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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
करोड़ रौप्य-मुद्राएँ, स्वर्ण-मुद्राएं, वर्तुलाकार लोहासन, भद्रासन भगवान् तीर्थंकर के जन्म-भवन में लाओ । वैश्रमण देव शक्र के आदेश को विनयपूर्वक स्वीकार करता है । जृम्भक देवों को बुलाता है । बुलाकर शक्र की आज्ञा से सूचित करता है । वे शीघ्र ही बत्तीस करोड़ रौप्यमुद्राएँ आदि तीर्थंकर के जन्म-भवन में ले आते हैं । वैश्रमण देव को सूचित करते हैं । तब वैश्रमण देव देवेन्द्र देवराज शक्र को अवगत कराता है । तत्पश्चात् देवेन्द्र, देवराज शक्र अपने आभियोगिक देवों को बुलाकर कहता है-देवानुप्रियो ! शीघ्र ही तीर्थंकर के जन्म-नगर के तिकोने स्थानों, तिराहों, चौराहों एवं विशाल मार्गों में जोर-जोर से उद्घोषित करते हुए कहो'बहुत से भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क तथा वैमानिक देव-देवियों ! आप सुनें-आप में से जो कोई तीर्थंकर या उनकी माता के प्रति अपने मन में अशुभ भाव लायेगा-आर्यक मंजरी की ज्यों उसके मस्तक के सौ टुकड़े हो जायेंगे ।'
वे आभियोगिक देव देवेन्द्र देवराज शक्र का आदेश स्वीकार करते हैं । वहाँ से प्रतिनिष्क्रान्त होते हैं वे शीघ्र ही तीर्थंकर के जन्म-नगर में आते हैं । वहाँ पूर्वोक्त घोषण करते है । ऐसी घोषणा कर वे आभियोगिक देव देवराज शक्र को, उनके आदेश का पालन किया जा चुका है, ऐसा अवगत कराते हैं । तदनन्तर बहुत से भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क तथा वैमानिक देव भगवान् तीर्थंकर का जन्मोत्सव मनाते हैं । तत्पश्चात् नन्दीश्वर द्वीप आकर अष्टदिवसीय विराट् जन्म-महोत्सव आयोजित करते हैं । वैसा करके जिस दिशा से आये थे, उसी दिशा में चले जाते हैं । वक्षस्कार-५-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(वक्षस्कार-६) [२४५] भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप के चरम प्रदेश लवणसमुद्र का स्पर्श करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं । जम्बूद्वीप के जो प्रदेश लवणसमुद्र का स्पर्श करते हैं, क्या वे जम्बूद्वीप के ही प्रदेश कहलाते हैं या लवणसमुद्र के ? गौतम ! वे जम्बूद्वीप के ही प्रदेश कहलाते हैं। इसी प्रकार लवणसमुद्र के प्रदेशों की बात है । भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप के जीव मरकर लवणसमुद्र में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! कतिपय उत्पन्न होते हैं, कतिपय उत्पन्न नहीं होते । इसी प्रकार लवणसमुद्र के जीवों के विषय में जानना ।
[२४६] खण्ड, योजन, वर्ष, पर्वत, कूट, तीर्थ, श्रेणियां, विजय, द्रह तथा नदियांइनका प्रस्तुत सूत्र में वर्णन है ।
[२४७] भगवन् ! जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के प्रमाण जितने-भरतक्षेत्र के बराबर खण्ड किये जाएं तो वे कितने होते हैं ? गौतम ! खण्डगणित के अनुसार वे १९० होते है । भगवन् ! योजनगणित के अनुसार जम्बूद्वीप का कितना प्रमाण है ?
[२४८] गौतम ! जम्बूद्वीप का क्षेत्रफल-प्रमाण ७,९०,५६,९४,१५० योजन है ।
[२४९] भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने वर्ष-क्षेत्र हैं ? गौतम ! सात, -भरत, ऐरावत, हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यकवर्ष तथा महाविदेह । जम्बूद्वीप के अन्तर्गत् छह वर्षधर पर्वत, एक मन्दर पर्वत, एक चित्रकूट पर्वत, एक विचित्रकूट पर्वत, दो यमक पर्वत, दो सौ काञ्चन पर्वत, बीस वक्षस्कार पर्वत, चौतीस दीर्घ वैताढ्य पर्वत तथा चार वृत्त वैताढ्य पर्वत हैं । यों