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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
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कथनीय हैं । वे अवस्थित हैं ।
[१९४] भगवन् ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में मन्दर पर्वत कहाँ है । गौतम ! उत्तरकुरु के दक्षिण में, देवकुरु के उत्तर में, पूर्व विदेह के पश्चिम में और पश्चिम विदेह के पूर्व में है । वह ९९००० योजन ऊँचा है, १००० जमीन में गहरा है । वह मूल में १००९० -१०/१९ योजन तथा भूमितल पर १०००० योजन चौड़ा है । उसके बाद वह चौड़ाई की मात्रा में क्रमशः घटता घटता ऊपर के तल पर १००० योजन चौड़ा रह जाता है । उसकी परिधि मूल ३१९१० - ३/१९ योजन, भूमितल पर ३१६२३ योजन तथा ऊपरी तल पर कुछ अधिक ३१६२ योजन है । वह मूल में विस्तीर्ण - मध्य में संक्षिप्त- तथा ऊपर पतला है । उसका आकार गाय की पूँछ के आकार जैसा है । वह सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है, सुकोमल है । वह एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक वनखण्ड द्वारा चारों ओर से घिरा हुआ है ।
भगवन् ! मन्दर पर्वत पर कितने वन हैं ? गौतम ! चार, -भद्रशालवन, नन्दनवन, सौमनसवन तथा पंडकवन । भद्रशालवन कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत पर उसके भूमिभाग पर है । वह पूर्व-पश्चिम लम्बा एवं उत्तर-दक्षिण चौड़ा है । वह सौमनस, विद्युत्प्रभ, गन्धमादन तथा माल्यवान् नामक वक्षस्कार पर्वतों द्वारा शीता तथा शीतोदा नामक महानदियों द्वारा आठ भागों में विभक्त है । वह मन्दर पर्वत के पूर्व-पश्चिम बाईस - बाईस हजार योजन लम्बा है, उत्तर - दक्षिण अढ़ाई सौ - अढ़ाई सौ योजन चौड़ा है । वह एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक वन-खण्ड द्वारा चारों ओर से घिरा हुआ है । वह काले, नीले पत्तों से आच्छन्न है, वैसी आभा से 'युक्त है । देव-देवियां वहाँ आश्रय लेते हैं, विश्राम लेते हैं- मन्दर पर्वत के पूर्व में भद्रशालवन में पचास योजन जाने पर एक विशाल सिद्धायतन आता है । वह पचास योजन लम्बा है, पच्चीस योजन चौड़ा है तथा छत्तीस योजन ऊँचा है । वह सैकड़ों खंभों पर टिका है । उस सिद्धायतन की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं । वे द्वार आठ योजन ऊँचे तथा चार योजन चौड़े हैं । उनके प्रवेश मार्ग भी उतने ही हैं । उनके शिखर श्वेत हैं, उत्तम स्वर्ण निर्मित हैं । उसके बीच एक विशाल मणिपीठिका है । वह आठ योजन लम्बी-चौड़ी हैं, चार योजन मोटी है, सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है, उज्ज्वल है । उस मणिपीठिका के ऊपर देवच्छन्दक है । वह आठ योजन लम्बा-चौड़ा है । वह कुछ अधिक आठ योजन ऊँचा है । जिनप्रतिमा, देवच्छन्दक, धूपदान आदि का वर्णन पूर्ववत् है । मन्दर पर्वत के दक्षिण में भद्रशाल वन में पचास योजन जाने पर वहाँ उस की चारों दिशाओं में चार सिद्धायतन हैं ।
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मन्दर पर्वत के ईशान कोण में भद्रशाल वन में पचास योजन जाने पर पद्मा, पद्मप्रभा, कुमुदा तथा कुमुदप्रभा नामक चार पुष्करिणियां आती हैं । वे पचास योजन लम्बी, पच्चीस योजन चौड़ी तथा दश योजन जमीन में गहरी हैं । उन पुष्करिणियों के बीच में देवराज ईशानेन्द्र का उत्तम प्रासाद है । वह पाँच सौ योजन ऊँचा और अढ़ाई सौ योजन चौड़ा है। मन्दर पर्वत के आग्नेय कोण में उत्पलगुल्मा, नलिना, उत्पला तथा उत्पलोज्ज्वला नामक पुष्करणियां हैं । उनके बीच में उत्तम प्रासाद हैं । देवराज शक्रेन्द्र वहां सपरिवार रहता है । मन्दर पर्वत के नैर्ऋत्य कोण में भृंगा, भृंगनिभा, अंजना एवं अंजनप्रभा नामक पुष्करिणियां हैं । शक्रेन्द्र वहाँ का अधिष्ठातृ देव है । मन्दर पर्वत के ईशान कोण में श्रीकान्ता, श्रीचन्द्रा, श्रीमहिता तथा श्रीनिलया नामक पुष्करिणियां हैं । बीच में उत्तम प्रासाद हैं । वहाँ ईशानेन्द्र