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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
के पश्चिम में, देवकुरु के पूर्व में है । वह सर्वथा रजतमय है, उज्ज्वल है, सुन्दर है । वह निषेध वर्षधर पर्वत के पास ४०० योजन ऊँचा है । ४०० कोश जमीन में गहरा है । गौतम ! सौमनस वक्षस्कार पर्वत पर बहुत से सौम्य स्वभावयुक्त, कायकुचेष्टारहित, सुमनस्क, मनः कालुष्य रहित देव - देवियां आश्रय लेते हैं, विश्राम करते हैं । तदधिष्ठायक परम ऋद्धिशाली सौमनस नामक देव वहाँ निवास करता है । अथवा गौतम ! उसका यह नाम नित्य है । सौमनस वक्षस्कार पर्वत के कितने कूट हैं ? गौतम ! सात हैं
[१७९] सिद्धायतनकूट, सौमनसकूट, मंगलावतीकूट, देवकुरुकूट, विमलकूट, कंचनकूट तथा वशिष्ठकू ।
सदृश
[१८०] ये सब कूट ५०० योजन ऊँचे हैं । इनका वर्णन गन्धमादन के कूटों के । इतना अन्तर है- विमलकूट तथा कंचनकूट पर सुवत्सा एवं वत्समित्रा नामक देवियाँ रहती हैं । बाकी के कूटों पर, कूटों के जो-जो नाम हैं, उन उन नामों के देव निवास करते हैं। मेरु के दक्षिण में उनकी राजधानियां हैं । भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में देवकुर कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत के दक्षिण में, निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, सौमनस वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में है । वह ११८४२ -२/१९ योजन विस्तीर्ण है । शेष वर्णन उत्तरकुरु सदृश है । वहाँ पद्मगन्ध, मृगगन्ध, अमम, सह, तेतली तथा शनैश्चारी, छह प्रकार के मनुष्य होते हैं, जिनकी वंश परंपरा - उत्तरोत्तर चलती है । [१८१] भगवन् ! देवकुरु में चित्र-विचित्र कूट नामक दो पर्वत कहाँ हैं ? गौतम ! निषेध वर्षधर पर्वत के उत्तरी चरमान्त से -८३४ - ४ /७ योजन की दूरी पर शीतोदा महानदी के पूर्व-पश्चिम के अन्तराल में उसके दोनों तटों पर हैं । उनके अधिष्ठातृ देवों की राजधानियां मेरु के दक्षिण में हैं ।
[१८२ ] भगवन् ! देवकुरु में निषध द्रह कहाँ है ? गौतम ! चित्र विचित्र कूट नामक पर्वतों के उत्तरी चरमान्त से ८३४ - ४ /७ योजन की दूरी पर शीतोदा महानदी के ठीक मध्य भाग में है । नीलवान्, उत्तरकुरु, चन्द्र, ऐरावत तथा माल्यवान् - इन ग्रहों की जो वक्तव्यता है, वही निषध, देवकुरु, सूर, सुलस तथा विद्युत्प्रभ नामक द्रहों की समझना । उनके अधिष्ठातृदेवों की राजधानियां मेरु के दक्षिण में हैं ।
[१८३] भगवन् ! देवकुरु में कूटशाल्मलीपीठ - कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत के नैर्ऋत्य कोण में, निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, शीतोदा महानदी के पश्चिम में देवकुरु के पश्चिमार्ध के ठीक बीच में है । जम्बू सुदर्शना समान वर्णन इनका समझना । गरुड इसका अधिष्ठातृ देव है । राजधानी मेरु के दक्षिण में है । यहाँ एक पल्योपमस्थितिक देव निवास करता है । अथवा देवगुरु नाम शाश्वत है ।
[१८४] भगवन् ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत कहाँ है ? गौतम ! निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, मन्दर पर्वत के दक्षिण-पश्चिम में, देवकुरु के पश्चिम में तथा पद्म विजय के पूर्व में है । शेष वर्णन माल्यवान् पर्वत जैसा है । इतनी विशेषता है - वह सर्वथा तपनीय - स्वर्णमय है । विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत के कितने कूट बतलाये गये हैं ? गौतम ! नौ हैं
[१८५] सिद्धायतनकूट, विद्युत्प्रभकूट, देवकुरुकूट, पक्ष्मकूट, कनककूट, सौवत्सिककूट,