________________
१००
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
शीघ्र ही गरजते हैं, उनमें बिजलियाँ चमकती हैं तथा वे तीर्थंकर जन्म-भवन के चारों ओर योजन-परिमित परिमंडल मिट्टी को आसिक्त, शुष्क रखते हुए मन्द गति से, धूल, मिट्टी जम जाए, इतने से धीमे वेग से उत्तम स्पर्शयुक्त दिव्यसुगन्धयुक्त झिरमिर-झिरमिर जल बरसाते हैं। उसमें धूलनिहत, नष्ट, भ्रष्ट, प्रशान्त तथा उपशान्त हो जाती है । ऐसा कर वे बादल शीघ्र ही उपरत हो जाते हैं ।
फिर वे ऊर्ध्वलोकवास्तव्या आठ दिक्कुमारिकाएँ पुष्पों के बादलों की विकुर्वणा करती हैं | उन विकुर्वित फूलों के बादल जोर-जोर से गरजते हैं, उसी प्रकार, कमल, वेला, गुलाब आदि देदीप्यमान, पंचरंगे, वृत्तसहित फूलों की इतनी विपुल वृष्टि करते हैं कि उनका घुटनेघुटने तक ऊँचा ढेर हो जाता है । फिर वे काले अगर, उत्तम कुन्दरुक, लोबान तथा धूप की गमगमाती महक से वहाँ के वातावरण को बड़ा मनोज्ञ, उत्कृष्ट-सुरभिमय बना देती हैं । सुगंधित धुएँ की प्रचुरता से वहाँ गोल-गोल धूममय छल्ले से बनने लगते हैं । यों वे दिक्कुमारिकाएँ उस भूभाग को सुरवर-के अभिगमन योग्य बना देती हैं । ऐसा कर वे भगवान् तीर्थंकर एवं उनकी माँ के पास आती हैं । वहाँ आकर आगान, परिगान करती हैं ।
[२१८] उस काल, उस समय पूर्वदिग्वर्ती रुचककूट-निवासिनी आठ दिक्कुमारिकाएँ अपने-अपने कूटों पर सुखोपभोग करती हुई विहार करती हैं । उनके नाम इस प्रकार हैं
[२१९] नन्दोत्तरा, नन्दा, आनन्दा, नन्दिवर्धना, विजया, वैजयन्ती, जयन्ती तथा अपराजिता ।
[२२०] अवशिष्ट वर्णन पूर्ववत् है । देवानुप्रिये ! पूर्वदिशावर्ती रुचककूट निवासिनी हम आठ दिशाकुमारिकाएँ भगवान् तीर्थंकर का जन्म-महोत्सव मनायेंगी । अतः आप भयभीत मत होना ।' यों कहकर तीर्थंकर तथा उनकी माता के श्रृंगार, शोभा, सज्जा आदि विलोकन में उपयोगी, प्रयोजनीय दर्पण हाथ में लिये वे भगवान् तीर्थंकर एवं उनकी माता के पूर्व में आगान, परिगान करने लगती हैं । उस काल, उस समय दक्षिण रुचककूट-निवासिनी आठ दिक्कुमारिकाएँ यावत विहारती हैं । उनके नाम इस प्रकार हैं
[२२१] समाहारा, सुप्रदत्ता, सुप्रबुद्धा, यशोधरा, लक्ष्मीवती, शेषवती, चित्रगुप्ता तथा वसुन्धरा ।
[२२२] वे भगवान् तीर्थंकर की माता से कहती हैं-'आप भयभीत न हों ।' यों कहकर वे भगवान् तीर्थंकर एवं उनकी माता के स्नपन में प्रयोजनीय सजल कलश हाथ में लिए दक्षिण में आगान, पारिगान करने लगती है । उस काल, उस समय पश्चिम रूचक कूटनिवासिनी आठ दिक्कुमारिकाएँ हैं । उनके नाम इस प्रकार हैं
[२२३] इलादेवी, सुरादेवी, पृथिवी, पद्मावती, एकनासा, नवमिका, भद्रा तथा सीता।
[२२४] वे भगवान् तीर्थंकर की माता को सम्बोधित कर कहती हैं-'आप भयभीत न हो ।' यों कह कर वे हाथों में तालवृन्त-लिये हुए आगान, परिगान करती हैं । उस काल, उस समय उत्तर रुचककूट-निवासिनी आठ दिक्कुमारिकाएँ हैं । उनके नाम इस प्रकार हैं
[२२५] अलंबुसा, मिश्रकेशी, पुण्डरीका, वारुणी, हासा, सर्वप्रभा, श्री तथा ही ।
[२२६] वे भगवान् तीर्थंकर तथा उनकी माता को प्रणाम कर उनके उत्तर में चँवर हाथ के लिये आगान-परिगान करती हैं । उस काल, उस समय रुचककूट के मस्तक पर