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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-४/१४७
[१४७] काञ्चनक पर्वतों का विस्तार मूल में सौ योजन, मध्य में ७५ योजन तथा ऊपर ५० योजन है ।
१४८] उनकी परिधि मूल में ३१६ योजन, मध्य में २३७ योजन तथा ऊपर १५८ योजन है ।
[१४९] पहला नीलवान्, दूसरा उत्तरकुरु, तीसरा चन्द्र, चौथा ऐरावत तथा पाँचवां माल्यवान्-ये पाँच द्रह हैं ।
[१५०] अन्य द्रहों का प्रमाण, वर्णन नीलवान् द्रह के सदृश है । उनमें एक पल्योपम आयुष्यवाले देव निवास करते हैं । प्रथम नीलवान् द्रह में नागेन्द्र देव तथा अन्य चार में व्यन्तरेन्द्र देव निवास करते हैं ।
[१५१] भगवन् ! उत्तरकुरु में जम्बूपीठ कहाँ है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, मन्दर पर्वत के उत्तर में माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में एवं शीता महानदी के पूर्वी तट पर है । वह ५०० योजन लम्बा-चौड़ा है । उसकी परिधि कुछ अधिक १५८१ योजन है । वह पीठ बीच में बारह योजन मोटा है । फिर क्रमशः मोटाई में कम होता हुआ आखिरी छोरों पर दो दो कोश मोटा है । वह सम्पूर्णतः जम्बूनदजातीय स्वर्णमय है, उज्ज्वल है । एक पद्मवरवेदिका से तथा एक वन-खण्ड से सब ओर से घिरा है । जम्बूपीठ की चारों दिशाओं में तीन-तीन सोपानपंक्तियां हैं । जम्बूपीठ के बीचोंबीच एक मणि-पीठिका है । वह आठ योजन लम्बी-चौड़ी है, चार योजन मोटी है । उस के ऊपर जम्बू सुदर्शना नामक वृक्ष है । वह आठ योजन ऊँचा तथा आधा योजन जमीन में गहरा है उसका स्कन्ध-दो योजन ऊँचा और आधा योजन मोटा है । शाखा ६ योजन ऊँची है । बीच में उसका आयामविस्तार आठ योजन है । यों सर्वांगतः उसका आयाम-विस्तार कुछ अधिक आठ योजन है ।
वह जम्बू वृक्ष के मूल वज्ररत्नमय हैं, विडिमा से ऊर्ध्व विनिर्गत हुई शाखा रजतघटित है । यावत् वह वृक्ष दर्शनीय है । जम्बू सुदर्शना की चारों दिशाओं में चार शाखाएँ हैं । उन शाखाओं के बीचोंबीच एक सिद्धायतन है । वह एक कोश लम्बा, आधा कोश चौड़ा तथा कुछ कम एक कोश ऊँचा है । वह सैकड़ों खंभों पर टिका है । उसके द्वार पांच सौ धनुष ऊँचे हैं । उपर्युक्त मणिपीठिका ५०० धनुष लम्बी-चौड़ी है, २५० धनुष मोटी है । उस मणिपीठिका पर देवच्छन्दक- है । वह पाँच सौ धनुष लम्बा-चौड़ा है, कुछ अधिक पाँच सौ धनुष ऊँचा है । आगे जिन-प्रतिमाओं तक का वर्णन पूर्ववत् है । उपर्युक्त शाखाओं में जो पूर्वी शाखा है, वहाँ एक भवन है । वह एक कोश लम्बा है । बाकी की दिशाओं में जो शाखाएँ हैं, वहाँ प्रासादावतंसक हैं । वह जम्बू बारह पद्मवरवेदिकाओं द्वारा सब ओर से घिरा हुआ है । पुनः वह अन्य १०८ जम्बू वृक्षों से घिरा हुआ है, जो उससे आधे ऊँचे हैं । वे जम्बू वृक्ष छह पद्मवरवेदिकाओं से घिरे हुए हैं । जम्बू के ईशान कोण में, उत्तर में तथा वायव्य कोण में अनादृत नामक देव, जो अपने को वैभव, ऐश्वर्य तथा ऋद्धि में अनुपम, अप्रतिम मानता हुआ जम्बूद्वीप के अन्य देवों को आदर नहीं देता रहता है । ४००० सामानिक देवों के ४००० जम्बू वृक्ष हैं । पूर्व में चार अग्रमहिषियों के चार जम्बू हैं ।
[१५२] आग्नेय कोण में, दक्षिण में तथा नैर्ऋत्य कोण में क्रमशः ८०००, १०,०००