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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-४/१९४
देव निवास करता है । भगवन् ! मन्दर पर्वत पर भद्रशाल वन में दिशाहस्तिकूट-कितने हैं ? गौतम ! आठ
[१९५] पद्मोत्तर, नीलवान्, सुहस्ती, अंजनगिरि, कुमुद, पलाश, अवतंस तथा रोचनागिरि।
[१९६] भगवन् ! पद्मोत्तर नामक दिग्हस्तिकूट कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत के ईशान कोण में तथा पूर्व दिगत शीता महानदी के उत्तर में है । वह ५०० योजन ऊँचा तथा ५०० कोश जमीन में गहरा है । उसकी चौड़ाई तथा परिधि चुल्लहिमवान् पर्वत के समान है। वहाँ पद्मोत्तर देव निवास करता है । उसकी राजधानी-ईशान कोण में है । नीलवान् नामक दिग्हस्तिकूट मन्दर पर्वत के-आग्नेय कोण में तथा पूर्व दिशागत शीता महानदी के दक्षिण में है । वहाँ नीलवान् देव निवास करता है । उसकी राजधानी-आग्नेय कोण में है । सुहस्ती नामक दिग्हस्तिकूट मन्दर पर्वत के-आग्नेय कोण में तथा दक्षिण-दिशागत शीतोदा महानदी के पूर्व में है । वहाँ सुहस्ती देव निवास करता है । उसकी राजधानी-आग्नेय कोण में है । अंजनगिरि नामक दिग्हस्तिकूट मन्दर पर्वत के नैर्ऋत्य कोण में तथा दक्षिण-दिशागत शीतोदा महानदी के पश्चिम में है । अंजनगिरि नामक अधिष्ठायक देव है । राजधानी नैर्ऋत्य कोण में है । कुमुद नामक विदिशागत हस्तिकूट मन्दर पर्वत के नैर्ऋत्य कोण में तथा पश्चिमदिग्वर्ती शीतोदा महानदी के दक्षिण में है । वहाँ कुमुद देव निवास करता है । राजधानी नैर्ऋत्य कोण में है । पलाश नामक विदिग्रहस्तिकूट मन्दर पर्वत के वायव्य कोण में एवं पश्चिम दिग्वर्ती शीतोदा महानदी के उत्तर में है । पलाश देव निवास करता है । राजधानी-वायव्य कोण में है । अवतंस नामक विदिग्हस्तिकूट मन्दर पर्वत के वायव्य कोण तथा उत्तर दिगत शीता महानदी के पश्चिम में है । अवतंस देव निवास करता है । राजधानी-वायव्य कोण में है । रोचनागिरि नामक दिग्हस्तिकूट मन्दर पर्वत के ईशान कोण में और उत्तर दिग्गत शीता महानदी के पूर्व में है । रोचनागिरि देव निवास करता है । राजधानी-ईशान कोण में है ।
[१९७] भगवन् ! नन्दनवन कहाँ है ? गौतम ! भद्रशालवन के बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग से पाँच सौ योजन ऊपर जाने पर है । चक्रवालविष्कम्भ के सब ओर से समान, विस्तार की अपेक्षा से वह ५०० योजन है, गौल है । उसका आकार वलय के सदृश है, सघन नहीं है, मध्य में वलय की ज्यों शुषिर है है । वह मन्दर पर्वतों को चारों ओर से परिवेष्टित किये हुए है । नन्दनवन के बाहर मेरु पर्वत का विस्तार ९९५४-६/१९ योजन है। बाहर उसकी परिधि कुछ अधिक ३१४७९ योजन है । भीतर उसका विस्तार ८९४४-६/ १९ योजन है । उसकी परिधि २८३१६-८/१९ योजन है । वह एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक वनखण्ड द्वारा चारों ओर से परिवेष्टित है । वहाँ देव-देवियां आश्रय लेते हैं-मन्दर पर्वत के रूप में एक विशाल सिद्धायतन है । ऐसे चारों दिशाओं में चार सिद्धायतन हैं । विदिशाओं में पुष्करिणियां हैं । नन्दनवन में कितने कूट हैं ? गौतम ! नौ, नन्दनवनकूट, मन्दस्कूट, निषधकूट, हिमवत्कूट, रजतकूट, रुचककूट, सागरचित्रकूट, वज्रकूट तथा बलकूट।
भगवन् ! नन्दनवनकूट कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत पर पूर्व दिशावर्ती सिद्धायतन के उत्तर में, -ईशान कोणवर्ती उत्तम प्रासाद के दक्षिण में है । सभी कूट ५०० योजन ऊँचे हैं । नन्दनवनकूट पर मेघंकरा देवी निवास करती है । उसकी राजधानी-ईशानकोण में है ।