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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - ५ / २३८
छोड़कर उत्तरीय भवनपति इन्द्रों के दक्ष नामक पदाति- सेनाधिपति है । इसी प्रकार व्यन्तरेन्द्रों तथा ज्योतिष्केन्द्रों का वर्णन है । उनके ४००० सामानिक देव, चार अग्रमहिषियाँ तथा १६००० अंगरक्षक देव हैं, विमान १००० योजन विस्तीर्ण तथा महेन्द्रध्वज १२५ योजन विस्तीर्ण है । दाक्षिणात्यों की मंजुस्वरा तथा उत्तरीयों की मंजुघोषा घण्टा है । उनके पदातिसेनाधिपति तथा विमानकारी - आभियोगिक देव हैं । ज्योतिष्केन्द्रों-चन्द्रों की सुस्वरा एवं सूर्यो की सुस्वरनिर्घोषा नामक घण्टाएं हैं ।
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[२३९] देवेन्द्र, देवराज, महान् देवाधिप अच्युत अपने आभियोगिक देवों को बुलाता है, उनसे कहता है - देवानुप्रियो ! शीघ्र ही महार्थ, महार्घ, महार्ह, विपुल - तीर्थंकराभिषेक उपस्थापित करो - । यह सुनकर वे आभियोगिक देव हर्षित एवं परिपुष्ट होते हैं । वे ईशानकोण में जाते हैं । वैक्रियसमुद्घात से १००८ स्वर्णकलश, १००८ रजतकलश - इसी प्रकार मणिमय, स्वर्ण-रजतमय, स्वर्णमणिमय, रजत-मणिमय, स्वर्ण-रजतमणिमय, भौमेय, चन्दन ये सब कलश तथा १००८ - १००८ झारियाँ, दर्पण, थाल, पात्रियाँ, सुप्रतिष्ठक, रत्नकरंडक, वातकरंडक, पुष्पचंगेरी, पुष्प- पटलों, १००८ - १००८ सिंहासन, तैल-समुद्गक, यावत् सरसों के समुद्गक, १००८ तालवृन्त तथा १००८ धूपदान - की विकुर्वणा करते हैं । स्वाभाविक एवं विकुर्वित कलशों से धूपदान पर्यन्त सब वस्तुएँ लेकर, क्षीरोद समुद्र, आकर क्षीररूप उदक ग्रहण करते हैं । उत्पल, पद्म, आदि लेते हैं । पुष्करोद समुद्र से जल आदि लेते हैं । समयक्षेत्र - पुष्करवरद्वीपार्ध के भरत, ऐखत के मागध आदि तीर्थों का जल तथा मृत्तिका लेते हैं । गंगा आदि महानदियों का जल एवं मृतिका ग्रहण करते हैं । फिर क्षुद्र हिमवान् पर्वत से तुवर आदि सब कषायद्रव्य, पुष्प, सुगन्धित पदार्थ, मालाएँ, औषधियाँ तथा सफेद सरसों लेते हैं । उन्हें लेकर पद्मद्रह से उसका जल एवं कमल आदि ग्रहण करते हैं ।
इसी प्रकार समस्त कुलपर्वतों, वृत्तवैताढ्य पर्वतों, सब महाद्रहों, समस्त क्षेत्रों, सर्व चक्रवर्ति विजयों, वक्षस्कार पर्वतों, अन्तर नदियों से जल एवं मृत्तिका लेते हैं । कुरु से पुष्करवरद्वीपार्थ के पूर्व भरतार्थ, पश्चिम भरतार्ध आदि स्थानों से सुदर्शन-के भद्रशाल वन पर्यन्त सभी स्थानों से समस्त कषायद्रव्य एवं सफेद सरसों लेते हैं । इसी प्रकार नन्दनवन से सर्वविध कषायद्रव्य, सफेद सरसों, सरस -- चन्दन तथा दिव्य पुष्पमाला लेते हैं । इसी भाँति सौमनस एवं पण्डक वन से सर्व-कषाय-द्रव्य पुष्पमाला एवं दर्दर और मलय पर्वत पर उद्भूत सुरभिमय पदार्थ लेते हैं । ये सब वस्तुएँ लेकर एक स्थान पर मिलते हैं । तीर्थंकर के पास आकर महार्थ तीर्थंकराभिषेकोपयोगी क्षीरोदक आदि वस्तुएँ अच्युतेन्द्र के संमुख रखते हैं।
[ २४०] देवेन्द्र अच्युत अपने १०००० सामानिक देवों, ३३ त्रायस्त्रिंश देवों, चार लोकपालों, तीन परिषदों, सात सेनाओं, सात सेनापति देवों तथा ४०००० अंगरक्षक देवों से परिवृत होता हुआ स्वाभाविक एवं विकुर्वित उत्तम कमलों पर रखे हुए, सुगन्धित, उत्तम जल से परिपूर्ण, चन्दन से चर्चित गलवे में मोली बाँधे हुए, कमलों एवं उत्पलों से ढँके हुए, सुकोमल हथेलियों पर उठाये हुए १००८ सोने के कलशों यावत् १००८ मिट्टी के कलशों, के सब प्रकार के जलों, मृत्तिकाओं, कसैले पदार्थों, औषधियों एवं सफेद सरसों द्वारा सब प्रकार की ऋद्धि-वैभव के साथ तुमुल वाद्यध्वनिपूर्वक भगवान् तीर्थंकर का अभिषेक करता है। अच्युतेन्द्र द्वारा अभिषेक किये जाते समय अत्यन्त हर्षित एवं परितुष्ट अन्य इन्द्र आदि देव