में दूर होते हुए भी निकट दिखाई देते हैं ? हाँ गौतम ! ऐसा ही है । भगवन् ! जम्बूद्वीप में सूर्य उदयकाल, मध्याह्नकाल तथा अस्तमनकाल में क्या सर्वत्र एक सरीखी ऊँचाई लिये होते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है । भगवन् ! यदि जम्बूद्वीप में सूर्य उदयकाल, मध्याह्नकाल तथा अस्तमनकाल में सर्वत्र एक-सरीखी ऊँचाई लिये होते हैं तो उदयकाल में वे दूर होते हुए भी निकट क्यों दिखाई देते हैं, इत्यादि प्रश्न । गौतम! लेश्या के प्रतिघात से अत्यधिक दूर होने के कारण उदयस्थान से आगे प्रसृत न हो पाने से, यों तेज या ताप के प्रतिहत होने के कारण सुखदृश्य होने के कारण दूर होते हुए भी सूर्य उदयकाल में निकट दिखाई देते हैं । मध्याह्नकाल में लेश्या के अभिताप से-कष्टपूर्वक देखे जा सकने योग्य होने के कारण दूर दिखाई देते हैं । अस्तमनकाल में लेश्या के उदयकाल की ज्यों दूर होते हुए भी सूर्य निकट दिखाई पड़ते हैं ।
[२६४] भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप में सूर्य अतीत-क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं अथवा प्रत्युत्पन्न या अनागत क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं ? गौतम ! वे केवल वर्तमान क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं । भगवन् ! क्या वे गम्यमान क्षेत्र का स्पर्श करते हुए अतिक्रमण करते हैं या अस्पर्शपूर्वक ? गौतम ! वे गम्यमान क्षेत्र का स्पर्श करते हुए अतिक्रमण करते हैं । वे गम्यमान क्षेत्र को अवगाढ कर अतिक्रमण करते हैं । वे उस क्षेत्र का अव्यवहित रूप में अवगाहन करते अतिक्रमण करते हैं ।
वे अणुरूप-अनन्तरावगाढ क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं, अणुबादररूप ऊर्ध्व क्षेत्र का, अधःक्षेत्र का और तिर्यक् क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं वे साठ मुहूर्तप्रमाण मण्डलसंक्रमणकाल के आदि में मध्य में तथा अन्त में भी गमन करते हैं । वे स्पृष्ट-अवगाढ-अनन्तरावगाढ रूप उचित क्षेत्र में गमन करते हैं । वे आनुपूर्वीपूर्वक-आसन्न क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं । वे नियमतः छह दिशाविषयक क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं । इस प्रकार वे अवभासित होते हैंजिसमें स्थूलतर वस्तुएँ दीख पाती हैं । इस प्रकार दोनों सूर्य छहों दिशाओं में उद्योत करते हैं, तपते हैं, प्रभासित होते हैं
[२६५] भगवन् ! जम्बूद्वीप में दो सूर्यों द्वारा अवभासन आदि क्रिया क्या अतीत क्षेत्र