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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - ४ / १६३
में, कच्छ नामक चक्रवर्ति - विजय के पश्चिम में है । वह उत्तर-दक्षिण लम्बा एवं पूर्व-पश्चिम चौड़ा है । गन्धमादन के समान प्रमाण, विस्तार है । इतना अन्तर है - वह सर्वथा वैडूर्य - रत्नमय है । गौतम ! यावत्- शिखर नौ हैं- यथा
[१६४ ] सिद्धायतनकूट, माल्यवान्कूट, उत्तरकुरुकूट, कच्छकूट, सागरकूट, रजतकूट, शीताकूट, पूर्णभद्रकूट एवं हरिस्सहकूट ।
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_[१६५] भगवन् ! माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत पर सिद्धायतनकूट कूट कहाँ है ? गौतम ! मन्दरपर्वत के ईशान कोण में, माल्यवान् कूट के नैर्ऋत्य कोण में है । वह पाँच सौ योजन ऊँचा है । भगवन् ! माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत पर सागरकूट कहाँ है ? गौतम ! कच्छकूट के ईशानकोण में और रजतकूट के दक्षिण में है । वह पाँच सौ योजन ऊँचा । वहाँ सुभोगा नामक देवी निवास करती है । ईशानकोण में उसकी राजधानी है । रजतकूट पर भोगमालिनी देवी है । उत्तर-पूर्व में उसकी राजधानी है । पिछले कूट से अगला कूट उत्तर में, अगले कूट से पिछला कूट दक्षिण में- इस क्रम से अवस्थित हैं, समान प्रमाणयुक्त हैं ।
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[१६६] भगवन् ! माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत पर हरिस्सहकूट कूट कहाँ है ? गौतम ! पूर्णभद्रकूट के उत्तर में, नीलवान् पर्वत के दक्षिण में है । वह एक हजार योजन ऊँचा लम्बाई, आदि सब यमक पर्वत के सदृश है । मन्दर पर्वत के उत्तर में असंख्य तिर्यक् द्वीपसमुद्रों को लांघकर अन्य जम्बूद्वीप के अन्तर्गत उत्तर के १२००० योजन जाने पर हरिस्सहकूट के अधिष्ठायक हरिस्सह देव की हरिस्सहा राजधानी है । वह ८४००० योजन लम्बी-चौड़ी है। उसकी परिधि २६५६३६ योजन है । वह ऋद्धिमय तथा द्युतिमय है । भगवन् ! माल्यवान् वक्षस्कारपर्वत - नाम क्यों है ? गौतम ! माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत पर जहाँ तहाँ बहुत से सरिकाओं, नवमालिकाओं, मगदन्तिकाओं आदि पुष्पलताओं के गुल्म हैं । वे लताएँ पवन द्वारा प्रकम्पित अपनी टहनियों के अग्रभाग से मुक्त हुए पुष्पों द्वारा माल्यवान् वक्षस्कारपर्वत के अत्यन्त समतल एवं सुन्दर भूमिभाग को सुशोभित, सुसज्जित करती हैं । वहाँ एक पल्योपम आयुष्ययुक्त माल्यवान् देव है, अथवा उसका यह नाम नित्य है ।
[१६७ ] भगवन् ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में कच्छ विजय कहाँ ? गौतम ! शीता महानदी के उत्तर में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में है । वह उत्तर - दक्षिण लम्बी एवं पूर्व-पश्चिम चौड़ी है, पलंग के आकार में अवस्थित द्वारा वह छह भागों में विभक्त है । वह २२१३ योजन चौड़ी है । कच्छ विजय के दक्षिणार्ध तथा उत्तरार्ध रूप में दो भागों में बाँटता है ।
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गंगा महानदी, सिन्धु महानदी तथा वैताढ्य पर्वत १६५९२ - २ /१९ योजन लम्बी तथा कुछ कम बीचोंबीच वैताढ्य पर्वत है, जो कच्छ विजय को
भगवन् ! जम्बूद्वीप के महाविदेहक्षेत्र में दक्षिणार्ध कच्छ कहाँ है ? गौतम ! वैताढ्य पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में, चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में है । वह उत्तर-दक्षिण लम्बा तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ा है। ८२७१ - १/१९ योजन लम्बा है, कुछ कम २२१३ योजन चौड़ा है, पलंग के आकार में विद्यमान है । दक्षिणार्ध कच्छविजय का आकार, भाव, प्रत्यवतार किस प्रकार का है ? गौतम ! वहाँ का भूमिभाग बहुत समतल एवं सुन्दर है । वह कृत्रिम मणियों तथा तृणों आदि