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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-४/१९९
उस सिद्धायतन की तीन दिशाओं में तीन दरवाजे हैं । वे दरवाजे आठ योजन ऊँचे हैं । वे चार योजन चौड़े हैं । उनके प्रवेश-मार्ग भी उतने ही हैं । उस (सिद्धायतन) के सफेद, उत्तम स्वर्णमय शिखर हैं । उसके बीचों बीच एक विशाल मणिपीठिका है । वह आठ योजन लम्बीचौड़ी है, चार योजन मोटी है, सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है । उस मणिपीठिका के ऊपर देवासन है । वह आठ योजन लम्बा-चौड़ी है, कुछ अधिक आठ योजन ऊँचा है । जिन प्रतिमा, देवच्छन्दक, धूपदान आदि का वर्णन पूर्वानुरूप है । मन्दर पर्वत की चूलिका के पूर्व में पण्डकवन में पचास योजन जाने पर एक विशाल भवन आता है । शक्रेन्द्र एवं ईशानेन्द्र वहाँ के अधिष्ठायक देव हैं।
[२००] भगवन् ! पण्डकवन में कितनी अभिषेक शिलाएँ हैं ? गौतम ! चार, - पाण्डुशिला, पाण्डुकम्बलशिला, स्तशिला तथा रक्तकम्बलशिला । पण्डकवन में पाण्डुशिला कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत की चूलिका के पूर्व में पण्डकवन के पूर्वी छोर पर है । वह उत्तर-दक्षिण लम्बी तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ी है । उसका आकार अर्ध चन्द्र के आकार-जैसा है। वह ५०० योजन लम्बी, २५० योजन चौड़ी तथा ४ योजन मोटी है । वह सर्वथा स्वर्णमय है, स्वच्छ है, पद्मवरवेदिका तथा वनखण्ड द्वारा चारों ओर से संपरिवृत है । उस पाण्डुशिला के चारों ओर चारों दिशाओं में तीन-तीन सीढ़ियाँ हैं । उस पाण्डुशिला पर बहुत समतल एवं सुन्दर भूमिभाग है । उस पर देव आश्रय लेते हैं । उस भूमिभाग के बीच में उत्तर तथा दक्षिण में दो सिंहासन हैं । वे ५०० धनुष लम्बे-चौड़े और २५० धनुष ऊँचे हैं । वहाँ जो उत्तर दिग्वर्ती सिंहासन है, वहाँ बहुत से भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देव-देवियां कच्छ आदि विजयों में उत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक करते हैं । वहाँ जो दक्षिण दिग्वर्ती सिंहासन है, वहाँ बहुत से भवनपति, यावत् वैमानिक देव-देवियां वत्स आदि विजयों में उत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक करते हैं ।
___ भगवन् ! पण्डकवन में पाडुकम्बलशिला कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत की चूलिका के दक्षिण में, पण्डकवन के दक्षिणी छोर पर है । उसका प्रमाण, विस्तार पूर्ववत् है । उसके भूमिभाग के बीचोंबीच एक विशाल सिंहासन है । उसका वर्णन पूर्ववत् है । वहां भवनपति आदि देव-देवियों द्वारा भरतक्षेत्रोत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक किया जाता है । पण्डकवन में रक्तशिला कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत की चूलिका के पश्चिम में, पण्डकवन के पश्चिमी छोर पर है । उसका प्रमाण, विस्तार पूर्ववत् है । वह सर्वथा तपनीय स्वर्णमय है, स्वच्छ है। उसके उत्तर-दक्षिण दो सिंहासन हैं । उनमें जो दक्षिणी सिंहासन है, वहाँ बहुत से भवनपति आदि देव-देवियों द्वारा पक्ष्मादिक विजयों में उत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक किया जाता है । जो उत्तरी सिंहासन है, वहाँ बहुत से वप्र आदि विजयों में उत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक किया जाता है । भगवन् ! पण्डकवन में रक्तकम्बलशिला कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत की चूलिका के उत्तर में, पण्डकवन के उत्तरी छोर पर है । सम्पूर्णतः तपनीय स्वर्णमय तथा उज्ज्वल है। उसके बीचों-बीच एक सिंहासन है । वहाँ ऐरावतक्षेत्र में उत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक किया जाता है ।
[२०१] भगवन् ! मन्दर पर्वत के कितने काण्ड हैं ? गौतम ! तीन, -अधस्तन, मध्यम तथा उपरितनकाण्ड । मन्दर पर्वत का अधस्तनविभाग कितने प्रकार का है ? गौतम !