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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
इन दिशाओं के अन्तर्गत पूर्व दिशावर्ती भवन के दक्षिण में, आग्नेय कोणवर्ती उत्तम प्रासाद के उत्तर में मन्दरकूट पर पूर्व में मेघवती राजधानी है । दक्षिण दिशावर्ती भवन के पूर्व में,
कोणवर्ती उत्तम प्रासाद के पश्चिम में निषधकूट पर सुमेघा देवी है । दक्षिण में उसकी राजधानी है । दक्षिण दिशावर्ती भवन के पश्चिम में, नैर्ऋत्यकोणवर्ती उत्तम प्रासाद के पूर्व में हैमवतकूट पर हेममालिनी देवी है । उसकी राजधानी दक्षिण में है । पश्चिम दिशावर्ती भवन के दक्षिण में, नैर्ऋत्यकोणवर्ती उत्तम प्रासाद के उत्तर में रजतकूट पर सुवत्सा देवी है । पश्चिम में उसकी राजधानी है । पश्चिमदिग्वर्ती भवन के उत्तर में, वायव्यकोणवर्ती उत्तम प्रासाद के दक्षिण में रुचक कूट पर वत्समित्रा देवी निवास करती है । पश्चिम में उसकी राजधानी है । उत्तरदिग्वर्ती भवन के पश्चिम में, वायव्यकोणवर्ती उत्तम प्रासाद के पूर्व में सागरचित्र कूट पर वज्रसेना देवी निवास करती है । उत्तर में उसकी राजधानी है । उत्तरदिग्वर्ती भवन के पूर्व में, ईशानकोणवर्ती उत्तम प्रासाद के पश्चिम में वज्रकूट पर बलाहका देवी निवास करती है । उसकी राजधानी उत्तर में है । बलकूट कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत के ईशानकोण में नन्दनवन के अन्तर्गत है । उसका प्रमाण, विस्तार हरिस्सहकूट सदृश है । इतना अन्तर है-उसका अधिष्ठायक बल देव है । उसकी राजधानी - ईशान कोण में है ।
[१९८] भगवन् ! सौमनसवन कहाँ है ? गौतम ! नन्दनवन के बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग से ६२५०० योजन ऊपर जाने पर है । वह चक्रवाल- विष्कम्भ से पाँच सौ योजन विस्तीर्ण है, गोल है, वलय के आकार का है । वह मंन्दर पर्वत को चारों ओर से परिवेष्टित किए हुए है । वह पर्वत से बाहर ४२७२ - ८/१९ योजन विस्तीर्ण है । बाहर उसकी परिधि १३५११-६/१९ योजन है । भीतरी भाग में ३२७२-८/१९ योजन विस्तीर्ण है । पर्वत के भीतरी भाग से संलग्न उसकी परिधि १०३४९ - ३/१९ योजन है । वह एक पद्मववेदिका तथा एक वनखण्ड द्वारा चारों ओर से घिरा हुआ है । वह वन काले, नीले आदि पत्तों से, लताओं से आपूर्ण है । उनकी कृष्ण, नील आभा द्योतित है । वहाँ देव - देवियां आश्रय लेते हैं । उसमें आगे शक्रेन्द्र तथा ईशानेन्द्र के उत्तम प्रासाद हैं ।
[१९९] भगवन् ! पण्डकवन कहाँ है ? गौतम ! सोमनसवन के बहुत समतल तथा रमणीय भूमिभाग से ३६००० योजन ऊपर जाने पर मन्दर पर्वत के शिखर पर है । चक्रवाल विष्कम्भ से वह ४९४ योजन विस्तीर्ण है, गोल है, वलय के आकार जैसा उसका आकार है । वह मन्दर पर्वत की चूलिका को चारों ओर से परिवेष्टित कर स्थित है । उसकी परिधि कुछ अधिक ३१६२ योजन है । वह एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक वनखण्ड द्वारा घिरा है । वह काले, नीले आदि पत्तों से युक्त है । देव देवियां वहाँ आश्रय लेते हैं । पण्डकवन के बीचों-बीच मन्दर चूलिका है । वह चालीस योजन ऊँची है । मूल में बारह योजन, मध्य में आठ योजन तथा ऊपर चार योजन चौड़ी है । मूल में उसकी परिधि कुछ अधिक ३७ योजन, बीच में कुछ अधिक २५ योजन तथा ऊपर कुछ अधिक १२ योजन है । वह मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त तथा ऊपर पतली है । उसका आकार गाय के पूंछ के सदृश है । वह सर्वथा वैडूर्य रतनमय है - वह एक पद्मवरवेदिका द्वारा चारों ओर से संपरिवृत है । ऊपर बहुत समतल एवं सुन्दर भूमिभाग है । उसके बीच में सिद्धायतन है । वह एक को लम्बा, आधा कोश चौड़ा, कुछ कम एक कोश ऊँचा है, सैकड़ों खम्भों पर टिका है ।