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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - ४ / १४३
बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग है । उस के बीचोंबीच दो उत्तम प्रासाद हैं । वे प्रासाद ६२ ।। योजन ऊँचे हैं । ३१ । योजन लम्बे-चौड़े हैं । इन यमक देवों के १६००० आत्मरक्षक देव हैं । उनके १६००० उत्तम आसन हैं ।
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भगवन् ! उन्हें यमक पर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम ! उन पर्वतों पर जहाँ तहाँ बहुत सी छोटी-छोटी वावड़ियों, पुष्करिणियों आदि में जो अनेक उत्पल, कमल आदि खिलते हैं, उनका आकार एवं आभा यमक के सदृश हैं । वहाँ यमक नामक दो परम ऋद्धिशाली देव हैं । उनके ४००० सामानिक देव हैं, गौतम ! इस कारण वे यमक पर्वत कहलाते हैं । अथवा यह नाम शाश्वत है । यम्रक देवों की यमिका राजधानियाँ कहाँ हैं ? गौतम ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत् मन्दर पर्वत के उत्तर में अन्य जम्बूद्वीप में १२००० योजन जाने पर हैं । वे १२००० योजन लम्बी-चौड़ी हैं उनकी परिधि कुछ अधिक ३७९४८ योजन है । प्रत्येक राजधानी आकार से परिवेष्टित है । वे प्राकार ३७ ।। योजन ऊँचे हैं । वे मूल में १२।। योजन, मध्य में ६ | योजन तथा ऊपर तीन योजन आधा कोश चौड़े हैं । वे मूल में विस्तीर्ण - बीच में संक्षिप्त तथा ऊपर पतले हैं । वे बाहर वृत्त तथा भीतर से चौकोर प्रतीत होते हैं । वे सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं । नाना प्रकार के पंचरंगे रत्नों से निर्मित कपिशीर्षकों द्वारा सुशोभित हैं । वे कंगूरे आधा कोश ऊँचे तथा पाँच सौ धनुष मोटे हैं, सर्वरत्नमय हैं, उज्ज्वल हैं ।
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यमिका राजधानियों के प्रत्येक पार्श्व में १२५-१२५ द्वार हैं । वे द्वार ६२ ।। योजन ऊँचे हैं । ३१ । योजन चौड़े हैं। प्रवेश मार्ग भी उतने ही प्रमाण के हैं । यमिका राजधानियों की चारों दिशाओं में पाँच-पाँच सौ योजन के व्यवधान से अशोकवन, सप्तवर्णवन, चम्पकवन तथा आम्रवन हैं । ये वन खण्ड कुछ अधिक १२००० योजन लम्बे तथा ५०० योजन चौड़े हैं । प्रत्येक वन खण्ड प्राकार द्वारा परिवेष्टित । यमिका राजधानियों में से प्रत्येक में बहुत समतल सुन्दर भूमिभाग हैं । उन के बीचोंबीच दो प्रासाद - पीठिकाएँ हैं । वे १२०० योजन लम्बी-चौड़ी हैं । उनकी परिधि ३७९५ योजन है । वे आधा कोश मोटी हैं। वे सम्पूर्णतः उत्तम जम्बूनद जातीय स्वर्णमय हैं, उज्ज्वल हैं । उनमें से प्रत्येक पद्मवरवेदिका तथा वनखण्ड द्वारा परिवेष्टित है ।
उसके बीचोंबीच एक उत्तम प्रासाद है । वह ६२ ।। योजन ऊँचा है । ३१। योजन लम्बा-चौड़ा है । प्रासाद-पंक्तियों में से प्रथम पंक्ति के प्रासाद ३१ | योजन ऊँचे हैं । वे कुछ अधिक १५ ।। योजन लम्बे-चौड़े हैं । द्वितीय पंक्ति के प्रासाद कुछ अधिक १५ ।। योजन ऊँचे हैं । वे कुछ अधिक ७ | योजन लम्बे-चौड़े हैं । तृतीय पंक्ति के प्रासाद कुछ अधिक ७ ।। योजन ऊँचे हैं, कुछ अधिक ३ ।। योजन लम्बे-चौड़े हैं । मूल प्रासाद के ईशान कोण में यमक देवों की सुधर्मासभाएँ हैं । वे सभाएँ १२ ।। योजन लम्बी, ६ । योजन चौड़ी तथा ९ योजन ऊँची हैं । सैकड़ों खंभों पर अवस्थित हैं । उन सुधर्मासभाओं की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं । वे दो योजन ऊँचे हैं, एक योजन चौड़े हैं। उनके प्रवेश मार्गों का प्रमाणभी उतना ही है ।
उन द्वारों में से प्रत्येक के आगे मुख-मण्डप - हैं । वे १२।। योजन लम्बे, ६ । योजन चौड़े तथा कुछ अधिक दो योजन ऊँचे हैं । प्रेक्षागृहों का प्रमाण मुखमण्डपों के सदृश है ।
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