________________
८६
आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
से सुशोभित है । दक्षिणार्ध कच्छविजय में मनुष्यों का आकार, भाव, प्रत्यवतार कैसा है ? गौतम ! वहाँ मनुष्य छह प्रकार के संहननों से युक्त होते हैं । शेष वर्णन पूर्ववत् ।
जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में वैताढ्य पर्वत कहाँ है ? गौतम ! दक्षिणार्ध कच्छविजय के उत्तर में, उत्तरार्ध कच्छविजय के दक्षिण में, चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में तथा माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में है, वह पूर्व-पश्चिम लम्बा है, उत्तर-दक्षिण चौड़ा है । दो ओर से वक्षस्कार - पर्वतों का स्पर्श करता है । वह भरत क्षेत्रवर्ती वैताढ्य पर्वत के सदृश है। अवक्रक्षेत्रवर्ती होने के कारण उसमें बाहाएँ, जीवा तथा धनुपृष्ठ - नहीं कहना । चौड़ाई, ऊँचाई एवं गहराई में भरत क्षेत्रवर्ती वैताढ्य पर्वत के समान है । इसकी दक्षिणी श्रेणी में ५५ तथा उत्तरी श्रेणी में ५५ विद्याधर - नगरावास हैं । आभियोग्य श्रेण्यन्तर्गत, शीता महानदी के उत्तर में जो श्रेणियां हैं, वे ईशानदेव - की हैं, बाकी की श्रेणियाँ शक्र की हैं । वहाँ कूट- इस प्रकार हैं
[ १६८ ] सिद्धायतनकूट, दक्षिणकच्छार्धकूट, खण्डप्रपातगुहाकूट, माणिभद्रकूट, वैताढ्यकूट, पूर्णभद्रकूट, तमिस्रगुहाकूट, उत्तरार्धकच्छकूट, वैश्रवण ।
[१६९] भगवन् ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में उत्तरार्ध कच्छ कहाँ है ? गौतम ! वैताढ्य पर्वत के उत्तर में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में तथा चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में है । अवशेष वर्णन पूर्ववत् । जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में उत्तरार्धकच्छविजय में सिन्धुकुण्ड कहाँ है ? गौतम ! माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, ऋषभकूट के पश्चिम में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी नितम्ब में है । वह साठ योजन लम्बा-चौड़ा है । उस सिन्धुकुण्ड के दक्षिणी तोरण से सिन्धु महानदी निकलती है । उत्तरार्ध कच्छ विजय में बहती है । उसमें वहाँ ७००० नदियाँ मिलती हैं । वह उनसे आपूर्ण होकर नीचे तिमिस्रगुहा से होती हुई वैताढ्य पर्वत के विदीर्ण कर-दक्षिणार्ध कच्छ विजय में जाती है । वहाँ १४००० नदियों से युक्त होकर वह दक्षिण में शीता महानदी में मिल जाती है । सिन्दुमहानदी अपने उद्गम तथा संगम पर प्रवाह में भरत क्षेत्रवर्ती सिन्धु महानदी के सदृश है
भगवन् ! उत्तरार्ध कच्छ विजय में ऋषभकूट पर्वत कहाँ है ? गौतम ! सिन्धुकूट के पूर्व में, गंगाकूट के पश्चिम में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी ढलान में है । वह आठ योजन ऊँचा है । उसकी राजधानी उत्तर में है । उत्तरार्ध कच्छविजय में गंगाकुण्ड कहाँ है ? गौतम ! चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, ऋषभकूटपर्वत के पूर्व में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी ढलान में है । वह ६० योजन लम्बा-चौड़ा है । वह एक वनखण्ड द्वारा परिवेष्टित है - भगवन् ! वह कच्छविजय क्यों कहा जाता है ? गौतम ! कच्छविजय में वैताढ्य पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में, गंगा महामदी के पश्चिम में, सिन्धु महानदी पूर्व में दक्षिणार्ध कच्छ विजय के बीचोंबीच उसकी क्षेमा राजधानी है । क्षेमा राजधानी में कच्छ नामक षट्खण्ड-भोक्ता चक्रवर्ती राजा समुत्पन्न होता है - कच्छविजय में परम समृद्धिशाली, एक पल्योपम आयु-स्थितियुक्त कच्छ देव निवास करता है । अथवा उसका कच्छविजय नाम नित्य है,. शाश्वत है ।
[१७० ] भगवन् ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत कहाँ है ?