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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
चार प्रकार का, -पृथ्वी, उपल, वज्र तथा शर्करमय | उसका मध्यमविभाग चार प्रकार का है-अंकरत्नमय, स्फटिकमय, स्वर्णमय तथा रजतमय । उसका उपरितनविभाग एकाकार है । वह सर्वथा जम्बूनद-स्वर्णमय है । मन्दर पर्वत का अधस्तन १००० योजन ऊँचा है । मध्यम विभाग ६३००० योजन ऊँचा है । उपरितन विभाग ३६००० योजन ऊँचा है । यों उसकी ऊँचाई का कुल परिमाण १००००० योजन है ।।
[२०२] भगवन् ! मन्दरपर्वत के कितने नाम बतलाये हैं ? गौतम ! सोलह
[२०३] मन्दर, मेरु, मनोरम, सुदर्शन, स्वयंप्रभ, गिरिराज, रत्नोच्चय, शिलोच्चय, लोकमध्य, लोकनाभि ।
[२०४] अच्छ, सूर्यावर्त, सूर्यावरण, उत्तम, दिगादि तथा अवतंस ।।
[२०५] भगवन् ! वह मन्दर पर्वत क्यों कहलाता है ? गौतम ! मन्दर पर्वत पर मन्दर नामक परम ऋद्धिशाली, पल्योपम के आयुष्यवाला देव निवास करता है, अथवा यह नाम शाश्वत है ।
२०६] भगवन् ! जम्बूद्वीप का नीलवान् वर्षधर पर्वत कहाँ है ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र के उत्तर में, रम्यक क्षेत्र के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में; पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में है । निषध पर्वत के समान है । इतना अन्तर है-दक्षिण में इसकी जीवा है, उत्तर में धनुपृष्ठभाग है । उसमें केसरी द्रह है । दक्षिण में उससे शीता महानदी निकलती है । वह उत्तरकुरु में बहती है । आगे यमक पर्वत तथा नीलवान्, उत्तरकुरु, चन्द्र, ऐरावत एवं माल्यवान् द्रह को दो भागों में बाँटती है । उसमें ८४०० नदियाँ मिलती हैं । उनसे आपूर्ण होकर वह भद्रशाल वन में बहती है । जब मन्दर पर्वत दो योजन दूर रहता है, तब वह पूर्व की ओर झुड़ती है, नीचे माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत को विदीर्ण कर मन्दर पर्वत के पूर्व में पूर्व विदेह क्षेत्र को दो भागों में बाँटती है । एक-एक चक्रवर्तिविजय में उसमें अट्ठाईस-अट्ठाईस हजार नदियां मिलती हैं । यों कुल ५३२००० नदियों से आपूर्ण वह नीचे विजयद्वार की जगती को विदीर्ण कर पूर्वी लवणसमुद्र में मिल जाती है । नारीकान्ता नदी उत्तराभिमुख होती हुई बहती है । जब गन्धापाति वृत्तवैताढ्य पर्वत एक योजन दूर रह जाता है, तब वह वहाँ से पश्चिम की ओर मुड़ जाती है । नीलवान् वर्षधर पर्वत के नौ कूट हैं- यथा
२०७] सिद्धायतनकूट, नीलवत्कूट, पूर्वविदेहकूट, शीताकूट, कीर्तिकूट, नारीकान्ताकूट, अपरविदेहकूट, रम्यककूट तथा उपदर्शनकूट ।
[२०८] ये सब कूट पांच सौ योजन ऊँचे हैं । इनके अधिष्ठातृ देवों की राजधानियां मेरु के उत्तर में है । भगवन् ! नीलवान् वर्षधर पर्वत इस नाम से क्यों पुकारा जाता है ? गौतम ! वहाँ नीलवर्णयुक्त, नील आभावाला परम ऋद्धिशाली नीलवान् देव निवास करता है, नीलवान् वर्षधर पर्वत सर्वथा वैडूर्यरत्नमय है । अथवा उसका यह नाम नित्य है- ।
[२०९] भगवन् ! जम्बूद्वीप का स्यक क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के उत्तर में, रुक्मी पर्वत के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में है । उसकी जीवा दक्षिण में है, धनुपृष्ठभाग उत्तर में है । बाकी वर्णन हरिवर्ष सदृश है । रम्यक क्षेत्र में गन्धापाती वृत्तवैताढ्य पर्वत कहाँ है ? गौतम ! नरकान्ता नदी के पश्चिम में, नारीकान्ता नदी के पूर्व में रम्यक क्षेत्र के बीचों बीच है । वह विकटापाती वृत्तवैताढ्यं