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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - ४ /१८५
शीतोदाकूट, शतज्वलकूट, हरिकूट ।
[१८६] हरिकूट के अतिरिक्त सभी कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊँचे हैं । हरिकूट हरि सहकूट सदृश है । दक्षिण में इसकी राजधानी है । कनककूट तथा सौवत्सिककूट में वारिषेणा एवं बलाहका नामक दो दिक्कुमारिकाएँ निवास करती हैं । बाकी के कूटों में कूटसदृश नामयुक्त देव निवास करते हैं । उनकी राजधानियां मेरु के दक्षिण में हैं । वह विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत क्यों कहा जाता है । गौतम ! विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत विद्युत की ज्यों - सब ओर से अवभासित होता है, उद्योतित होता है, प्रभासित होता है - बिजली की ज्यों चमकता है । वहाँ पल्योपमपरिमित आयुष्य स्थिति युक्त विद्युत्प्रभ देव निवास करता है, अथवा उसका यह नाम नित्य--है ।
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[१८७ ] पक्ष्म विजय है, अश्वपुरी राजधानी है, अंकावती वक्षस्कार पर्वत है । सुपक्ष्म विजय है, सिंहपुरी राजधानी है, क्षीरोदा महानदी है । महापक्ष्म विजय है, महापुरी राजधानी है, पक्ष्मावती वक्षस्कार पर्वत है । पक्ष्मकावती विजय है, विजयपुरी राजधानी है, शीतस्रोता महानदी है । शंख विजय है, अपराजिता राजधानी है, आशीविष वक्षस्कार पर्वत है । कुमुद विजय है, अरजा राजधानी है, अन्तर्वाहिनी महानदी है । नलिन विजय है, अशोका राजधानी है, सुखावह वक्षस्कार पर्वत है । नलिनावती विजय है, वीताशोका राजधानी है । दाक्षिणात्य शीतोदामुख वनखण्ड के समान उत्तरी शीतोदामुख वनखण्ड है । उत्तरी शीतोदामुख वनखण्ड में वप्र विजय है, विजया राजधानी है, चन्द्र वक्षस्कार पर्वत है । सुवप्र विजय है, वैजयन्ती राजधानी है, ऊर्मिमालिनी नदी है । महावप्र विजय है, जयन्ती राजधानी है, सूर वक्षस्कार पर्वत है । वप्रावती विजय है, अपराजिता राजधानी है, फेनमालिनी नदी है । वल्गु विजय है, चक्रपुरी राजधानी है, नाग वक्षस्कार पर्वत है । सुवल्गु विजय है, खड्गपुरी राजधानी है, गम्भीरमालिनी अन्तरनदी है । गन्धिल विजय है, अवध्या राजधानी है, देव वक्षस्कार पर्वत है। धावती विजय है, अयोध्या राजधानी है । इसी प्रकार मन्दर पर्वत के दक्षिणी पार्श्व का - कथन कर लेना । वहाँ शीतोदा नदी के दक्षिणी तट पर ये विजय हैं
[१८८] पक्ष्म, सुपक्ष्म, महापक्ष्म, पक्ष्मकावती, शंख, कुमुद, नलिन तथा नलिनावती । [१८९] राजधानियां इस प्रकार हैं- अश्वपुरी, सिंहपुरी, महापुरी, विजयपुरी, अपराजिता, अरजा, अशोका तथा वीतशोका ।
[१९०] वक्षस्कार पर्वत इस प्रकार हैं-अंक, पक्ष्म, आशीविष तथा सुखावह । इस क्रमानुरूप कूट सदृश नामयुक्त दो-दो विजय, दिशा - विदिशाएँ, शीतोदा का दक्षिणवर्ती मुखवन तथा उत्तरवर्ती मुखवन- ये सब समझ लेना । शीतोदा के उत्तरी पार्श्व में ये विजय हैं[१९१] वप्र, सुवप्र, महावप्र, वप्रावती, वल्गु, सुवल्गु, गन्धिल तथा गन्धिलावती । [१९२] राजधानियां इस प्रकार हैं-विजया, वैजयन्ती, जयन्ती, अपराजिता, चक्रपुरी, खड्गपुरी, अवध्या तथा अयोध्या ।
[१९३] वक्षस्कार पर्वत इस प्रकार हैं-चन्द्र पर्वत, सूर पर्वत, नाग पर्वत तथा देव पर्वत । क्षीरोदा तथा शीतस्रोता नामक नदियां शीतोदा महानदी के दक्षिणी तट पर अन्तरवाहिनी नदियां हैं । ऊर्मिमालिनी, फेनमालिनी तथा गम्भीरमालिनी शीतोदा महानदी के उत्तर दिग्वर्ती विजयों की अन्तरवाहिनी नदियां हैं । इस क्रम में दो-दो कूट-अपने-अपने विजय के अनुरूप