Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 29
________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद है ? गौतम ! वे वृक्ष कूट, प्रेक्षागृह, छत्र, स्तूप, तोरण, गोपुर, वेदिका, चोप्फाल, अट्टालिका, प्रासाद, हर्म्य, हवेलियां, गवाक्ष, वालाग्रपोतिका तथा वलभीगृह सदृश संस्थान - संस्थित हैं । इस भरतक्षेत्र में और भी बहुत से ऐसे वृक्ष हैं, जिनके आकार उत्तम, विशिष्ट भवनों जैसे हैं, जो सुखप्रद शीतल छाया युक्त हैं । २८ [३७] भगवन् ! उस समय भरतक्षेत्र में क्या घर होते हैं ? क्या गेहापण - बाजार होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । उन मनुष्यों के वृक्ष ही घर होते हैं । क्या उस समय भरतक्षेत्र ग्राम यावत् सन्निवेश होते है ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । वे मनुष्य स्वभावतः यथेच्छ - विचरणशील होते हैं । क्या उस समय भरतक्षेत्र में असि, मषि, कृषि, वणिक्-कला, पण्य अथवा व्यापार-कला होती है ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । वे मनुष्य असि आदि जीविका से विरहित होते हैं । भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में चांदी, सोना, कांसी, वस्त्र, मणियां, मोती, शंख, शिला, रक्तरत्न, ये सब होते हैं ? हाँ, गौतम ! ये सब होते हैं, किन्तु उन मनुष्यों के परिभोग में नहीं आते । क्या उस समय भरतक्षेत्र में राजा, युवराज, ईश्वर, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति और सार्थवाह होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । वे मनुष्य ऋद्धिवैभव तथा सत्कार आदि से निरपेक्ष होते हैं । भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में दास, प्रेष्य, शिष्य, भृतक, भागिक, हिस्सेदार तथा कर्मकर होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । वे मनुष्य स्वामी - सेवक भाव से अतीत होते हैं । क्या उस समय भरतक्षेत्र में माता, पिता, भाई, बहिन, पत्नी, पुत्र, पुत्री तथा पुत्र वधू ये सब होते हैं ? गौतम ! ये सब वहाँ होते हैं, परन्तु उन मनुष्यों का उनमें तीव्र प्रेम-बन्ध उत्पन्न नहीं होता । क्या उस समय भरतक्षेत्र में अरि, वैरिक, घातक, वधक, प्रत्यनीक अथवा प्रत्यमित्र होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । वे मनुष्य वैरानुबन्ध-रहित होते हैं- क्या उस समय भरतक्षेत्र में मित्र, वयस्य, साथी, ज्ञातक, संघाटिक, मित्र, सुहृद् अथवा सांगतिक होते हैं ? गौतम ! ये सब वहाँ होते हैं, परन्तु उन मनुष्यों का उनमें तीव्र राग- बन्धन उत्पन्न नहीं होता । भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में आवाह, विवाह, श्राद्ध-लोकानुगत मृतक - क्रिया तथा मृत पिण्ड - निवेदन होते हैं आयुष्मन् श्रमण गौतम ! ये सब नहीं होते । वे मनुष्य आवाह, विवाह, यज्ञ, श्राद्ध, स्थालीपाक तथा मृत-पिंड निवेदन से निरपेक्ष होते हैं । क्या उस समय भरतक्षेत्र में इन्द्रोत्सव, स्कन्दोत्सव, नागोत्सव, यक्षोसव, कूपोत्सव, तडागोत्सव, द्रहोत्सव, नद्युत्सव, वृक्षोत्सव, पर्वतोत्सव, स्तूपोत्सव तथा चैत्योत्सव होते हैं ? गौतम ! ये नहीं होते । वे मनुष्य उत्सवों से निरपेक्ष होते हैं । क्या उस समय भरतक्षेत्र में नट, नर्तक, जल्ल, मल्ल, मौष्टिक, विडंबक, कथक, प्लवक अथवा लासक हेतु लोग एकत्र होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । क्योंकि उन मनुष्यों के मन में कौतूहल देखने की उत्सुकता नहीं होती । भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में शकट, रथ, यान, युग्य, गिल्लि, थिल्लि, शिबिका तथा स्यन्दमानिका होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता, क्योंकि वे मनुष्य पादचारविहारी होते हैं । क्या उस समय भरतक्षेत्र में गाय, भैंस, बकरी, भेड़ होते हैं ? गौतम ! ये पशु होते हैं किन्तु उन मनुष्यों के उपयोग में नहीं आते । क्या उस समय भरतक्षेत्र में घोड़े, ऊँट, हाथी, गाय, गवय, बकरी, भेड़, प्रश्रय, पशु, मृग, वराह, रुरु, शरभ, चँवर, शबर, कुरंग तथा गोकर्ण होते हैं ? गौतम !

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