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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
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तथा रात्रि-परिमाण को २/६१ मुहूर्ताश बढ़ाता हुआ सर्वबाह्य मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है । जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल से सर्वबाह्य मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तब सर्वाभ्यन्तर मण्डल का परित्याग कर १८३ अहोरात्र में दिवस-क्षेत्र में ३६६ संख्यापरिमित १/६१ मुहूर्ताश कम कर तथा रात्रि-क्षेत्र में इतने ही मुहूर्तांश बढ़ाकर गति करता है।
भगवन् ! जब सूर्य सर्वबाह्य मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तब दिन कितना बड़ा होता है, रात कितनी बड़ी होती है ? गौतम ! तब रात उत्तमावस्थाप्राप्त, उत्कृष्ट१८ मुहर्त की होती है, दिन जघन्य १२ मुहूर्त का होता है । ये प्रथम छ: मास हैं । वहाँ से प्रवेश करता हुआ सूर्य दूसरे छः मास के प्रथम अहोरात्र में दूसरे बाह्य मण्डल को उपसंक्रान्त कर गति करता है । जब सूर्य दूसरे बाह्य मण्डल को उपसंक्रान्त कर गति करता है, तब २/ ६१ मुहूतांश कम १८ मुहूर्त की रात होती है २/६१ मुहूतांश अधिक १२ मुहूर्त का दिन होता है । इस प्रकार पूर्वोक्त क्रम से प्रवेश करता हुआ सूर्य पूर्व मण्डल से उत्तर मण्डल का संक्रमण करता हुआ रात्रि-क्षेत्र में एक-एक मण्डल में २/६१ मुहूर्ताश कम करता हुआ तथा दिवस-क्षेत्र में २/६१ मुहूतांश बढ़ाता हुआ सर्वाभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है । जब सूर्य सर्वबाह्य मण्डल से सर्वाभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तब वह सर्वबाह्य मण्डल का परित्याग कर १८३ अहोरात्र में रात्रि-क्षेत्र में ३६६ संख्या-परिमित १/६१ मुहूर्ताश कम कर तथा दिवस-क्षेत्र में उतने ही मुहूर्ताश अधिक कर गति करता है । ये द्वितीय छह मास हैं । यह आदित्य-संवत्सर है ।
[२६०] भगवन् ! जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तो उसके ताप-क्षेत्र की स्थिति किस प्रकार है ? गौतम ! तब ताप-क्षेत्र की स्थिति ऊर्ध्वमुखी कदम्ब-पुष्प के संस्थान जैसी होती है वह भीतर में संकीर्ण तथा बाहर विस्तीर्ण, भीतर से वृत्त तथा बाहर से पृथुल, भीतर अंकमुख तथा बाहर गाड़ी की धुरी के अग्रभाग जैसी होती है । मेरु के दोनों ओर उसकी दो बाहाएँ हैं-उनमें वृद्धि-हानि नहीं होती । उनकी लम्बाई ४५००० योजन है । उसकी दो बाहाएँ अनवस्थित हैं । वे सर्वाभ्यन्तर तथा सर्वबाह्य के रूप में
अभिहित हैं । उनमें सर्वाभ्यन्तर बाहा की परिधि मेरु पर्वत के अन्त में ९४८६-९/१० योजन है । जो मेरु पर्वत की परिधि है, उसे ३ से गुणित किया जाए । गुणनफल को दस का भाग दिया जाए । उसका भागफल इस परिधि का परिमाण है । उसकी सर्वबाह्य बाहा की परिधि लवणसमुद्र के अन्त में ९४८६८-४/१० योजन-परिमित है । जो जम्बूद्वीप की परिधि है, उसे ३ से गुणित किया जाए, गुणनफल को १० से विभक्त किया जाए । वह भागफल इस परिधि का परिमाण है । उस समय ताप-क्षेत्र की लम्बाई ७८३३३-१/३ योजन होती है ।
[२६१] मेरु से लेकर जम्बूद्वीप पर्यन्त ४५००० योजन तथा लवणसमुद्र के विस्तार २००००० योजन के १/६ भाग ३३३३३-१/३ योजन का जोड़ ताप-क्षेत्र की लम्बाई है। उसका संस्थान गाड़ी की धुरी के अग्रभाग जैसा होता है ।
[२६२] भगवन् ! तब अन्धकार-स्थिति कैसी होती है ? गौतम ! अन्धकार-स्थिति तब ऊर्ध्वमुखी कदम्ब पुष्प का संस्थान लिये होती है । वह भीतर संकीर्ण, बाहर विस्तीर्ण इत्यादि होती है । उसकी सर्वाभ्यन्तर बाहा की परिधि मेरु पर्वत के अन्त में ६३२४-६/१०